अविकल उत्त्तराखण्ड
देहरादून। पूर्व सीएम हरीश रावत समय ने प्रदेश में भू सुधार कानून की आवश्यकता पर बल दिया है। वीडियो के जरिये उन्होंने अपने मन की बात कही-
पूर्व सीएम हरीश रावत ने जो कहा वह यहां पेश है-
उत्तराखण्ड में इस समय भू-कानून की आवश्यकता को लेकर एक बहस चल रही है और मेरे लिये प्रसन्नता की बात यह है कि इस बहस में उत्तराखण्ड के नौजवान हिस्सेदारी कर रहे हैं।
हमारी सरकार ने वर्ष 2016 में उत्तराखण्ड को एक नया भू-कानून पर्वतीय क्षेत्रों के खेती की चकबन्दी का बनाकर कर दिया। एक कमेटी हमने बनाई थी, जिसके अध्यक्ष आज भाजपा के सांसद हैं। हमने नियम-उपनियम सब बना दिये थे, क्रियान्वित करने तक चुनाव आ गये।
इधर मैं, पर्वतीय क्षेत्रों की चकबंदी के कानून को लेकर कुछ सुन नहीं रहा था, अब आवाज उठी है तो, मैं कहना चाहता हूॅ कि हमने भू सुधार को एक प्रमुखता दी थी। उत्तराखण्ड के अन्दर बड़े पैमाने पर जमीनों पर लोगों के कब्जे थे, कई लोग कई पीढ़ियों से कब्जेदार थे, मगर उनको मालिकाना हक नहीं था। हमने मालिकाना हक देने का फैसला किया, उसके ज्यादातर लाभार्थी गरीब, दलित व शिल्पकार भाई-बहन थे। उनकी आवाज प्रबल नहीं थी, लेकिन हमने उनकी आवाज को सुना।
तराई में कई प्रकार के भू-प्रकार थे। हमने उनको समाप्त कर और जो इस तरीके वर्ग-3, वर्ग-4 आदि नामों से कब्जेधारक थे, उनकी जमीनों का नियमितिकरण किया। एक बड़ा झगड़ा जो तराई के अन्दर था, उसको हमने सुलझाने का प्रयास किया। मेरे दिल में ईच्छा थी कि हम जमीन का नया बन्दोबस्त भी करवाएं।
पहले विकेट का बंदोबस्त हुआ था अंग्रेजों समय में और उसके बाद स्वतंत्र भारत में, उत्तर प्रदेश में पर्वतीय अंचलों में एक बंदोबस्त हुआ था, आज जिसको वर्षों हो गये हैं। नया बन्दोबस्त समय की आवश्यकता था, लेकिन उसके लिये एक सरकार के पास कम से कम 5 वर्ष का समय होना चाहिये था। हमने कैडर तैयार कर दिया जो इस तरीके भू-बंदोबस्त कर सके। लेकिन हम भू-बंदोबस्त को लागू नहीं करवा पाये और मैं समझता हॅू आने वाली सरकार का यह सबसे प्रमुख एजेण्डा होना चाहिये, और इसके साथ-साथ यह आवश्यक है कि जो उत्तराखण्ड की सत्ता व्यवस्था को संभालें वो दक्षिण के राज्यों ने किस तरीके से भू-सुधार किये उनका अध्ययन करें, उनको लागू करें।
विशेष तौर पर देवराज अर्स की सरकार ने जो भू-सुधार कर्नाटक के अन्दर किये, उसको उत्तराखण्ड में बड़े पैमाने पर लागू करने की आवश्यकता है। उन्होंने जमीनों के मुकदमों के लिये एक अलग प्रणाली विकसित की जिसमें न्यायालय हस्तक्षेप नहीं कर सकता है। हमको भी अपने राज्य में उसी तरीके की प्रणाली लाने की आवश्यकता है। मैं समझता हॅू कि इस मामले में जितनी जल्दी करें, उतना अच्छा है। क्योंकि भूमि और उत्तराखण्ड के पर्वतीय क्षेत्रों के भू-कानून को समझने वाले लोग धीरे- धीरे कम होते जा रहे हैं।
यहां तक कि हमारे अधिवक्तागणों में से ऐसे लोगों की संख्या कमतर होती जा रही है जो उत्तर प्रदेश, उत्तराखण्ड, गढ़वाल एवं कुमाऊं के रेवेन्यू कानून को समझते हों। हम जितने पुष्ट तरीके से कदम बढ़ायेंगे, उतना ही हमारे भविष्य के लिये स्तुत्य होगा और अच्छी बात यह है कि इस बहस में युवा आ रहे हैं। इसलिये कुछ लोगों ने मुझसे आग्रह किया मैं एक वीडियो बनाकर के जारी करूं तो मैं आज उन्हीं के आग्रह पर अपने ये विचार आप सब तक एक बहस को आगे बढ़ाने के लिये पहुंचा रहा हॅू।
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