गंगा की तरह निर्मला को भी अपनी साख का सवाल बनाएंगे हरदा !
अविकल थपलियाल
… यूं तो नेता प्रतिपक्ष यशपाल आर्य एक समय कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष के तौर पर कई चुनावी चुनौतियों का मुकाबला कर चुके हैं। लेकिन भाजपा में जाने और फिर कांग्रेस मे लौटने के बाद चंपावत में उनका पहला चुनावी टेस्ट होने जा रहा है।
उधर, कांग्रेस में वापसी के बाद प्रीतम सिंह की नेता प्रतिपक्ष की कुर्सी खिसका कर भारी उलटफेर करने वाले यशपाल आर्य के मुख्य जोड़ीदार प्रदेश अध्यक्ष करण मेहरा ही माने जा रहे हैं। रानीखेत से चुनाव हारने के बाद करण मेहरा ने भी गणेश गोदियाल समेत कई अन्य दावेदारों को चौंकाते हुए संगठन की अहम कुर्सी पर अधिकार हासिल किया। नतीजतन, सीएम धामी से जुड़े अहम चम्पावत उपचुनाव में आर्य व करण के इस पहले इम्तहान के रिजल्ट पर प्रदेश से लेकर दिल्ली तक की निगाहें टिकी हुई है।
यशपाल व करण की ताजपोशी से कांग्रेस के कई बड़े नेता हरीश रावत व प्रीतम सिंह फिलहाल किसी भी प्रकार की चुनावी भार की नैतिक जिम्मेदारी से आधिकारिक तौर पर मुक्त हो गए हैं। चंपावत चुनाव की जीत-हार का इन दोनों सीनियर नेताओं को फिलहाल कोई क्रेडिट-डिस्क्रेडिट नहीं जाएगा।
लिहाजा, यह तय है कि चंपावत के राजनीतिक फैसले का अच्छा- बुरा असर आर्य-मेहरा की नयी जोड़ी पर ही पड़ेगा।
गौरतलब है कि भाजपा विधायक सुरेंद्र सिंह जीना की आकस्मिक मौत के बाद अप्रैल/ मई 2021 में हुए उपचुनाव में पूर्व सीएम हरीश रावत ने गंगा पंचोली के टिकट से लेकर प्रचार तक काफी ताकत झोंकी थी। कोरोना की चपेट में आये हरीश रावत ने दिल्ली एम्स से मतदाताओं के नाम अपील जारी करने के बाद आखिरी के तीन दिन सल्ट में चुनावी रैली भी की थी। दरअसल, पूर्व सीएम हरीश रावत ने सल्ट उपचुनाव में पार्टी के दावेदार रणजीत रावत व उनके पुत्र विक्रम रावत से टिकट झटक गंगा पंचोली को दिलवा दिया था। इस एपिसोड के बाद रणजीत रावत ने स्वंय को सल्ट उपचुनाव से अलग कर लिया था। कांग्रेस उम्मीदवार गंगा पंचोली की हार के पीछे हरदा-रणजीत की अंदरूनी गुटबाजी भी प्रमुख वजह रही।
हालांकि, सल्ट में लोकप्रिय रहे सुरेंद्र सिंह जीना की मौत के बाद भाजपा प्रत्याशी महेश जीना के पक्ष में सहानुभूति लहर भी खूब चली थी। बावजूद इसके जीत का अंतर बहुत ज्यादा (4 हजार) नहीं रहा था। चूंकि,गंगा पंचोली के टिकट की जंग हरदा ने ही लड़ी थी, लिहाजा, सल्ट उपचुनाव की हार के छींटे मुख्य तौर पर हरीश रावत के दामन पर ही पड़े थे।
इधर, चंपावत उपचुनाव में निर्मला गहतोड़ी के टिकट का श्रेय हरीश विरोधी गुट ले उड़ा। चंपावत में हमेशा से ही हरीश रावत के पसंदीदा प्रत्याशी रहे पूर्व विधायक हेमेश खर्कवाल ‘पलायन’ कर गए। चंपावत सीट पर उम्मीदवार के चयन के लिए गठित चयन समिति की बैठक में भी हेमेश खर्कवाल नहीं पहुंचे थे। लिहाजा, हरीश विरोधी गुट ने पार्टी की जिलाध्यक्ष रहीं निर्मला गहतोड़ी का नाम आगे कर दिया। निर्मला गहतोड़ी के टिकट के समर्थन में प्रदेश अध्यक्ष करण मेहरा, पूर्वं नेता विपक्ष प्रीतम सिंह, खटीमा विधायक भुवन कापड़ी की अहम भूमिका की चर्चा में रही।
विधानसभा चुनाव की हार के बाद अंदरूनी झटकों से डोल रही कांग्रेस इस सच्चाई से भी वाकिफ है कि बीते 21 साल में उत्तराखंड कोई भी सीएम अपना उपचुनाव नहीं हारा। इस बार भाजपा को यही इतिहास दोहराए जाने की पूरी उम्मीद है।
ऐसे में 20 मई के बाद चंपावत की ओर रुख करने वाले पूर्व सीएम हरीश रावत के अगले कदम पर राजनीतिक विश्लेषकों की नजरें टिकी हुई है । पूर्व सीएम हरीश रावत का पार्टी प्रत्याशी निर्मला गहतोड़ी के नामांकन में नहीं पहुंचना भी एक बड़ी खबर बनी थी। गंगा पंचोली के लिए दिन रात एक करने वाले हरीश रावत निर्मला के लिए 23 मई के बाद किस सीमा तक मार्च पास्ट करेंगे, यह देखना भी दिलचस्प होगा। वो भी तब जब कांग्रेस के चुनावी रथ की कमान आर्य-मेहरा की उंगलियों ने थामी हुई है।
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