उत्तराखंड महापरिषद ने ‘उत्तराखंड की दशा व दिशा व ज्वलंत मुद्दों’ पर किया परिचर्चा का आयोजन
यूकेडी का सपना मीलों पीछे छूट गया- पुष्पेश त्रिपाठी
अविकल उत्तराखंड
लखनऊ। उत्तराखंड महापरिषद ने ”उत्तराखंड की दशा व दिशा व ज्वलंत मुददे ‘ पर एक परिचर्चा का आयोजन किया। अनेक वक्ताओं ने उत्तराखंड राज्य की स्थिति के बारे में तथ्यात्मक विचार रखने के साथ अपने काव्य के माध्यम से भी उत्तराखंड की पीड़ा को बयां किया । मंगलवार की शाम को हुई परिचर्चा में मुख्य वक्ता व मुख्य अतिथि के तौर पर पुष्पेश त्रिपाठी , पूर्व विधायक द्वाराहाट एवं पूर्व अध्यक्ष यूकेडी, उत्तराखंड व अध्यक्षता कर रहे नवीन जोशी, पूर्व संपादक, हिंदुस्तान ने विचारणीय मुद्दे उठाए।
पुष्पेश त्रिपाठी ने उत्तराखंड राज्य के गठन से लेकर आज तक की स्थितियों तथा उत्तराखंड क्रांति दल की राज्य गठन में भूमिका पर विस्तार से प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि यूकेडी ने जिस विजन व मिशन के साथ उत्तराखंड राज्य का सपना देखा था वह मीलों पीछे छूट गया। इसी कारण उत्तराखंड मे आज भी स्थितियां काफी दयनीय है।
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे पत्रकार नवीन जोशी ने उत्तराखंड की जल और जमीन के साथ शिक्षा, स्वास्थ्य पर प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि आज जब हम उत्तराखंड मे अपना पुस्तैनी घर को सही करना चाहते है तो हमें हर चीज हल्द्वानी से खरीद कर लाना पड़ता है। हम पत्थर नही निकाल सकते, नदी से बालू नही निकाल सकते, जंगल से लकड़ी नही ला सकते, क्योकि हर चीज पर प्रतिबंध लगा है और माफियाओं का राज है। उन्होंने कहा कि इमरजेंसी के दौरान सबसे ज्यादा समय तक जेल मे यदि कोई उत्तराखंड का जमीनी नेता रहे तो वह स्व0 विपिन त्रिपाठी थे जो 18 माह की इमरजेंसी मे 22 माह जेल मे रहे और इन्होंने ही उत्तराखंड राज्य के गठन मे महत्वपूर्ण भूमिका रही।
अन्य वक़्ताओ मे धन सिंह मेहता, नारायण पाठक, घनानंद पांडेय, डा0 करुणा पांडेय, गोकुल त्रिपाठी, के0एस0 चुफाल, दीवान सिंह अधिकारी, कैलाश सिंह आदि रहे। पूरन सिंह जीना की रचना सराहनीय रही।
हरीश चंद्र पंत , अध्यक्ष, उमप, ने सभी अतिथियो का स्वागत किया व अपने विचार भी रखे । महासचिव भरत सिंह बिष्ट ने परिचर्चा मे प्रतिभाग करने वाले सभी महानुभावों का आभार व्यक्त किया गया।
वक्ताओं ने बुनियादी सवाल उठाते हुए कहा आज उत्तराखंड को बने 22 साल हो गए है और आज भी हमें इन मुद्दों पर परिचर्चा करने की जरूरत महसूस हो रही है तो कही न कही उत्तराखंड के सुदूर गांवो, जहाँ आज भी सड़कें नही है, कोई अस्तपाल नही है, पानी नही है, स्कूल नही है और कही न कही भ्रष्टाचार व्याप्त है, के बारे मे सोचने पर मजबूर कर देती है। जब जमीन ही नही रहेगी तो कैसे हम कह पाएंगे कि मेरा पैतृक घर उस गांव के उस जिले मे है। इसलिए उक्त मुददो पर गहनता से विचार कर उनके समाधान के लिए जिससे भी जो बन पड़ता है, करने की आवश्यकता है। भले ही हम लोग प्रवासी हो गए है परंतु हमारे दिलों मे आज भी उत्तराखंड हर पल रमता और बसता है तथा उसकी भलाई व विकास के बारे मे हर उत्तराखंडी जरूर सोचता है। चाहे कोई भी उत्सव हो उसमें उत्तराखंड का गाना न बजे और लोग न थिरके यह संभव ही नही है क्योकि हर व्यक्ति देवभूमि से सच्चा प्यार जो करता है।
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