हकीकत- हमलावर गुलदार ने खोली खुले में शौचमुक्त उत्तराखण्ड की कलई

पहाड़ी गांव में खुले में शौच के लिए गए मासूम पर गुलदार के हमले से ओडीएफ उत्तराखण्ड पर उठे सवाल

पौड़ी जिले के ग्राम ठांगर निवासी मोहन सिंह के घर में शौचालय नहीं, 5 लाख 37 हजार शौचालय बनाने का दावा

अविकल थपलियाल

पौड़ी/देहरादून। लगभग सात साल पहले उत्तराखण्ड खुले में शौच की प्रथा से मुक्त हो गया था। यह जानकारी तत्कालीन कैबिनेट मंत्री प्रकाश पंत ने जून 2017 में दी थी। देश में उत्तराखण्ड चौथा ऐसा राज्य बना जो ओडीएफ (  Open Defecation Free  ) की कतार में शामिल हो गया था। इसे विशेष उपलब्धि के तौर पर प्रचारित व प्रसारित किया गया।

और अभी कुछ दिन पहले के ताजे आंकड़े के मुताबिक अब तक राज्य में कुल 5 लाख 37 हजार से अधिक शौचालय विहीन परिवारों के लिए शौचालयों का निर्माण किया जा चुका है।

खुले में शौच मुक्त उत्तराखण्ड के यह आंकड़े बरबस इसलिए याद आये क्यों कि  गुलदार के हमले में सात साल कार्तिक घायल हो गया। एम्स ऋषिकेश में कार्तिक का इलाज चल रहा है। गुलदार के आतंक को देखते हुए पौड़ी के डीएम ने आस पास के इलाकों के स्कूल दो दिन के लिए बन्द कर दिए हैं।

यूं तो उत्तराखण्ड में आये दिन गुलदार व बाघ के हमले में मौतें हो रही है। लेकिन कार्तिक पर हमले की वजह के पीछे कुछ दूसरी ही कहानी सामने आयी।

21 सितम्बर को गुलदार ने पौड़ी जिले के विकास खंड द्वारीखाल के ग्राम ठांगर निवासी मोहन सिंह के पुत्र कार्तिक पर हमला किया। घटना सुबह 7 बजे की है।

घायल मासूम कार्तिक

21 सितंबर की सुबह कार्तिक और छोटी बहन 4 वर्षीय माही घर से बाहर खुले में शौच के लिए गए थे।  जहां पहले से ही घात लगाकर  बैठे गुलदार ने अचानक कार्तिक पर हमला कर दिया।  उसके साथ में उसकी 4 वर्षीय बहन  माही भी थी । माही व कार्तिक के शोर मचाने व साहस दिखाने के बाद और गुलदार कार्तिक को छोड़कर भाग गया । गुलदार से हुए संघर्ष में कार्तिक बुरी तरह घायल हो गया।

सतपुली के हंस फाउंडेशन अस्पताल में प्राथमिक उपचार के बाद गम्भीर घायल कार्तिक को एम्स ऋषिकेश रैफर किया जहां उसका उपचार चल रहा है।

कार्तिक के पिता मोहन सिंह  मजदूरी करने घर से बाहर गया था ।  मोहन सिंह का घर में शौचालय नहीं है। शौच के लिए घर से बाहर खुले में जाते हैं।

इस तथ्य के खुलासे के बाद गुलदार के हमले की वजह भी साफ हो गयी। अनुसूचित जाति के मोहन सिंह के घर में शौचालय होता तो बच्चे खुले में नहीं जाते।

यह भी याद दिला दें कि 2017 में संसदीय कार्य, वित्त एवं पेयजल मंत्री प्रकाश पंत ने जानकारी दी थी कि 31 मई को राज्य के शेष तीन जिले देहरादून, हरिद्वार एवं पौड़ी भी खुले में शौच की प्रथा से मुक्त हो गए हैं। इस लक्ष्य को छूने के साथ ही उत्तराखंड ओडीएफ राज्य की श्रेणी में आ गया।

2017 में उत्तराखण्ड खुले में शौच की प्रथा से मुक्त हुआ

गौरतलब है कि उत्तराखंड में मार्च 2017 तक केवल सात जिले ओडीएफ थे। स्वजल परियोजना के तहत नई सरकार बनने के बाद रुद्रप्रयाग, पिथौरागढ़ और टिहरी भी ओडीएफ की श्रेणी में आ गए थे। शेष तीन जिलों देहरादून, हरिद्वार और पौड़ी के लिए सरकार के सामने 31 मई तक कुल 45,721 व्यक्तिगत शौचालय बनाने के लक्ष्य था, जिसे समय से पूरा कर लिया गया। पेयजल मंत्री प्रकाश पंत ने बताया कि 2014-15 में राज्य में कुल 63 हजार शौचालयों का निर्माण किया गया, वहीं बीते वित्तीय वर्ष में 3.35 लाख शौचालय बनाए गए।


अब अगर पौड़ी जिला सात साल पहले खुले में शौच की कुप्रथा से मुक्त हो गया तो मासूम कार्तिक व उसकी बहन को क्यों सुबह सुबह जंगल की ओर रुख करना पड़ा। सरकार के नुमाइंदे ग्राउंड जीरो पर जाकर ओडीएफ उत्तराखण्ड की पड़ताल करें। भविष्य में खुले में शौच के लिए पहाड़ के कई और मासूम गुलदार का निवाला बनते रहेंगे

(साथ में सतपुली से जगमोहन डाँगी)

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