चौबीस घण्टे चल रहा लंगर, मुस्तैद जवान,पत्रकार व दुखी परिजन की कर रहे सेवा
टनल साइट पर भारी ठंड, लकड़ी का भी कोई इंतजाम नही
बचाव में जुटे जवान लकड़ी का जुगाड़ कर जली आग से दूर कर रहे सुबह शाम की ठंड
प्रशासन की ओर से चाय पानी व जलावन लकड़ी का है इंतजार
अविकल उत्त्तराखण्ड/बोल चैतू
एनटीपीसी की तपोवन-विष्णुगाड परियोजना के टनल के मुहाने से-तारीख 10 फरवरी। आपदा को बीते चार दिन हो गए। सुबह- सुबह के 6 बजे। ठंड इतनी कि पाला बर्फ बन गया। टनल में फंसे लोगों को निकालने के लिए जेसीबी मशीन बार बार मलबा लाकर धौलीगंगा के किनारे फेंक कर फिर वापस मुड़ जाती। भारी ठंड में रेस्क्यू में जुटे जवान व अधिकारी टनल के बाहर खड़े। इस आशा में कि कब मलबा हटे और कब फंसे लोगों को निकाला जाएगा।
तपोवन से लगभग 2 किमी दूर टनल के मुहाने पर 7 फरवरी से ही रेस्क्यू टीम, स्थानीय लोग व मीडिया का जमावड़ा लगने लगता है। सुबह से ही माइनस डिग्री टेम्परेचर में काम शुरू हो जाता है जो देर रात तक चलता है।
जवान व लोग स्वंय की मेहनत से जुटायी गई लकड़ी व घास फूंस से जली आग में हाथ भी सेकते हुए। सात फरवरी को तांडव मचा चुकी धौलीगंगा अब शांत है।
टनल पॉइंट ले आस पास कुछ सिख ध्यान खींचते हैं। ये लोग भी टनल में काम करते थे। कोई अमृतसर से तो कोई पठानकोट से। भारी ठंड में ये लोग चाय पिला रहे हैं। इनके कुछ साथी टनल में फंसे हैं। जवानों और पत्रकारों के अलावा अन्य लोगों को बुला बुला कर चाय ,बिस्कुट परोस रहे हैं। यहां से तपोवन बाजार 2 किमी दूर है। ऐसे दर्दनाक हालात व सर्द मौसम में इनकी चाय,रस्क व ब्रेड पकौड़ा लोगों के लिए किसी संजीवनी से कम नही है।
सुशील कुमार कहते हैं कि हमारी टीम पूरे चौबीस घंटे ड्यूटी बदल बदल कर इंसानियत का फर्ज निभा रही है। दुख की इस घड़ी में परोपकार ही धर्म है। अभी चाय पिलाने के बाद ये सिख भाई ब्रेड पकौड़ा बनाने की तैयारी कर रहे हैं। सुशील कुमार कहते हैं कि उनकी इटालियन कंपनी में हमारे हेड श्रवण जी पूरा सहयोग करते हैं। सुबह से लेकर रात तक जवान, दुखी परिजन व अन्य लोग इस चाय के स्टाल से ऊर्जा लेते रहते हैं।
मौके पर सुबह सुबह पहुंचने वाले पत्रकार सुरेंद्र डसीला कहते हैं कि ये नेकदिल व दरियादिल सिख भारी ठंड में बहुत परोपकार का काम कर रहे हैं। सभी को चाय पिला रहे हैं। यह जानकर ताज्जुब हुआ कि मुख्य घटनास्थल जहां टनल में लगभग 40 लोग फंसे हैं वहां पर प्रशासन की ओर से ऐसे किसी चाय-पानी का इंतजाम नहीं है। और न ही सुबह शाम की ठंड भगाने के लिए जलाऊ लकड़ी का भी इन्तजाम नहीं है। जवान व लोग जुगाड़ से आग जलाकर गर्मी दूर कर रहे हैं।
सात फरवरी से अभी तक कई वीवीआईपी आये और उनके हेलीकाप्टर धूल उड़ा कर चले गए। लेकिन मुख्य रेस्क्यू पॉइंट पर चौबीस घण्टे मौजूद जवान,परिजन व मीडिया कर्मियों के लिए जिला प्रशासन की ओर से किसी भी प्रकार के भोजन पैकेट, चाय, लकड़ी आदि की फौरी व्यवस्था नहीं है।
पत्रकार सुरेंद्र डसीला का कहना है कि कभी कभी आईटीबीपी के लंच पैकेट मिल जाते हैं, नहीं तो साथी पत्रकार अफजाल- किशोर आदि के साथ दो किमी दूर तपोवन बाजार जाना पड़ता है। कड़ाके की ठंड में सुबह से रात तक काम चल रहा है लेकिन आस पास जलाने के लिए लकड़ी का बंदोबस्त नहीं है।
कई परिजन भी सुबह से लेकर शाम तक टनल के इर्द गिर्द हैं । अंदर ही अंदर टूट रहे इन लोगों को भी इंसानियत व मानवीय पहल की दरकार है।ऐसे में तीरा सिंह,सुखदेव सिंह,सुखविंदर सिंह,दविंदर सिंह,बलजिंदर सिंह,सुशील कुमार की मानवीय पहल को बार बार सलाम।
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