“शिकारी” न्यूज़ पोर्टल्स के विज्ञापन दरों की आड़ ले तीरथ पर चला गए तीर

न्यूज़ पोर्टल्स के विज्ञापन दरों के “खेल” में सीएम तीरथ की छवि पर किया गया हमला

सिंडिकेट ने विज्ञापन दरों को न्यूनतम पर पटका। बीते साल के मुकाबले दस गुना कम रेट पर खुला टेंडर

पत्रकारों ने DG सूचना के सामने किया साजिश का खुलासा

DG ने कहा, पत्रकारों के साथ नही होगा अन्याय

पोर्टल्स की नियमावली में मूलभूत संशोधन की जरूरत

प्रदेश के बाहर के पोर्टल्स की सूचीबद्धता पर उठा विवाद

अविकल उत्त्तराखण्ड


देहरादून । प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व जेपी नड्डा बार बार सोशल मीडिया/डिजिटल मीडिया की गंभीरता व अहमियत का उल्लेख करते दिखाई देते हैं। लेकिन उत्त्तराखण्ड में मौजूद सिंडिकेट “नियमों” की ही आड़ लेकर डिजिटल मीडिया का गला घोंट रहा है। हाल ही में न्यूज़ पोर्टल्स के विज्ञापनों के e टेंडर में बीते साल के मुक़ाबले दस गुना कम रेट खुलने से सीएम तीरथ सिंह रावत के खिलाफ कई स्तरों में हुई साजिश का खुलासा हुआ।

  उत्त्तराखण्ड के न्यूज़ पोर्टल में e टेंडर के जरिये विज्ञापनों दरों में हुए ‘खेल’ को लेकर पत्रकारों ने सूचना महानिदेशक रणवीर चौहान के सामने अपनी बात रखी। और एक ज्ञापन सौंपा। e टेंडरिंग में बीते साल की तुलना में दस गुना कम रेट आने पर हैरानी जताई गई।

पत्रकारों के शिष्टमंडल ने कहा कि एक गहरी साजिश व खेल के तहत सीएम तीरथ सिंह रावत सरकार की पत्रकार विरोधी छवि बनाने का कुत्सित प्रयास किया गया है। इस खेल में कई साजिशकर्ताओं की ओर भी खुला इशारा किया गया।

सीएम पर पोर्टल्स की ओट से हमला

पत्रकारों ने कहा कि पोर्टल्स के विज्ञापनों की दरों के मुद्दे ओर विभाग को नए सिरे से नियमावली बनानी चाहिए। प्रदेश के बाहर के पोर्टल्स से जुड़े बिंदुओं की गहन जांच की भी मांग की गई। पोर्टल्स की आ रही बाढ़ (लगभग 350 पोर्टल्स) को रोकने के लिए भी सख्त नियम बनाने का सुझाव दिया गया। केवल ठोस पत्रकारीय पृष्ठभूमि  से जुड़े  पत्रकारों के पोर्टल्स को ही सूचीबद्ध करने की मांग की गई। सूचीबद्धता के मामले में हुई जांच के मामले में सूचना विभाग की ओर से की गई हीलाहवाली की ओर भी महानिदेशक का ध्यान आकर्षित किया गया। कहा गया कि अन्य धंधों में लिप्त कई गैर पत्रकार भी पोर्टल्स की दुकान सजाए बैठे हैं। साथ ही बीते कुछ समय से राज्य से बाहर के पोर्टल्स को सूचना विभाग से मिल रही “आक्सीजन” पर भी गहरी आपत्ति जताई गई।

शिष्टमंडल ने कहा कि अगर e टेंडरिंग में विज्ञापन की न्यूनतम दरें 3-4 लाख रुपए तय होती तो क्या विभाग पोर्टल्स प्रतिनिधियों को सहमति पत्र भेजता। जैसा मौजूदा न्यूनतम दर आने पर 11 जून तक सहमति पत्र भेजने को कहा गया है।

पत्रकारों के शिष्टमंडल ने कहा कि सीएम आने अधिकारों का प्रयोग करते हुए बेहद असंगत विज्ञापन दरों को खारिज करते हुए सम्मानजनक रेट्स जारी करे। सूचना महानिदेशक चौहान ने कहा कि सरकार पत्रकारों के हितों के लिए कटिबद्ध है। सीएम स्वंय ही पत्रकारों से जुड़े मुद्दों पर संवेदनशील है। उन्होंने कहा कि जल्द ही इस मुद्दे पर सुसंगत फैसला किया जाएगा।उन्होंने  आश्वस्त करते हुए कहा कि विभाग इस प्रकरण पर समीक्षा कर इन सारी जानकारियों पर बिंदुवार काम करेगा व जल्दी ही मुख्यमंत्री से मुलाकात कर इसका समाधान किया जाएगा।

DG को सौंपा दस सूत्री ज्ञापन

महोदय, कोरोना काल में न्यूज पोर्टल पत्रकारों के आर्थिक संकट को देखते हुए इस पूरे वर्ष हर माह सम्मानजनक राशि (वर्ग क के लिए 50 हजार, वर्ग ख के लिए 35 हजार और वर्ग ग के लिए 20 हजार के विज्ञापन) जारी किए जायें। ताकि न्यूज पोटल्स की पूरी टीम पूरे मनोयोग व ईमानदारी से सरकार के विकास कार्यों से जुड़ी खबरों को प्राथमिकता से लिखे व सोशल मीडिया के विभिन्न माध्यमों से उनका प्रचार-प्रसार कर सके।

2- समूह क, ख, ग की विगत बर्ष निर्धारित दरों से 20 प्रतिशत अधिक निर्धारित करने के लिए अपने सर्वाधिकार का प्रयोग करें।

3- समूह क और ख वर्ग के न्यूज पोर्टल्स की विज्ञापन दरों के रेट एक जैसे हैं। यह निर्धारित ई-टेंडर प्रक्रिया की पारदर्शिता पर प्रश्नचिन्ह लगाता है, अतः अपने अधिकार का प्रयोग करते हुए इसमें सुधार करने की कृपा करें।

4- समूह ग के न्यूज पोर्टल्स के रेट भी पिछले साल की तरह ही हैं। यह निर्धारित ई-टेंडर प्रक्रिया की पारदर्शिता पर प्रश्नचिन्ह लगाता है, अतः अपने अधिकार का प्रयोग करते हुए इसमें सुधार करने की कृपा करें।

5- जिस भी न्यूज पोर्टल संस्थान द्वारा सबसे न्यूनतम दर डाली है, उन्हें चिन्हित कर अपना सर्वाधिकार का प्रयोग कर उन्हें मात्र उस राशि का विज्ञापन जारी हो, न कि उसे अन्य पत्रकारों की भांति अन्य लाभ श्रेणियों में रखा जाय।

6- महोदय, इस बांत की भी जांच कराई जाये कि क्या स्क्रूटनी करते समय राज्य से बाहर के न्यूज पोर्टल्स के दस्तावेजों की गहनता से जांच की गई थी। अगर हां तो इस बात का ध्यान क्यों नहीं रखा गया कि कतिपय न्यूज पोर्टल प्रदेश से बाहर के हैं जबकि निविदा में यह नियम पहले से है कि बाहरी न्यूज पोर्टल्स का कार्यालय प्रदेश में होना चाहिये।

7-राज्य से बाहर के कुछ न्यूज पोर्टल्स को सूचीबद्व किया गया है, जिनका कार्य क्षेत्र उत्तराखंड नहीं है, और न ही उत्त्तराखण्ड से इनका कोई लेना देना है। इनके द्वारा दिए गये कार्यालयों के पतों पर हमें संदेह है। इसलिए राज्य से बाहर के पत्रकारों की एलआईयू जांच कराई जाए। इसमें इनके स्थानीय पते व आधार कार्ड समेत अन्यत दस्तावेजों का गहनता से अध्ययन किया जाये कि कहीं इनमें से कोई सरकार विरोधी गतिविधियों में संलिप्त तो नहीं है।

8- इस शर्त का कठोरता से पालन हो कि न्यूज पोर्टल्स चलाने वाले पत्रकार व उनके कार्यालय उत्तराखण्ड मूल के ही हों, क्योंकि अपुष्ट जानकारियों के हिसाब से पता चला है कि साजिश के तहत अन्य राज्यों से न्यूज पोर्टल्स की उत्तराखंड मीडिया में घूसपैठ करवाई जा रही है। इसमें कई ऐसे लोग भी शामिल हैं जिनका पत्रकारिता से सीधा कोई वास्ता नहीं है, अपितु समय आने पर इन्हें राजनीतिक पार्टियां अपने निजी स्वार्थों के हिसाब से उत्तराखंड में इस्तेमाल करेंगी।

9- महोदय, सबसे महत्वपूर्ण सुझाव यह है कि भविष्य में न्यूज पोर्टल्स सूचीबद्धता की ई टेंडर या टेंडर प्रक्रिया को समाप्त कर दिया जाये। इसकी जगह जल्द से जल्द नीति बनाकर न्यूज चैनल्स व अखबारों की भांति न्यूज पोर्टल्स को भी सूचीबद्ध किया जाये और विभाग द्वारा विज्ञापन की दरें तय की जायें। ऐसा करने से न्यूज पोर्टल्स की भेड़ चाल समाप्त हो सकती है।

10- महोदय, इस जून में सभी न्यूज पोर्टल्स को विज्ञापन जारी कर दिए जाएं। इसके साथ ही न्यूज पोर्टल्स सूचीबद्वता की प्रक्रिया के लिए भी नीति निर्धारण पर काम प्रारम्भ कर दिया जाए। नीति में उत्तराखंड में रहकर कार्य कर रहे स्थानीय न्यूज पोर्टल्स को ही विज्ञापन में प्राथमिकता दी जाये।

महानिदेशक सूचना एवं लोकसंपर्क विभाग रणवीर सिंह चौहान ने सभी बिंदुओं का संज्ञान लेते हुए कहा है कि मुझे कुछ समय दें। बहुत जल्दी ही आपको इस सब पर साकारात्मक परिणाम दिखने को मिलेंगे। वे कभी नहीं चाहेंगे कि वे सूचना विभाग में सबसे कम विज्ञापन रेट देने वाले महानिदेशक के रूप में गिने जाएं।

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