जागर सम्राट प्रीतम भरतवाण हों या हास्य सम्राट घनानंद दोनों हारे
विपिन बनियाल/अविकल उत्तराखंड
-सफलता की डगर यूं तो हर क्षेत्र में कठिन है, लेकिन चुनावी सियासत की बात करें, तो मामला और मुश्किल भरा हो जाता है। यही कारण है कि कला-संगीत के क्षेत्र में चमकने वाले दो लोक कलाकार चुनावी सियासत के आसमान पर चमक नहीं बिखेर पाए। सबसे पहले, जागर सम्राट प्रीतम भरतवाण की बात। लोक संगीत के क्षेत्र में प्रीतम भरतवाण ने बुलंदियों को छुआ है। उनके जागर और अन्य गीत सीधे दिल पर उतरते हैं।
उनकी लोक संगीत की साधना का बड़ा पुरस्कार लोेगों का प्यार तो है ही, सरकारी तौर पर भी पदमश्री मिलने के बाद अब वह डाक्टर प्रीतम भरतवाण हैं। वर्ष 2007 के विधानसभा चुनाव में प्रीतम भरतवाण ने टिहरी की धनोल्टी सीट से चुनाव लड़ा था। हालांकि पहले कांग्रेस से उन्हें टिकट दिए जाने की बात हो रही थी, लेकिन बाद में उन्हें यूकेडी ने अपना उम्मीदवार बनाया। मगर भाजपा उम्मीदवार खजान दास से वह जीत नहीं पाए।
अब हास्य सम्राट घनानंद यानी घन्ना भाई की बात कर लें। धन्ना भाई काफी समय से भाजपा से जुडे़ हैं। वर्ष 2012 में उन्होंने पौड़ी सुरक्षित सीट से भाजपा उम्मीदवार बतौर चुनाव लड़ा, लेकिन जीत नहीं पाए। जीत नसीब हुई कांग्रेस के सुंदरलाल मंद्रवाल को।
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2017 और 2022 के विधानसभा चुनाव में उन्हें पार्टी ने अपना उम्मीदवार नहीं बनाया। हालांकि त्रिवेंद्र सरकार के दौरान उन्हें कला-संस्कृति से संबंधित परिषद में दायित्वधारी जरूर बनाया गया था। इन दो लोक कलाकारों की चुनावी कहानी को विस्तार से जानने के लिए देखिए यू ट्यूब चैनल धुन पहाड़ की।
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