कुमाऊं में चुनावी रंगत की आंखों देखी कहानी

उत्त्तराखण्ड के विधानसभा चुनाव में कुमाऊं की सीटों पर कैसा मुकाबला चल रहा है। मतदाता के मन में क्या है। यह जानने के लिए गुमनाम रिपोर्टर ने जमीनी हकीकत जानने की कोशिश की है। चैतू  ने बताया आंखों देखा हाल-

सोमेश्वर-

लोद और सोमेश्वर घाटी भाजपा के झंडों से पटी है। दुकानों के बाहर भाजपा की ही पताकाएं हैं। लोद घाटी में महिलाएं उमड़कर भाजपा के झंडे लिए मार्च कर रही थीं। चनौदा में झंडे कम हैं, मगर जहां हैं भाजपा के ही हैं। इससे पहले मैंने फोन से कुछ कर्मचारियों से बात की थी वह बता रहे थे राजेंद्र बाराकोटी बराबरी में आ गए हैं, मगर पूरी घाटी में एक गाड़ी पर थके हुए लाउडस्पीकर के अलावा कांग्रेस का कुछ नहीं। एक दुकानदार ने बताया है भाजपा का प्रचार तंत्र बहुत मजबूत है। गांवों में इतना एकतरफा नहीं है।

रानीखेत-

दस दिन पहले तक माना जा रहा था कि भाजपा कांग्रेस प्रत्याशी को निर्विरोध चुनने जा रही है। भाजपा से 7 उम्मीदवार मैदान में थे। सांसद अजय भट्ट को सीट का गार्जन माना जा रहा था, लेकिन उन्हें चिर  विरोधी प्रमोद नैनवाल से मुंह की खानी पड़ी। मगर, नैनवाल को टिकट फाइनल होने के बाद समीकरण तेजी से बदल गए हैं। नैनवाल भिकियासैंण-भतरौजखान में मजबूत हैं। स्थानीय पत्रकार सीट को 19-20 का मुकाबला मान रहे हैं। करन महरा की व्यक्तिगत की छवि बेहतर है, 2 साल ग्राम पंचायत स्तर पर एक्टिव रहे हैं, नैनवाल के प्रति पुरानी सहानुभूति है। युवा उनके साथ अधिक हैं। यहाँ सतह पर प्रचार न होकर गांव गांव तक जोर आजमाइश हो रही है।


द्वाराहाट-

भाजपा विधायक महेश नेगी पर लगे दाग से पार्टी यहां बैकफुट पर खेल रही है। उक्रांद प्रत्याशी को 2019 लोक सभा चुनाव से भारी डेंट लगा, जब उक्रांद मतदाता भाजपा की तरफ शिफ्ट हो गया। उधर, कांग्रेस प्रत्याशी मदन बिष्ट लगातार पांच साल से एक्टिव रहे हैं, उनके पास कार्यकर्ताओं की भारी जमात है। भाजपा और कांग्रेस दोनों के प्रत्याशी बगवालीपोखर से हैं, मगर यहाँ भाजपा के झंडे नाम पर को हैं। मदन बिष्ट के आवास से महिलाओं की अलग-अलग टोलियां प्रचार को निकल रहे हैं। आज यहाँ उक्रांद पुष्पेश की भी रैली होनी हैं, दिल्ली से चारू तिवारी प्रचार को पहुंचे हैं। स्थानीय लोग इस सीट को त्रिकोणीय मानने को तैयार नहीं। जिसका वोट इंटेक्ट रहेगा वही भारी पड़ेगा। अनिल शाही ने बूथ लेवल फार्मूला पकड़ा है। मगर, रानीखेत की तुलना में यहां भाजपा का जमीनी नेटवर्क थोड़ा कमजोर है।

बागेश्वर-

कौसानी से बागेश्वर सीट शुरू हो जाती है। कौसानी से कुछ आगे तक सुनसानी थी।  गरुड़-बैजनाथ से परिदृश्य चुनावी मिलता है। गाड़ियों से, लाउडस्पीकर से, घरों-दुकानों में लगे झंडों से और अलग-अलग जत्थेबंदियों से यह समझ आ रहा था कि आम आदमी पार्टी यहां जमकर चुनाव लड़ रही है। प्रचार सामग्री और शोरशराबे में झाड़ू नंबर 1, कमल नंबर 2, हाथ नंबर 3 पर है। फिर मैंने गाड़ी रोककर कुछ मित्रों से इस सीट का गणित समझना चाहा। पहली बात तो मालूम पड़ी कि आम आदमी पार्टी का प्रत्याशी आम आदमी नहीं, खड़िया खनन व्यवसायी है।

खर्च करने के मामले में नंबर एक पर है। पहले भी बसपा से दो चुनाव लड़ चुका है, सो चुनाव प्रबंधन का अनुभव उसे है। ज्यादातर मित्रों ने बताया कि झाड़ू ने इस सीट को त्रिकोणीय बना दिया है। कुछ ने बताया चुनाव झाड़ू और कमल के बीच बाइपोलर होने जा रहा है। गागरीगोल में सपा का एक जुलूस निकला, ढोल नगाड़ों के साथ। छोटा समूह मगर सशक्त। कोई युवा प्रत्याशी है जो अभी छवि निर्माण के लिए दांव आजमा रहा है। यहाँ कुछ भाजपा कार्यकर्ताओं से बात हुई। उनका कहना था झाड़ू वाले सुंदर जी अभी टैम्पो अच्छा बनाए हुए हैं, मगर ये कांग्रेस को डैमेज कर रहे हैं, भाजपा को इससे फायदा होगा। फिर बागेश्वर में कई लोगों से बात करने का मौका मिला। लोगों ने बताया आम आदमी पार्टी और उससे जुड़े नागरिक मंच, इसका लाभ प्रत्याशी को मिला है।

  यहां ‘इंडिया अगेंस्ट करप्सन’ मूवमेंट काफी सक्रिय रहा था। सुंदर लाल का अपना भी जनाधार है। लेकिन, चुनावी बिगुल बजते बजते यहाँ केमिस्ट्री बदली। प्रत्याशी की अपनी टीम आम आदमी और नागरिक संगठन की पुरानी टीम पर हावी हो गई। पुरानी टीम के कई सक्रिय सदस्य उदासीन हो गए। जिस तरह से प्रत्याशी ने येनकेन प्रकारेण चुनाव  जीतने का काम किया, धन और शराब का इस्तेमाल हो रहा है पुराने कार्यकर्ता तेजी से कदम पीछे खींच रहे हैं। चुनाव की रणनीति बाहर से आये लोग तय करते हैं और वे आम आदमी पार्टी नेटवर्क से अलग हैं। पत्रकारों ने बताया कि पिछले कुछ वर्षों से नागरिक समूहों, रेड क्रॉस टीम और युवाओं की टीम ने एक अलग तरह की राजनीति शुरू की थी। मगर, यह राजनीति भी आम आदमी पार्टी के जरिये खड़िया माफिया के चंगुल में जा फँसी। सतह पर आम आदमी का प्रचार जरूर हावी है, लेकिन भाजपा का  मजबूत नेटवर्क ही भारी पड़ेगा।

आम आदमी भाजपा विरोधी मतदाताओं का विभाजन करेगी, इससे बीजेपी अधिक सुगमता से जीत जाएगी। कांग्रेस के रंजीत दास की छवि अन्य प्रत्यशियों के मुकाबिल बेहतर हैं क्योंकि उन्हें बहुत करीब से लोग नहीं जानते। दूसरा कांग्रेस से दो असंतुष्ट प्रत्याशी भी नुकसान पहुंचा रहे हैं। कोई व्यापक अंडरकरंट ही कांग्रेस की नैया पार लगा सकता है, जिसके कोई सिम्पटम्स दिख नही रहे। प्रचार का समय होता तो कांग्रेस सम्भवतः उभरती।

कपकोट-

भाजपा की ओर से युवा सुरेश गड़िया को टिकट मिला तो यहाँ भाजपा में भगदड़ मच गई। खासकर, पुराने कद्दावर शेर सिंह गड़िया ने बगावत का बिगुल फूंक दिया। भाजपा की लगभग पूरी ही कार्यकारिणी भाजपा से बाहर आ गई मगर यहाँ डैमेज कंट्रोल के प्रयास गंभीरता से हुए और अब काफी हद तक स्थिति नियंत्रण में है। और भाजपा मुख्य मुकाबले में आ खड़ी हो गई है। सिटिंग एमएलए बलवंत भौर्याल के खिलाफ भारी एन्टी-इनकंबेंसी यहाँ थी और संगठन के सर्वे को खुद भौर्याल ने स्वीकार किया था मगर वह चुपके से अपने ही खास व्यक्ति को टिकट दिलाने में सफल हो गए।

भाजपा की उठापटक के बीच कांग्रेस प्रत्याशी ललित फर्स्वाण तेजी से उभर आये थे। सीट को जानने वालों का कहना है कि अंतिम समय तक मामला काँटे का हो जाएगा। अभी कांग्रेस को हल्का एज है और यह एज बना रहे इसका सारा दारोमदार शेर सिंह गढ़िया और उत्थान समिति के उमेश जोशी पर है, जो वोटों की अदला बदली के माहिर खिलाड़ी हैं। सीट पर आम आदमी पार्टी के भूपेश उपाध्याय भी जोर आजमा रहे हैं लेकिन बागेश्वर सीट की तुलना में यहां वैसे समीकरण नहीं। देखना होगा कि उपाध्याय भाजपा के असंतुष्ट वोटों में सेंध लगाते हैं या कांग्रेस के। मामला करीबी हुआ तो यह निर्णायक हो जाएगा।

पुरानी कांडा विधान सभा अब कपकोट का हिस्सा है। बताया जा रहा है कि यहां के खनन व्यवसायी बलवंत भौर्याल से बेहद नाराज हैं और कांग्रेस के साथ लामबंद हो गए हैं। धरमघर क्षेत्र में भी कांग्रेस मजबूत स्थिति में बताई जा रही है। भराड़ी के कुछ युवा जो भाजपा से नाराज थे, आम आदमी के पाले में गए थे अब कांग्रेस को मदद कर रहे हैं। मल्ला दानपुर में भी कांग्रेस का पुराना मतदाता लौटता बताया जा रहा है।

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