दून में वस्त्र उद्योग के लिए बांस की संभावनाओं पर की चर्चा
अविकल उत्तराखंड
देहरादून । केंद्रीय वस्त्र मंत्री गिरिराज सिंह ने कहा कि “यह नौकरियों के सृजन, संवहनीयता और भारत को वैश्विक कपड़ा मानचित्र पर लाने के बारे में है।” कहा कि कपड़ा आपूर्ति श्रृंखला में बांस को एकीकृत करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है,जो बढ़ते वैश्विक बाजार के लिए पर्यावरण के अनुकूल समाधान का वादा करती है। बैठक में अनुसंधान को आगे बढ़ाने,उद्योगों की प्रगति में सहयोग करने पर रणनीति बनी। बांस को फैशन और उससे परे लोकप्रिय बनाने पर भी सुझाव आये।
बैठक में वन अनुसंधान संस्थान की निदेशक डॉ. रेनू सिंह ने बांस पर अपने शोध के बारे में जानकारी दी। उन्होंने इसके महत्व पर जोर दिया और इस क्षेत्र में भविष्य की संभावनाओं पर चर्चा की। बांस पर एक संक्षिप्त प्रस्तुति वन अनुसंधान संस्थान,देहरादून के वैज्ञानिकों द्वारा प्रस्तुत की गई,जिसमें घुलनशील ग्रेड पल्प (डीजीपी) के लिए बांस के उन्नत उपयोग और कपड़ा उत्पादन में इसके अनुप्रयोग पर ध्यान केंद्रित किया गया। एफआरआई के वैज्ञानिकों की टीम ने घुलनशील ग्रेड पल्प उत्पादन के लिए विभिन्न भारतीय बांस प्रजातियों के अपने अनुसंधान से निष्कर्ष प्रस्तुत किए,जो रेयान और विस्कोस जैसे कपड़ा फाइबर के निर्माण में एक महत्वपूर्ण घटक है।
शोध के दौरान प्राप्त निष्कर्ष में नौ में से दो को शीर्ष प्रदर्शन करने वाली प्रजातियों के रूप में पाया गया,जिनमें उच्च अल्फा-सेल्यूलोज सामग्री (52% से अधिक),राख और सिलिका की कम मात्रा और उत्कृष्ट लुगदी के गुण हैं। यह बांस को लकड़ी आधारित लुगदी के लिए एक टिकाऊ विकल्प के रूप में स्थापित करता है,जो भारत के विशाल बांस भंडार का दोहन करता है।
केंद्रीय मंत्री ने इस प्रयास की सराहना करते हुए कहा,“बांस की तीव्र वृद्धि एवं संवहनीय गुण इसे कपड़ा उत्पादन के लिए एक आदर्श संसाधन के रूप में स्थापित करती है,जो आत्मनिर्भर,हरित अर्थव्यवस्था के हमारे दृष्टिकोण को साकार करती है।”
डॉ. रेनू सिंह ने अपने व्यक्तव्य में कहा,“यह शोध ग्रामीण आजीविका को बेहतर बनाने के साथ-साथ उच्च मूल्य वाले उद्योगों में बांस के उपयोग का मार्ग प्रशस्त करता है। ”डॉ. रेनू सिंह ने उक्त बैठक के सहयोगी भावना पर प्रकाश डालते हुए कहा, “हम एक साथ मिलकर अधिक हरित समृद्ध उद्योग के लिए आधार तैयार कर रहे हैं।”
बैठक में श्रीमती कंचन देवी, महानिदेशक, भारतीय वानिकी अनुसंधान एवं शिक्षा परिषद, देहरादून, डॉ. रेनू सिंह, निदेशक, वन अनुसंधान संस्थान, देहरादून, एफआरआई के वरिष्ठ वैज्ञानिक, डॉ. ए.के. शर्मा, निदेशक, भारतीय जूट उद्योग अनुसंधान संघ (IJIRA), कोलकाता, रेशम तकनीकी सेवा केंद्र, प्रेमनगर देहरादून के वैज्ञानिक तथा विकास आयुक्त कार्यालय हस्तशिल्प सेवा केंद्र, वस्त्र मंत्रालय,देहरादून के सहायक निदेशक उपस्थित थे।
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