दयालबाग शिक्षण संस्थान को मिली होम्योपैथी कॉलेज की मान्यता

होम्योपैथी का इतिहास और समकालीन महत्व

अविकल उत्तराखंड 

देहरादून।  होम्योपैथी का इतिहास 18वीं शताब्दी के अंत में शुरू होता है, जब जर्मन चिकित्सक सैमुअल हैनिमैन ने इस चिकित्सा पद्धति की नींव रखी। उन्होंने “समरूपता के सिद्धांत” (Law of Similars) को प्रतिपादित किया, जिसके अनुसार किसी स्वस्थ व्यक्ति में रोग के लक्षण उत्पन्न करने वाला पदार्थ, बीमार व्यक्ति में उन्हीं लक्षणों को ठीक कर सकता है। हैनिमैन ने स्वयं पर और स्वयंसेवकों पर विभिन्न पदार्थों के प्रयोग किए और उनके प्रभावों का विस्तृत दस्तावेजीकरण किया।

उन्होंने पाया कि कम मात्रा में दिए गए ये पदार्थ रोग के लक्षणों को ठीक करने में सक्षम थे। हैनिमैन ने दवाओं के निर्माण के लिए “पोटेंसीकरण” (Potentization) की प्रक्रिया विकसित की, जिसमें मूल पदार्थ को बार-बार तनु (dilute) किया जाता है और हर बार उसे हिलाया जाता है (succussion)। इस प्रक्रिया से दवा की विषाक्तता कम होती है और इसकी चिकित्सीय शक्ति बढ़ती है।

19वीं सदी में होम्योपैथी का यूरोप और अमेरिका में तेजी से विकास हुआ। यह उस समय की पारंपरिक चिकित्सा पद्धतियों के मुकाबले कम हानिकारक और अधिक प्रभावी मानी जाती थी। भारत में होम्योपैथी 1810 में आई, जब जर्मन मिशनरियों ने इसकी दवाएँ बाँटनी शुरू कीं। 1839 में डॉ. जॉन होनिगबर्गर ने महाराजा रणजीत सिंह का सफल इलाज करके इसे और लोकप्रिय बनाया। 1973 में भारत सरकार ने एक केंद्रीय अधिनियम पारित करके होम्योपैथी को आधिकारिक मान्यता दी। आज होम्योपैथी दुनिया भर में एक लोकप्रिय वैकल्पिक चिकित्सा पद्धति है। इसके समर्थक इसके सुरक्षित, प्राकृतिक और व्यक्तिगत उपचार दृष्टिकोण की प्रशंसा करते हैं। हालाँकि, इसकी प्रभावशीलता पर वैज्ञानिक समुदाय में बहस जारी है। कुछ अध्ययन इसके लाभों का समर्थन करते हैं, जबकि अन्य इसे प्लेसीबो प्रभाव से अधिक नहीं मानते।
आज के संदर्भ में होम्योपैथी का महत्व:

साइड इफेक्ट्स से मुक्ति: आजकल दवाओं के साइड इफेक्ट्स एक बड़ी चिंता हैं। होम्योपैथी इस मामले में एक सुरक्षित विकल्प प्रदान करती है, क्योंकि इसकी दवाएँ अत्यधिक diluted होती हैं और आमतौर पर साइड इफेक्ट्स नहीं पैदा करतीं। यह बच्चों, गर्भवती महिलाओं और बुजुर्गों के लिए विशेष रूप से फायदेमंद हो सकती है

दीर्घकालिक रोगों का प्रबंधन: क्रॉनिक बीमारियों जैसे एलर्जी, अस्थमा, त्वचा रोग आदि के लिए होम्योपैथी एक सहायक चिकित्सा पद्धति हो सकती है। यह रोग के मूल कारण पर काम करने का प्रयास करती है और लक्षणों को दबाने के बजाय शरीर के प्राकृतिक उपचार तंत्र को उत्तेजित करती है।

मानसिक स्वास्थ्य: आज के तनावपूर्ण जीवन में मानसिक स्वास्थ्य समस्याएँ बढ़ रही हैं। होम्योपैथी चिंता, अवसाद और अनिद्रा जैसे मुद्दों के लिए एक समग्र दृष्टिकोण प्रदान करती है।

प्राकृतिक और समग्र दृष्टिकोण: होम्योपैथी रोग को एक समग्र परिप्रेक्ष्य में देखती है और उपचार में व्यक्ति के शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक पहलुओं को शामिल करती है। यह प्राकृतिक पदार्थों से बनी दवाओं का उपयोग करती है, जो इसे पर्यावरण के प्रति जागरूक लोगों के लिए एक आकर्षक विकल्प बनाती है।

किफायती: होम्योपैथिक दवाएँ आमतौर पर अन्य दवाओं की तुलना में सस्ती होती हैं, जो इसे सीमित संसाधनों वाले लोगों के लिए एक सुलभ विकल्प बनाती हैं।

भारत सरकार द्वारा आयुष मंत्रालय का गठन एक महत्वपूर्ण कदम है, जो देश की समृद्ध चिकित्सा विरासत को पुनर्जीवित करने और आयुर्वेद, योग, प्राकृतिक चिकित्सा, यूनानी, सिद्ध और होम्योपैथी (आयुष) जैसी पारंपरिक चिकित्सा पद्धतियों के विकास को बढ़ावा देने के प्रति सरकार की प्रतिबद्धता को दर्शाता है। आयुष मंत्रालय के माध्यम से सरकार प्राचीन चिकित्सा ज्ञान के संरक्षण और संवर्धन पर ध्यान केंद्रित कर रही है।

यह अत्यंत गर्व का विषय है कि मंत्रालय ने दयालबाग शिक्षण संस्थान को सत्र 2024-25 के लिए होम्योपैथी कॉलेज में छात्रों को प्रवेश देने की सशर्त अनुमति प्रदान की है। दयालबाग शिक्षण संस्थान होम्योपैथी को एक एकीकृत स्वास्थ्य देखभाल पद्धति के रूप में आगे बढ़ाने के लिए प्रतिबद्ध है और कॉलेज को सर्वोत्तम होम्योपैथिक कॉलेजों में से एक के रूप में विकसित करने के लिए सभी प्रयास किए जा रहे हैं।

साथ ही ये उल्लेख करते हुए बहुत हर्ष हो रहा है कि रा धा/धः स्व आ मी मत के 8वें जय घोषित वक्त संत सत गुरु परम पूज्य पी.एस. सत्संगी साहब ने काफी पहले ही ये फरमाया था कि यहां वर्ल्ड क्लास होम्योपैथी कॉलेज होना चाहिए । एवम हाल ही में आगरा के प्रसिद्ध और देश-विदेश में प्रतिष्ठित “पद्मश्री “डॉ. आर.एस. पारिख ने कुछ समय पूर्व इसी वर्ष मीडिया से एक साक्षात्कार में अपने मन की बात कही थी कि दयालबाग शिक्षण संस्थान में होम्योपैथी का विश्व का सर्वोच्च और विश्वस्तरीय कॉलेज खुले, मैं चाहता हूं कि ऐसा जल्द से जल्द हो और यह मेरी भारी इच्छा है।’ “इस शुभ कार्य में मेरे लायक जो भी सहयोग एवं सेवा होगी उसके लिए मैं हमेशा तत्पर रहूंगा

इस प्रकार, होम्योपैथी का विकास और इसका समग्र स्वास्थ्य सेवा में एकीकृत होना, न केवल लोगों को स्वास्थ्य सेवाओं के अधिक विकल्प प्रदान करता है, बल्कि देश की सांस्कृतिक विरासत को भी संरक्षित करता है। यह सभी पहलुओं से एक सकारात्मक दिशा में बढ़ रहा है, जो भविष्य में होम्योपैथी के क्षेत्र को नई ऊँचाइयों तक पहुँचाने में सहायक होगा।

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