पिथौरागढ़ की ग्राम सुराज चिन्तन बैठक में जनसरोकारों पर गहन मंथन

पिथौरागढ़ डिक्लरैशन -जब धरा बचेगी तभी धरती का जीवन भी बचेगा

विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञ जुटे सीमान्त पिथौरागढ़ में

अविकल उत्तराखंड

पिथौरागढ़। ग्राम सुराज चिन्तन बैठक में उत्तराखण्ड के पहाडों में हो रहे पर्यावरणीय परिवर्तन, जलवायु, पर्यावरण संरक्षण, जैव विविधता, पलायन, ग्रामीण कृषि रोजगार वन्यजीव संघर्ष, बंजर होती खेती, ग्राम्य परिवेश, ग्रामीण अंचलों में नशे का प्रभाव, पहाडों में स्वास्थ्य की चुनौती, लोक महत्व, सामरिक महत्व, उत्तराखण्ड के पहाडों में रोजगार के अवसरों को बढाने को लेकर एक दिवसीय ग्राम सुराज चिन्तन बैठक का आयोजन किया गया।

चिन्तन बैठक में समाज के विभिन्न क्षेत्रों में काम कर रहे विशेषज्ञों की उपस्थिति रही। वहीं समाज की विभिन्न चुनौतियों जैसे प्रदेश के पहाडों में लगातार कम हो रही जैव विविधता व बदलावों पर दो सत्रों में चौदह विषय विशेषज्ञों द्वारा अपने अनुभव, भविष्य की चुनौतियों एवं समाधान पर प्रकाश डाला गया।

विशेषज्ञों द्वारा कहा गया कि “भारत सरकार और राज्य सरकार की ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों को आत्म निर्भर बनाने के लिए विभिन्न योजनाएं जैसे होम स्टे, मत्स्य पालन, बकरीपालन, कुक्कुट पालन, मौन पालन, दुग्ध उत्पादन योजनाएं पलायन को रोकने में कारगर सिद्ध हुई हैं। परन्तु अभी इस दिशा में बहुत काम करने की आवश्यकता है, पहाडों की परम्परागत खेती लोगों के आजीविका की साधन थी, समयम बदलने के साथ यह परम्परा भी बदली है जिससे पहाडों में रहने वाले लोगों के जनजीवन, रहन सहन में व्यापक बदलाव आया है।

पहाडों को अपना स्वरूप, अपना अस्तित्व बचाये रखना है तो लगातार कम हो रही जोत क्षेत्रों को बंजर होने से बचाना होगा इस जमीन को प्रकृति के अनुकूल बनाना होगा, जिससे जल संवर्धन तो होगा ही उससे प्रकृति का संरक्षण भी होगा।

ग्राम सुराज चिन्तन के बाद पिथौरागढ़ डिक्लरैशन – Declaration जारी किया जा रहा है। जब धरा बचेगी तभी धरती का जीवन भी बचेगा, इसलिए हमें जीवन के महत्व को समझते हुए पहाडों की धरती को प्रकृति के अनुरूप बनाना होगा। सूखते जल स्रोतों को बचाये रखने के लिए, पुर्नजीवित करने के लिए हमें खेतों में हल चलाना आवश्यक है। जिससे पहाड के धरा को बचाया जा सके। सरकार इस दिशा में कार्ययोजना बनाये।

पहाडों में स्थानीय स्तर पर लोकपर्व, लोक परम्परायें संरक्षित करने की आवश्यकता है तांकि भविष्य में लुप्त हो रही पहाड की संस्कृति का संवर्द्धन हो सके व इनको बचाया जा सके।

पहाडी क्षेत्रों में वाद्ययंत्रों, जागर, सगुन आखर, फाग, आदि को गाने-बजाने वाले कलाकारों की संख्या में लगातार कमी हो रही है, इन हुनरमंद लोगों के लिए सरकार द्वारा नीति बनाकर सम्मान पूर्वक मानदेय दिया जाय।

पहाडी क्षेत्रों में प्राथमिक शिक्षा, राजस्व, पंचायतीराज को विकासखण्ड स्तर का काडर बनाया जाय, जिससे पहाडों का पलायन तो रूकेगा ही वहीं स्थानीय स्तर पर रोजगार का सृजन भी होगा।

पहाडी इलाकों में पूर्व के वर्षों के भाँति कृषि-बागवानी, पशुधन, परम्परागत खेती (मोटा अनाज) की ओर लौटना होगा। जिससे पहाडों में रहे पलायन को रोका जा सके वहीं इन परम्परागत उत्पाद आजीविका में सहायक होंगें व रोजगार, व्यापार सृजित होगा।

ग्राम सुराज चिन्तन बैठक में विभिन्न क्षेत्रों के लोगों की उपस्थिति रही, सुराज बैठक का आयोजन बिशन सिंह चुफाल विधायक डीडीहाट द्वारा किया गया।

इस दौरान प्रो० चन्द्र दत्त सूंठा, डॉ० अशोक पन्त, प्रो० नरेन्द्र भण्डारी, प्रो० डी० एस० पांगती जी, बी० डी० कसनियाल जी श्याम चन्द, चारू जोशी, नारायण सिंह मेहरा, संजय महर, राजेन्द्र चन्द, कैप्टन कुंवर राम कोहली, विशाल चन्द, डॉ० पी० सी० पन्त, डॉ० उमा पाठक, कोमल मेहता, दीपिका चुफाल मौजूद रहे।

कार्यक्रम की अध्यक्षता डॉ ज्ञानप्रकाश कच्चाहारी बाबा ने की गयी । संचालन ललित शौर्य ने किया ।

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