अविकल उत्तराखंड
देहरादून। दून पुस्तकालय एवं शोध केंद्र के तत्वावधान में आज सायं मेघदूत नाट्य संस्था के संस्थापक और प्रसिद्ध रंगकर्मी एस.पी. ममगाईं द्वारा लिखित “उत्तराखंड के ऐतिहासिक नाटक तिलोगा की वेदना और तीलू का शौर्य” पुस्तक का लोकार्पण समारोह के अध्यक्ष उत्तराखण्ड के प्रसिद्ध संस्कृति रंगकर्मी, संगीत नाटक अकादमी अवार्ड से सम्मानित विभूति प्रो. डॉ. डी.आर. पुरोहित और मुख्य अतिथि प्रसिद्ध कवि, लोकगायक और गढ़ गौरव नरेंद्र सिंह नेगी ने किया।
उत्तराखण्ड के लोकजीवन को वाणी देने वाले नरेंद्र सिंह नेगी ने इस अवसर पर कहा कि एस पी ममगाईं रंगकर्म के लिए समर्पित व्यक्ति हैं और उनके नाटकों का अपना अलग अंदाज है। निसंदेह वे अपने आप में चलते फिरते स्कूल हैं। उनके कई शिष्य आज दृश्य श्रव्य विधा में नाम कमा रहे हैं। गढ़वाल विश्वविद्यालय के लोक कला निष्पादन केंद्र के एडजंक्ट प्रोफेसर डॉ. डी.आर. पुरोहित ने कहा कि नाटक में संपूर्णता लाने के लिए ममगाईं को खास तौर पर जाना जाता है। उनका काम अपने आप में खास महत्व रखता है। उत्तराखण्ड हिमालय के परिवेश पर आधारित ममगाई द्वारा लिखित दोनों नाटकों के बारे में गढ़वाली की कवयित्री बीना बेंजवाल ने विषय प्रवर्तन करते हुए विस्तार से प्रकाश डाला।
प्रसिद्ध संस्कृतिकर्मी डाॅ और लेखक डॉ.नंदकिशोर हटवाल इस अवसर पर विशिष्ट अतिथि के रूप में मौजूद रहे। उन्होंने अपने संबोधन में तिलोगा और तीलू के कथानक को विशिष्ट बताते हुए कहा कि इन चरित्रों पर आज तक काम नहीं हुआ था, अगर किसी ने थोड़ा बहुत प्रयास किया भी तो वह समग्र नहीं बन पाया किंतु ममगाईं जी ने इसे लिपिबद्ध कर भावी पीढ़ियों के लिए धरोहर सौंप दी है। इतिहास के अध्येता डॉ. योगेश धस्माना ने कहा कि आज के दौर में नाटकों का मंचन बेहद दुष्कर कार्य सा हो गया है, ऐसे में ममगाई जैसे लोग अलख जगाए हुए हैं तो यह बेहद सुखद है।
अंत में रंगकर्मी एस पी ममगाईं ने अपनी रंग कर्म यात्रा के कुछ प्रसंग बताते हुए मुख्य अतिथि नरेंद्र सिंह नेगी, कार्यक्रम के अध्यक्ष डॉ.डी.आर. पुरोहित और पुस्तक प्रकाशक समय साक्ष्य की सुश्री रानू बिष्ट सहित सभी अतिथियों का धन्यवाद ज्ञापित किया। कार्यक्रम का संचालन वरिष्ठ पत्रकार दिनेश शास्त्री ने किया।
दून पुस्तककालय के प्रोग्राम एसोसिएट चन्द्रशेखर तिवारी ने आगंतुकों का स्वागत किया। इससे पूर्व कार्यक्रम के दौरान अनेक कलाकारों द्वारा दोनों नाटकों के कुछ अंशों का वाचिक अभिनय किया गया, जिसका श्रोताओं ने भरपूर आनंद लिया। इस दौरान तीलू रौतेली नाटक के लिए तैयार कतिपय गीतों को भी प्रस्तुत किया गया।
कार्यक्रम के दौरान सुरेंद्र सजवाण, शैलेन्द्र नौटियाल, शिव जोशी, अमर खरबंदा, रमाकांत बेंजवाल, डॉ.सुनील कुमार सक्सेना, निकोलस हॉफलैण्ड, पुष्पलता ममगाईं, रमाकांत बेंजवाल सहित अनेक संस्कृतिकर्मी, लोक कलाकार, लेखक, साहित्यकार, युवा पाठक तथा दून विश्वविद्यालय के रंगमंच के कलाकार सहित बड़ी संख्या में युवा पाठक उपस्थित थे।
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