पहाड़ी दाल गहथ- पत्थरों को तोड़ने की ताकत

पहाड़ों की सर्दी में रामबाण है पहाड़ी गहथ की दाल

गहथ : कई गुणों को समेटे है, कमाल की दाल

वरिष्ठ पत्रकार व्योमेश चन्द्र जुगरान

अविकल उत्तराखंड 

देहरादून।  राष्‍ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्‍ली हो या देहरादून अथवा अन्‍य शहर, उत्तराखंडी लोक उत्‍सवों और मेलों में सजने वाले बाजारों में सबसे अधिक मांग पहाड़ी दाल गहथ की होती है।

दिल्‍ली में मेलों/कौथिकों की धूम है। इनमें गहथ 250 से लेकर 300 रुपये प्रति किलो तक बिक रही है। हालांकि कई बार पहाड़ी दालों के धंधे में घुसे बिचौलियों के कारण पहाड़ की मिट्टी में उगे शुद्ध उत्‍पाद लोगों तक नहीं पहुंच पाते।

देहरादून के सियासी गलियारों और संबंधित मंडियों में सक्रिय दलालों का काम सरकारी खर्च पर मेलों में स्‍टॉल हथिया कर इन्‍हें आगे सबलेट करना है और जिसे सबलेट किया गया, वह पुरानी दिल्‍ली की मंडी जाकर बिहार, उड़ीसा और आंध्र प्रदेश की सस्‍ती कुलथी पर पर्वतीय रैपर चस्‍पा कर मुनाफा कमा रहा है।

पहाड़ों में गहथ को सामान्‍य बोलचाल में गौथ और मैदानी लोग कुलथ या कुलथी कहते हैं। इसका वैज्ञानिक नाम मैकोट्राईलोमा यूनीफ्लोरेम है। अंग्रेजी में इसे हॉर्सग्राम कहा जाता है। पहाड़ों में गहथ को बारहनाजे के साथ उगाने की परंपरा रही है लेकिन अब इसकी बढ़ती मांग के कारण लोग इसे अलग से भी उगा रहे हैं।

पहाड़ी दालों में गहथ सर्वाधिक लोकप्रिय है। मैदानों में बसे उत्तराखंडी मंहगे दामों पर भी इसे पाने को लालायित रहे हैं। मैदानी लोगों में भी उत्तराखंडी गहथ की भारी मांग है क्‍योंकि यह अत्‍यधिक गुणकारी दाल है और इसके सेवन से पेट व गुर्दे की पथरी गलकर नष्‍ट हो जाती है। गठिया-वायु इत्‍यादि रोगों के नियंत्रण में भी इसका जबरदस्‍त प्रभाव देखा गया है।

पुराने जमाने में पहाड़ों में खेत को समतल बनाना हो या मकान की नींव खोदना, बड़े शिलाखंडों को तोड़ने के लिए लोग गहथ का प्रयोग करते थे। वे रात को इन शिलाखंडों के नीचे आग जला देते थे और गहथ का रसभरा पतीला उन पर उड़ेल देते थे। इसे पत्‍थर आसानी से टुकड़े-टुकड़े हो जाता था। तब पहाड़ों में यह फसल बहुतायत में होती थी और इसका बहुउद्देशीय उपयोग किया जाता था।

पहाड़ों में सर्दी के मौसम में शरीर को गर्म रखने में भी गहथ के सेवन का प्रचलन है। यही कारण है कि भारी ठंड के बावजूद यहां सर्दी से मौतों की खबरें नहीं सुनाई देतीं। गहथ से बना गथ्‍वाणी पूरे दिन शरीर को न सिर्फ गर्म रखता है, बल्कि ऊर्जा भी देता है। गहथ में आर्द्रता, प्रोटीन, वसा, रेशा, कार्बोहाइड्रेट, कैल्शियम, फासफोरस, लोहा और बिटामिन ए-बी-सी प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। ये सारे खनिज हडि्डयों, दांतों की मजबूती और पाचन क्रिया को सही रखने में बड़ी भूमिका निभाते हैं।

खेती के लिहाज से गहथ को उगाने के लिए अधिक मेहनत भी नहीं करनी पड़ती। यह उबड़-खाबड और पथरीली जमीन में ही आसानी से उग जाता है। अधिक निराई-गुडाई की भी जरूरत नहीं पड़ती। इसे जून के प्रथम सप्‍ताह में बोकर सितंबर या अक्‍टूबर में कटाई की जा सकती है। गहथ को लोग अब व्‍यापारिक दृष्टि से महत्वपूर्ण फसल मानने लगे हैं। पर्वतीय क्षेत्रों में इस दाल के उत्‍पादन को प्रोत्‍साहन देकर पर्वतीय किसान अच्‍छा मुनाफा कमा सकते हैं।

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