अब आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से भी होगा मरीजों का इलाज

अविकल उत्तराखंड/ देहरादून। आने वाले समय में मरीजों का इलाज कंप्यूटराइज्ड हो जायेगा। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से मरीजों को देखते ही मशीन बता देगी कि उसे कौन सी बीमारी है और बीमारी की दवा भी सामने आ जाएगी। आईआईआईटी इलाहाबाद के प्रोफेसर डॉ. शेखर वर्मा ने ये बात ग्राफिक एरा डीम्ड यूनिवर्सिटी में कही। यूनिवर्सिटी में चल रही अंतर्राष्ट्रीय एफडीपी में वे ऑनलाइन मध्यम से जुड़े।

प्रो. वर्मा ने कहा कि भविष्य में एआई के उपयोग से हर तरह के डेटा को सिक्योर भी किया जा सकेगा। उन्होंने कहा की हेल्थकेयर के क्षेत्र में एआई के उपयोग की आपार संभावनाएं हैं। कंप्यूटराइज्ड इलाज के साथ एआई का उपयोग हेल्थकेयर से जुड़े डेटा को सिक्योर रखने में भी किया जा सकता है। उन्होंने कम्युनिकेशन लेयर्स पर साइबर अटैक और एआई के इस्तेमाल से उससे बचावों पर हो रहे शोध की भी जानकारी दी।

नॉर्वे की एनटीएनयू में ईआरसीआईएम फैलो डॉ. पल्लवी कलियार ने आईओटी में प्रयोग की जाने वाली लेटेस्ट कम्युनिकेशन टेक्नोलॉजीज के बारे में बताया। उन्होंने कहा की सिक्योर्ड कनेक्टिविटी के लिए जरूरी है की हम डिफॉल्ट पासवर्ड्स ना रखें। उन्होंने आईओटी नेटवर्क्स और इंट्रूजन डिटेक्शन सिस्टम्स के क्षेत्र में हो रहे शोधों के बारे में भी बताया।
एफडीपी का श्रीगणेश यूनिवर्सिटी के डायरेक्टर जनरल डॉ. संजय जसोला और सीएसई के विभाध्यक्ष डॉ. देवेश प्रताप सिंह ने किया। इस छे दिवसीय एफडीपी में यूएटी मैक्सिको के डॉ. संजू तिवारी, एनआईटी दिल्ली के डॉ. करण वर्मा, एनआईटी जालंधर के डॉ. समयवीर सिंह, आईआईआईटी कोटा के डॉ. अजय नेहरा, टीआईईटी के डॉ. अनुपिंदर सिंह और एनआईटी रायपुर की डॉ. प्रीति चंद्राकर एक्सपर्ट स्पीकर रहेंगे। एफडीपी का आयोजन सीएसई विभाग के शिक्षक डॉ. जितेंद्र सामरिया और सुश्री गरिमा शर्मा ने किया है।

नई अंतरिक्ष नीति देगी निजी भागेदारी को बढ़ावा
जाने माने एयरोस्पेस साइंटिस्ट और विक्रम साराभाई स्पेस सेंटर के पूर्व निदेशक डॉ. भानु पंत ने कहा कि केंद्र सरकार की नई अंतरिक्ष नीति एयरोस्पेस के क्षेत्र में बड़े सुधार लाएगी। इस वर्ष अप्रैल में अप्रूव हुई ये पॉलिसी एयरोस्पेस से अर्थव्यस्था को मजबूत करने के साथ इसमें निजी उद्योग की भागेदारी को भी बढ़ावा देगी। डॉ. पंत आज ग्राफिक एरा डीम्ड यूनिवर्सिटी में एयरोस्पेस एंड मैकेनिकल इंजीनियरिंग विभाग के कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे।

इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गेनाइजेशन (इसरो) से जुड़े डॉ. पंत ने कहा कि विश्व भर में आज नैनो सेटेलिटेस का बाजार तेजी से बढ़ रहा है और भविष्य में और भी बढ़ेगा। नैनो सेटेलाइट्स जिन्हें क्यूब सैट्स भी कहा जाता है, साइज में बहुत छोटी और 10 किलोग्राम से भी कम वजन की होती हैं। काम लागत और बहु उपयोगिता के कारण इन की लोकप्रियता तेजी से बड़ रही है। पृथ्वी के अवलोकन और रिमोट सेंसिंग उपकरणों की बढ़ती मांग इस का मुख्य कारण है। उन्होंने कहा की नई अंतरिक्ष नीति में निजी क्षेत्र की बड़ी भूमिका सही दिशा में लिया गया कदम है। कुछ साल पहले तक निजी कंपनियों का इस क्षेत्र में एंट्री पाना मुश्किल था। 2019 में पहली बार इसरो ने अपनी सैटेलाइट लॉन्चिंग सुविधा निजी क्षेत्र के लिए खोला था और आज इस क्षेत्र में काफी प्राइवेट प्लेयर्स हैं।

डॉ. पंत ने 1960 के दशक में तिरूआंतापुरम के नजदीक तुंबा गांव से शुरू हुए इसरो के अब तक के सफर पर एक प्रेजेंटेशन भी दी। उन्होंने कहा कि एयरोस्पेस इंजीनियरिंग के क्षेत्र में अपार संभावनाएं हैं। डायरेक्टर रिसर्च एण्ड एक्रीडिटेशन, डॉ. प्रवीण पाटिल, विभाध्यक्ष डॉ. सुधीर जोशी, शिक्षक डॉ. नितिन जोशी यूनिवर्सिटी के रजिस्ट्रार, डॉ. दिनेश कुमार जोशी और छात्र छात्राएं कार्यक्रम में उपस्थित रहे।

यूनिवर्सिटी के इलेक्ट्रॉनिक्स एंड कम्युनिकेशन विभाग ने भी आज नैनो शीट ट्रांजिस्टर टेक्नोलॉजी विषय पर एक गेस्ट लेक्चर आयोजित किया जिसमें आईआईटी रुड़की के प्रोफेसर डॉ. सुदेब दासगुप्ता ने माइक्रो चिप्स में इस्तमाल होने वाली इस लेटेस्ट टेक्नोलॉजी की जानकारी दी। उन्होंने बताया की इस तकनीकी के इस्तमाल से इलेक्ट्रॉनिक सर्किट्स का साइज काफी कॉम्पैक्ट किया जा सकता है। विभाध्यक्ष डॉ. इरफानुल हसन, शिक्षक डॉ. वरुण मिश्र, डॉ. अभय शर्मा और छात्र छात्राएं कार्यक्रम में उपस्थित रहे।

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