संघ-भाजपा मूल कैडर , कांग्रेस के बागी व पैराशूट नेता कोलेकर छिड़ी जंग
भाजपा के पास 57 विधायकों का बहुमत। जीत पक्की। कांग्रेस से प्रदीप टम्टा व भाजपा से अनिल बलूनी राज्यसभा सांसद। कांग्रेस नेता व राज्यसभा सदस्य राज बब्बर की सीट नवंबर में खाली हो रही है। 9 नवंबर को मतदान की तारीख तय की गई है।
अविकल उत्त्तराखण्ड
देहरादून। उत्त्तराखण्ड भाजपा में राज्यसभा टिकट को लेकर पार्टी से जुड़े उम्मीदवारों की भाग दौड़ तेज हो गयी है। केंद्रीय नेतृत्व भी पसोपेश में है कि भाजपा-संघ कैडर से चुने या कांग्रेस के किसी बागी को या फिर किसी पैराशूट को। नाम बड़े-बड़े भी हैं और कम चर्चित भी।
अभी तक भाजपा में स्थानीय व पैराशूट उम्मीदवार के चयन को लेकर मंथन होता था। लेकिन इस बार और पहली बार नान कैडर यानि कांग्रेस के बागी की उम्मीदवारी भी सिरदर्द का कारक बन गयी है।
इस बीच,पूर्व में दो बार भाजपा के टिकट पर राज्यसभा का चुनाव लड़ चुके अनिल गोयल दिल्ली में मौजूद हैं। उनकी कुछ अहम पार्टी नेताओं से मुलाकात होने की संभावना है।
उधर, कांग्रेस के बागियों को रोकने के लिए भी भाजपा नेता अंदरखाने एक राय बना रहे हैं। त्रिवेंद्र मन्त्रिमण्डल में कांग्रेस के बागियों का दबदबा होने से भाजपा कैडर से जुड़े नेता व कार्यकर्ता पहले ही नाराज चल रहे हैं। ऐसे में पूर्व सीएम विजय बहुगुणा के नाम से घबराए भाजपा नेता अपने ही मूल कैडर के कार्यकर्ता को राज्यसभा भेजे जाने की वकालत कर रहे हैं।
भाजपा सूत्रों का तर्क है कि कांग्रेस के बागियों को पहले ही काफी संतुष्ट किया जा चुका है। त्रिवेंद्र कैबिनेट की आधी कुर्सियों पर कांग्रेस से आये नेता बैठे हैं। विजय बहुगुणा की बहन रीता बहुगुणा पहले योगी सरकार में मंत्री रहीं और अब सांसद हैं। विजय बहुगुणा के एक बेटे विधायक है। ऐसे में राज्यसभा का टिकट भी कांग्रेस मूल के नेता को दिया जाता है तो भाजपा का एक बड़ा हिस्सा 2022 के चुनाव में खामोश बैठ सकता है।
इधर, हरियाणा में पार्टी के संगठन मंत्री सुरेश भट्ट भी केंद्रीय नेतृत्व के करीब हैं। मूलतः उत्त्तराखण्ड के सुरेश भट्ट का नाम भी विशेष चर्चा में है। श्याम जाजू को वैसे तो पार्टी अन्य राज्य से भी राज्यसभा भेज सकती है। लेकिन उत्त्तराखण्ड प्रभारी होने व विधानसभा चुनाव की रणनीति बनाने में जुटे जाजू भी नेतृत्व की पसन्द हो सकते है। जाजू पैराशूट उम्मीदवार के तौर पर माने जाएंगे।
इधर, पार्टी का एक हिस्सा अनिल गोयल की लामबंदी में जुटा है। इनका तर्क है कि भाजपा के कम विधायक होने के वक्त 2012 व 2016 में अनिल गोयल को राज्यसभा का टिकट मिल चुका है। लिहाजा, बहुमत के समय भी टिकट गोयल को ही मिलना चाहिए।
अनिल गोयल 2012 में विजय बहुगुणा के कार्यकाल में कांग्रेस उम्मीदवार महेंद्र सिंह माहरा व 2016 में हरीश रावत शासन में प्रदीप टम्टा के खिलाफ चुनाव लड़ चुके हैं। लेकिन भाजपा के पास संख्या बल नहीं होने के कारण चुनाव जीत नहीं पाए थे।
इधर, पार्टी के नए कार्यालय के लिए देहरादून की रिंग रोड में जमीन खरीदने से लेकर भूमि पूजन में अहम भूमिका निभाने वाले पार्टी के प्रदेश उपाध्यक्ष अनिल गोयल का कहना है कि वे 27 साल से पार्टी के अनुशासित सिपाही रहे हैं। पार्टी के भरोसे पर वे खरा उतरने की पूरी कोशिश करेंगे।
नाम नहीं छापने की शर्त पर एक पार्टी नेता ने बताया कि कई पेंचों में फंसी भाजपा कार्यालय की 16 बीघा जमीन को क्लियर कराने में अनिल गोयल की विशेष भूमिका रही। लगभग 10 साल से इस 16 बीघा जमीन का मसला कानूनी दांव पेंच में उलझा हुआ था। लेकिन किसी तरह इस भूमि के सौदे को पटाते हुए बीते 17 अक्टूबर को राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा से वर्चुअल शिलान्यास भी करवा दिया गया।
राज्य गठन के बाद बनने वाला यह नया कार्यालय पार्टी के लिए विशेष उपलब्धि माना जा रहा है।
इसके अलावा करीब आधा दर्जन नाम भी दावेदारों की सूची में है। 2022 के विधानसभा चुनाव को देखते हुए केंद्रीय नेतृत्व, स्थानीय बनाम कांग्रेसी बागी बनाम पैराशूट नेता की पूरी पड़ताल के बाद ही लकी नाम को उत्त्तराखण्ड से राज्यसभा में भेजेगा।
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