निकाय चुनाव में ऋषिकेश गढ़ने जा रहा इतिहास

ऋषिकेश के सोशल सर्वे में मास्टर जी ने लगाई लम्बी छलांग

दिनेश शास्त्री

ऋषिकेश।  गढ़वाल के प्रवेश द्वार ऋषिकेश में नगर निगम का चुनाव कदाचित प्रदेश में सर्वाधिक महत्वपूर्ण सिद्ध होने जा रहा है। प्रदेश के कुल 11 नगर निगमों में अगर कहीं मुकाबला दिलचस्प दिख रहा है तो वह ऋषिकेश नगर निगम है जहां एक साथ कई लोगों की प्रतिष्ठा दांव पर लगी दिख रही है और साथ ही राजनीतिक भविष्य भी दांव पर है। अन्य नगर निगमों में इस तरह की स्थिति नहीं है।

यह पहला मौका है जब निकाय चुनाव कई लोगों की नाक का सवाल बन गया है। एक सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर हुआ हालिया सर्वेक्षण चौंकाने वाला संदेश दे रहा है। सत्तारूढ़ दल यहां तीसरे नंबर पर है जबकि निर्दलीय पहले नंबर पर। सोशल मीडिया प्लेटफार्म के पोल में करीब दो हजार लोगों ने भाग लिया। उसमें से अकेले 76 फीसद लोगों ने निर्दलीय मास्टर को चुना जबकि भाजपा प्रत्याशी को 14 और कांग्रेस को मात्र 9 फीसद लोगों ने वरीयता दी। बहुत संभव है, इनमें सारे प्रतिभागी ऋषिकेश नगर निगम क्षेत्र के न हों, किंतु चावल के दाने के पकने के समान अनुमान तो लगाया ही जा सकता है। वैसे यह दावा नहीं किया जा सकता कि चुनाव पूर्व सर्वेक्षण का नतीजा अंतिम नतीजे जैसा होगा किंतु प्रारंभिक तौर पर यह एक इशारा तो माना ही जा सकता है।

सवा लाख से अधिक मतदाताओं वाले ऋषिकेश नगर निगम में पहली बार लाला जी फंस गए, राज्य गठन के बाद से पहली बार उनकी नाक में दम होता दिख रहा है। ऋषिकेश तीर्थनगरी इसलिए भी है कि यहां से उत्तराखंड की आर्थिकी की रीढ़ चारधाम यात्रा शुरू होती है और यह यात्रा भू बैकुंठ धाम बदरीनाथ के दर्शन के साथ सम्पन्न होती है। यात्रा का प्रारंभ बिंदु ऋषिकेश पहली बार अपनी अस्मिता की अलख जगा रहा है। अभी तक जो अपने हिसाब से इस नगरी की व्यवस्था को चलाते आ रहे हैं, पहली बार उन्हें पहाड़ी अस्मिता के वजन का अहसास हो रहा है। यानी जो ढोल ऋषिकेश में बज रहा है, उसकी गूंज बहुत दूर बदरीनाथ धाम तक पहुंच रही है। ढोल उत्तराखंड की संस्कृति की आत्मा है, यहां का हर मंगल कार्य ढोल के साथ होता है और इस बार ढोल थामा है निर्दलीय दिनेश चंद्र मास्टर ने। यह पहला मौका है जब कोई निर्दलीय सीधे सरकार के बड़े नेता को चुनौती देता नजर आ रहा है और 16 जनवरी को उत्तराखंड की लोक संस्कृति के सिरमौर नरेंद्र सिंह नेगी ने इसी ढोल को थाप देने पहुंचे तो जाहिर है कंपकंपाती ठंड में किसी के पसीने तो छूटने ही थे। नेगी ने बेशक चुनाव प्रचार नहीं किया लेकिन अपने गीतों के जरिए पहाड़ की अस्मिता का संदेश तो उन्होंने दे दिया। जवाबी हमले में जो सांस्कृतिक संध्या की गई, उसकी सच्चाई भी किसी से छिपी नहीं रह गई है।

वस्तुतः ऋषिकेश के निकाय चुनाव में एक साथ कई फैक्टर हावी होते दिख रहे हैं। पिछले दिनों एक समर्थक की सरेराह पिटाई के मामले को लोग शायद ही भूले होंगे, पिछले दो दशक की एंटी इन्कांबेंसी इन्काम्बेंसी भी कहीं न कहीं काउंट होगी, ऐसा स्थानीय नागरिक भी मानते हैं लेकिन यहां सबसे बड़ी नाराजगी उन लोगों में देखी जा रही है जो वर्षों से राजनीति की सीढियां चढ़ने की तैयारी कर रहे थे किंतु “आरक्षण की मार” से घायल लोगों के जख्मों पर जो नमक हाल के दिनों में छिड़का गया है, उससे कई लोग घर बैठ गए हैं। पुराने निष्ठावान कार्यकर्ताओं का घर बैठना नुकसान तो पहुंचाएगा ही। इस बात से कैसे इनकार कौन कर सकता है।

संसाधनों की बात करें तो सत्तारूढ़ दल हमेशा अपर हैंड रहता है। निकाय चुनाव में संसाधनों के मामले में भी यही तस्वीर है किंतु यह भी सच है कि अकेले संसाधनों के बूते चुनाव नहीं जीते जाते, मतदाता की सदिच्छा ज्यादा महत्वपूर्ण होती है। हालांकि अभी चुनाव प्रचार में चार दिन का समय शेष है, इस अवधि में बहुत कुछ बदलाव हो सकता है लेकिन यह भी सच है कि 14 फीसद को 51 फीसद तक पहुंचाना इतना आसान भी नहीं होता। दूसरी ओर कांग्रेस शुरुआती कमजोरी के बाद अब खड़ी होती नजर आने लगी है, यह स्थिति कुछ हद तक संतोष दिला सकती है लेकिन उससे बहुत ज्यादा उम्मीद नहीं की जा सकती। निष्कर्ष यह है कि पहली बार ऋषिकेश का रण बेहद नाजुक मोड़ पर है और यह चुनाव भविष्य के लिए कई नई पटकथाएं लिखने वाला हो सकता है। अंतिम फैसला तो मतदाता को करना है, फिलहाल तो उनके रुख का अनुमान ही लगाया जा सकता है और संकेत सत्तारूढ़ दल के प्रतिकूल है। देखना यह है कि बड़े लोगों का कौशल और प्रबंधन कितना कारगर सिद्ध होता है।

Total Hits/users- 30,52,000

TOTAL PAGEVIEWS- 79,15,245

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

FacebookTelegramTwitterWhatsAppShare