पिरूल से ईंधन बनाने की परियोजना चंपावत में लगेगी

चंपावत में पिरूल आधारित एक ब्रिकेटिंग यूनिट की स्थापना की जायेगी

भारतीय पेट्रोलियम संस्थान और यूकॉस्ट के बीच हुआ करार

चंपावत में ऊर्जा संरक्षण, रोजगार सृजन, कौशल विकास और महिला सशक्तिकरण में मदद मिलेगी

अविकल उत्तराखंड 

देहरादून। “आदर्श चंपावत” परियोजना के तहत देहरादून स्थित सीएसआईआर भारतीय पेट्रोलियम संस्थान और यूकॉस्ट के बीच एक करार हुआ । इस अवसर पर भारतीय पेट्रोलियम संस्थान के निदेशक डॉ० हरेन्द्र सिंह बिष्ट और यूकॉस्ट के महानिदेशक प्रोफेसर दुर्गेश पंत ने करारनामे पर हस्ताक्षर कर पिरूल से इंधन बनाने की तकनीक को चम्पावत में स्थापित करने के लिये एक ऐतिहासिक परियोजना का शुभारम्भ किया। करार के तहत भारतीय पेट्रोलियम संस्थान, चंपावत में विज्ञान और प्रौद्योगिकी आधारित दो प्रमुख तकनीकों को जमीनी स्तर पर लागू करेगा ।

पिरूल आधारित 50 किलो प्रति घंटा की क्षमता वाली एक ब्रिकेटिंग यूनिट की स्थापना की जायेगी। और इससे चलाने वाले 500 उन्नत चूल्हों का ग्रामीण घरों में ऊर्जा संरक्षण और पर्यावरण की दॄष्टि से एक नवीन प्रयोग किया जायेगा। इस ब्रिकेटिंग यूनिट को महिला सशक्तिकरण परियोजना के अंतर्गत चंपावत मे बनने वाले एनर्जी पार्क में स्थपित किया जायेगा। इससे बनने वाले ब्रिकेट का इस्तेमाल इंधन के रूप मे घरों में तथा स्थानीय उद्योगों में किया जायेगा।

इस अवसर पर भारतीय पेट्रोलियम संस्थान के निदेशक डॉ० हरेन्द्र सिंह बिष्ट ने बताया कि पर्यावरण संरक्षण और जंगल की आग को रोकने के लिए पिरूल का उपयोग और प्रबंधन आवश्यक है। उन्होने यह भी बताया कि ब्रिकेट और छर्रों क़े रूप में पिरूल खाना पकाने के ईंधन के साथ-साथ ईंट भट्टों और थर्मल पावर प्लांट्स में प्रत्यक्ष या सह-फायरिंग ईंधन के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है।

भारतीय पेट्रोलियम संस्थान पिरूल के उपयोग और मूल्यवर्धन की दिशा में विगत कई वर्षों से काम कर रहा है। संस्थान के वैज्ञानिकों ने पिरूल के ब्रिकेटिंग के लिए एक बेहतर पलेटाईज़र और एक ऊर्जा कुशल कम लागत वाला प्राकृतिक ड्राफ्ट बायोमास चूल्हा विकसित किया है। यह चूल्हा पिरूल के ब्रिकेट के साथ 35% की ऊर्जा दक्षता से काम करता है तथा घरेलू प्रदूषण को 70% तक कम करने मे सक्षम है।

भारतीय पेट्रोलियम संस्थान, थर्मल पावर प्लांट में उपयोग किए जाने वाले बायोमास पेलेट्स के प्रमाणन हेतु एक नामित प्रयोगशाला है और यहाँ बायोमास के लक्षण वर्णन और बायोमास दहन उपकरणों के मूल्यांकन के लिए उन्नत सुविधाएं उपलब्ध हैं। प्रोफेसर दुर्गेश पंत ने बताया की मुख्यमंत्री के निर्देशनमें नोडल एजेंसी के रूप में यूकॉस्ट विगत एक वर्ष से चंपावत को आदर्श जिला बनाने हेतु कार्य कर रहा है।

उन्होंने बताया कि चंपावत की ग्रामीण जनता के लिए पिरूल को इकट्ठा करना, इसके उत्पाद बना कर उनकी आपूर्ति कराना, व्यवसाय की दॄष्टि से एक अच्छा अवसर प्रदान करती है।

इसके अलावा, ब्रिकेटिंग और गुणवत्ता नियंत्रण मापदंडों पर मामूली तकनीकी प्रशिक्षण हासिल कर, चंपावत की जनता इसे अपनी आय का नियमित स्रोत बना सकती है। पिरूल ब्रिकेटिंग को नियमित आधार पर रोजगार देने वाले पूर्णकालिक उद्योग में परिवर्तित किया जा सकता है, क्योंकि भविष्य में इन ब्रिकेट की नियमित आधार पर उच्च मांग होगी।

इसके अलावा, उन्नत चूल्हों का निर्माण और विपणन, कुशल और अर्द्ध-कुशल ग्रामीण जनता के लिए एक आकर्षक विकल्प बनेगा। उन्होंने बताया की सीएसआईआर की एक अन्य प्रयोगशाला, सीआईएमएपी – लखनऊ भी अरोमा मिशन क़े तहत चंपावत में काफी बेहतर काम कर रही है।

इस परियोजना के प्रमुख वैज्ञानिक पंकज आर्य ने बताया कि भारतीय पेट्रोलियम संस्थान, चंपावत जिले के विकास के लिए सतत विज्ञान और प्रौद्योगिकी आधारित मॉडल पर कार्य कर रही है जिसमें प्रदर्शन, कार्यान्वयन और कौशल विकास कुछ प्रमुख घटक हैं। उन्होंने बताया कि इस परियोजना में प्रशिक्षण कौशल विकास और बाजार संबंधों के माध्यम से ग्रामीण उद्यमिता को बढ़ावा देने पर विशेष ध्यान दिया जायेगा।

इसके अलावा, लगभग 100 से अधिक लाभार्थियों / हितधारकों को बायोमास ब्रिकेटिंग तथा उन्नत दहन उपकरणों के निर्माण, संचालन और रखरखाव के लिए प्रशिक्षित किया जाएगा ताकि चम्पावत में रोजगार सृजन के नए अवसर पैदा हो सकें। साथ ही, स्थानीय महिलाओं और युवाओं मे वैज्ञानिक सोच और कौशल विकास को बढ़ावा देने के लिए दूरस्थ शिक्षा विधियों, कार्यशालाओं और प्रदर्शनियों का भी आयोजन किया जाएगा। इस परियोजना से चंपावत में ऊर्जा संरक्षण, रोजगार सृजन, कौशल विकास और महिला सशक्तिकरण में मदद मिलेगी।

इस अवसर पर भारतीय पेट्रोलियम संस्थान से डॉ० सनत कुमार, डॉ० जी. डी. ठाकरे, तथा यूकॉस्ट से डॉ० डी. पी.उनियाल, और श्रीमती पूनम गुप्ता मौजूद रहे।

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