अविकल उत्तराखंड
देहरादून। हिमवंत कवि चन्द्र कुंवर बर्त्वाल की पुण्य तिथि व हिंदी दिवस पर हिमवंत कवि चन्द्र कुंवर बर्त्वाल शोध संस्थान सोसाइटी ने कार्यक्रम का आयोजन किया। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि गिरधर पंडित ने हिमवंत कवि चन्द्र कुवर बर्त्वाल की जीवनी के बारे में बताते हुए कहा कि 20 अगस्त 1919 – 1947 हिन्दी के कवि थे। उन्होंने मात्र 28 साल की उम्र में हिंदी साहित्य को अनमोल कविताओं का समृद्ध खजाना दे दिया था। समीक्षक चंद्र कुंवर बर्त्वाल को हिंदी का ‘कालिदास’ मानते हैं। उनकी पुस्तक सम्पूर्ण काव्य ग्रंथ की सह संपादक रही कुसुम रावत ने कहा कि उनकी कविताओं में प्रकृतिप्रेम झलकता है। चमोली जनपद के मालकोटी पट्टी के नागपुर गांव में 20 अगस्त 1919 को चंद्र कुंवर बर्त्वाल का जन्म हुआ। उनके पिता भूपाल सिंह बर्तवाल अध्यापक थे। चंद्र कुंवर बर्तवाल की शुरुवाती शिक्षा गांव के स्कूल से हुई। उसके बाद पौड़ी के इंटर कॉलेज से उन्होंने 1935 में उन्होंने हाई स्कूल किया। उन्होंने उच्च शिक्षा लखनऊ और इलाहाबाद में ग्रहण की।
1939 में इलाहाबाद से स्नातक करने के पश्चात लखनऊ विश्वविद्यालय में उन्होंने इतिहास विषय से एम0 ए0 करने के लिये प्रवेश लिया। इस बीच उनकी अचानक तबीयत खराब हो गई और वे 1941 में अपनी आगे की पढ़ाई छोड़ गांव आ गए।प्रकृति की खूबसूरती को अपनी लेखनी के माध्यम से बयां करते थे। समय साक्ष्य से रानू बिष्ट ने कहा कि जो भी उनके मन में रहता कागज पर कलम की मदद से उकेर देते। कहा जाता है कि वे अपने लिखे काव्य, कविताओं को ना तो कहीं प्रकाशित करने के लिए देते ओर ना ही किसी पत्रिकाओं में देते। समाज सेवी सुरेंद्र कुमार कहा कि उनपर शोध कर रहे कई शोधतारतियो ने पी एच डी व डी लिट भी की है। चंद्र कुंवर बर्त्वाल कवितायें लिखते और अपने पास रख लेते, बहुत हुआ तो अपने मित्रों को भेज देते। इसे दुर्भाग्य ही कहे कि वे अपने जीवन काल में अपनी रचनाओं का सुव्यवस्थित रूप से प्रकाशन नहीं कर पाये। उनके मित्र पं0 शम्भू प्रसाद बहुगुणा जी को उनकी रचनाये सुव्यवस्थित करने का श्रेय जाता है जिन्होंने उनकी 350 कविताओं का संग्रह संपादित किया । डा0 उमाशंकर सतीश ने भी उनकी 269 कविताओं व गीतों का प्रकाशन किया था। शोध संस्थान के सचिव रहे डॉक्टर योगंबर सिंह बर्तवाल ने भी उनकी रचनाओं को संग्रह करने व उनपर काम करने के लिए चन्द्रकुंवर बर्त्वाल शोध संस्थान के माध्यम से उनके काम को सामने लाया । 14 सितम्बर 1947 को आकस्मिक 28 साल की उम्र में प्रकृति के चितेरे कवि इस दुनिया को अलविदा कह गए। चंद्रकुंवर बर्त्वाल ने बेहद ही कम उम्र में अपनी लेखनी के माध्यम से वो कर दिखया जिसे लिखने, बयां करने के लिए किसी साहित्यकार को दशकों का अनुभव चाइए होता है।डा0 उमाशंकर सतीश ने भी उनकी 269 कविताओं का प्रकाशन किया है।
कवि का कृतित्व इस प्रकार है-
1- पयस्विनी, 350 कविताओं का पं0 शंभूप्रसाद बहुगुणा द्वारा संपादित संकलन
2- मोधनन्दिनी, तीन भागों में संपादित संकलन 1953
3- जीतू, 100 कविताओं का संकलन 1951 प्रकाशक शंभूप्रसाद बहुगुणा ,आई टी कालेज लखनऊ
4- कंकड- पत्थर, 70 कविताओं का संकलन
5- गीत माधवी, 60 गीतों का संकलन ,प्रकाशक कुसुमपाल नीहारिका राय विहारी रोड़,लखनऊ
6- प्रणयिनी, तीन एकांकियों का संकलन, प्रकाशक कुसुमपाल नीहारिका राय विहारी रोड़,लखनऊ
7- विराट-ज्योति, 34 प्रगतिशील कविताओं का संकलन
8- नागिनी, गद्य कृतियों का पं0 शंभूप्रसाद बहुगुणा द्वारा संपादित संकलन
9- विराट-हृदय, प्रकाशक अलनन्दा-मंदाकिनी प्रकाशन, लक्षमण भवन हुसैन गंज, लखनऊ। उन्होंने मात्र 28 साल के जीवन में एक हज़ार अनमोल कविताएं, 24 कहानियां, एकांकी और बाल साहित्य का अनमोल खजाना हिन्दी साहित्य को दिया ।
मृत्यु पर आत्मीय ढंग से और विस्तार से लिखने वाले चंद्रकुंवर बर्त्वाल हिंदी के पहले कवि थे। इस अवसर पर शंकर चंद रमोला, डा मीनाक्षी रावत, प्रभा सजवाण, प्रमेन्द्र बर्तवाल ,सतेंद्र बर्तवाल ,प्रकाश थपलियाल, डॉक्टर गोगिल, डॉक्टर गुणानंद बलोनी, सत्य प्रकाश चौहान, यशवीर चौहान, मानवेंद्र बर्तवाल, ललित मोहन लखेड़ा, शिवानी, संचालन मोहन सिंह नेगी ने अध्यक्षता संस्थान के अध्यक्ष मनोहर सिंह रावत ने की।
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