एक व दो सितम्बर 1994.. उत्त्तराखण्ड आंदोलनकारियों पर पुलिस के जुल्म की कहानी। पहले 1 सितम्बर को खटीमा गोलीकांड में आंदोलनकारी शहीद हुए। ठीक अगले दिन 2 सितम्बर को मसूरी के झूलाघर में पुलिस की गोली से आंदोलनकारी शहीद हुए।
उत्त्तराखण्ड राज्य आंदोलन को मुकाम तक पहुंचाने में इन शहीदों के योगदान को पूरे उत्त्तराखण्ड में शिद्दत से याद किया। जगह-जगह श्रद्धांजलि सभाएं हुई।
राज्य बनने के बाद आंदोलनकारियों के चिन्हीकरण का काम शुरू हुआ।
उत्त्तराखण्ड में 11536 चिन्हित आंदोलनकारी है। 2014 तक चिन्हीकरण की प्रक्रिया पूरी हो जानी थी लेकिन यह समय सीमा भी लगातार बढ़ायी जाती रही।
राज्य गठन के बाद 594 आंदोलनकारियों को सरकारी नौकरी मिली जबकि 7705 को पेंशन दी जा रही है।
आंदोलनकारियों को नौकरियों में क्षैतिज आरक्षण का मसला भी अदालत और सरकारों के बीच झूल रहा है। अलबत्ता, आंदोलनकारियों के गैरसैंण में 2013 के बाद कुछ-कुछ हलचल हुई है।
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दिल से श्रद्धांजली।
Shaheedon ko naman.