आयुर्वेद चिकित्सकों को सर्जरी के अधिकार देने जे सवाल पर बवाल मचा हुआ है। एलोपैथिक चिकित्सा पद्धति से जुड़े डॉक्टर की एसोसिएशन IMA इस निर्णय के विरोध में हैं लेकिन एलोपैथी से जुड़े डाॅ एन.एस.बिष्ट, एम.डी.(मेडिसिन) आयुर्वेद चिकित्सकों को सशर्त सर्जरी के अधिकार देने की वकालत कर रहें हैं। अपने लेख में भी उन्होंने इस मुद्दे पर प्रमुखता से लिखा है।
केंद्र सरकार का फैसला- आयुर्वेदिक डॉक्टरों को लेकर केंद्र सरकार ने बड़ा फैसला लिया है. आयुर्वेद की डिग्री प्राप्त डॉक्टर अब आंख, कान और गले की सर्जरी भी कर सकेंगे. भारतीय चिकित्सा केंद्रीय परिषद (Central Council of Indian Medicine) के मुताबिक सरकार से हरी झंडी मिलने के बाद पीजी के स्टूडेंट्स को सर्जरी के बारे में गहन जानकारी दी जाएगी.
अविकल उत्त्तराखण्ड/संडे स्पेशल
भारत में लगभग 12 लाख रजिस्टर्ड एलोपैथिक डॉक्टर है और 8 लाख के लगभग आयुष चिकित्सक। सक्रिय सेवा में 10 लाख से भी कम डॉक्टर होने के कारण विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानकों में डॉक्टर- रोगी अनुपात में हम खरे नहीं उतरते – वो ही तब जब सक्रिय सेवा में रह रहे आयुष डॉक्टरों का आंकड़ा भी साथ में लिया जाय।
एलोपैथीचिकित्सा विज्ञान और तकनीक से सुसज्जित है। ऐसा शरीर विज्ञान के अलावा अन्य वैज्ञानिक शाखाओं के एक साथ विकास से सम्भव हो पाया है। कहना न होगा कि आधुनिक चिकित्सा विज्ञान, विज्ञान का ऐसा चमत्कार हैं कि एक वर्ष से भी कम समय की अवधि में कोरोना वायरस की वैक्सीन उपलब्ध हो सकी है- कहीं कहीं पर तो यह एक राॅकेट साइज की तरह लगता है।
उसके उलट आयुष में दावों की भरमार रहती है और वैज्ञानिक तौर तरीकों का प्रत्यक्ष अभाव। आयुष ने विज्ञान का उपयोग सिर्फ प्रचार के तौर तरीकों में और पुराने नुस्खों को नये कलेवर मे लपेटकर बेचने में किया है। हर नयीं बिमारी के उपजने के साथ आयुष-उसमें भी विशेषतः आयुर्वेद के डाॅक्टर भ्रामक दावों के साथ अपना प्रचार करते मिल जाते है। नयीं बिमारी में अपनी पैथी का कायाकल्प देखने की मंशा ने आयुर्वेद को उपहास का पात्र ही बनाया है।
आयुष में आयुर्वेद भारतीय जीवन शैली का अहम हिस्सा है- आयुर्वेद एक पारम्परिक ज्ञान है, दर्शन शास्त्र से जुड़ा है, चिरंतन सत्य की तरह है। अतः उसमे बदलाव के प्रति घोर जड़ता है। ईशा से 700 वर्ष पूर्व लिखी गई सुश्रुत संहिता शल्यचिकित्सा की धरोहर के रूप में प्रसिद्ध है- किन्तु उन तौर तरीकों से अब सर्जरी कम ही होती है। हम मोलेक्यूलर, रोबोटिक, जेनेटिक सर्जरी के प्रवेश कर चुके है।
क्यों एलोपैथी अन्य पैथियों में अग्रणी बनती गयी और आज शिखर पर है। यह जान लेना जरूरी है ऐसा इसलिए हुआ कि कोई भी विज्ञान अकेला नहीं पनपता- आयुर्वेद का साथ देने के लिए भारत में भौतिक, रसायन विज्ञान और जीवविज्ञान की शाखाएं विकसित नहीं हो पायी। ऐसा नहीं है कि आयुर्वेद अपने आप में कोई विशिष्ट विज्ञान नहीं है। किन्तु चिरंतर और अपरिवर्तनीय दर्शन से जकड़ा हुआ। यह एक मत की तरह है-आज के दौर में इसे विज्ञान न कहकर सिर्फ पारम्परिक ज्ञान कहा जा सकता है।
आयुर्वेद अपने ही भाषाई पांडित्य और दार्शनिक जटिलताओं में फंसकर रह गया और अवसरवादियों के हाथों की कठपुतली बनता चला गया है।
यह सच है कि आयुर्वेद को खड़ा रखने के लिए अब विज्ञान की टेक चाहिए- किन्तु आयुर्वेदिक डॉक्टरों द्वारा एलोपैथिक प्रैक्टिस करने से यह नहीं होने वाला। दोयम दर्जा किसी के लिए भी गुणवत्तापूर्ण नहीं- न डाॅक्टरों के लिए, न मरीजों के लिए। भले ही इसमें खर्च और मेहनत कम हो।
किन्तु सरकारों की विवशता यह है कि लोगों को पर्याप्त स्वास्थ्य सुविधा देने में एलोपैथिक डॉक्टर कम पड़ रहें हैं- ऐसे में आयुर्वेद डॉक्टरों से एलोपैथी का काम कुछ हद तक लिया जा रहा है- जिसमें अब सामान्य सर्जरी का अधिकार देना भी शामिल हो गया है। बेशक जटिल सर्जरी के इस युग में सामान्य सर्जरी एलोपैथिक डॉक्टरों के लिए बोझ-स्वरूप है, फिर भी वो भीड़ कायम रखना चाहते है- आर्थिक कारणों से यानि कम जोखिम में ज्यादा पैसा कमाने के लिए । आयुर्वेद के डॉक्टर इन्हीं कम जोखिम वाली सर्जरी को करके विज्ञान के फल आधुनिक सर्जरी में अपना हिस्सा चाहते हैं- क्योंकि काफी दिन दोयम दर्जे में रहकर उन्होंने देख लिया है। एलोपैथिक डाॅक्टरों को मरीज रेफर करने, गुमनामी में उनके नर्सिंगहोम चलाने, राष्ट्रीय कार्यक्रमों में कम तनख्वाह में भागीदारी करते करते आयुर्वेद डॉक्टर अपने आप को शोषित और अपमानित महसूस करते हैं। वे अब खुद भी अपने हाथ में आधुनिक चिकित्सा की कलााकौशल चाहते है। आयुर्वेद को बचाना उनका मकसद नहीं।
(आयुर्वेद को बचाना किसी का मकसद नही है।आयुर्वेद बचा हुआ है तो अपने आप क्योंकि वह भारतीय जीवनशैली का हिस्सा है)
एलोपैथिक डॉक्टर पहले ही अपनी काफी जमीन नर्सों, फाॅर्मेसिस्टों, पैरामेडिक के हवाले कर चुके हैं – जो खेत पीछे छूट जाते है उन पर कोई और कब्जा कर ही लेता है या फिर यह प्रकृति का नियम है कि ऊपर से भरने वाला बर्तन नीचे को छलकेगा ही।
सामान्य सर्जरी भारत जैसे विशालकाय देश में भीड़भाड़ भरी है सर्जनों की आम का मुख्य स्रोत भी है। उसके ऊपर पेट, पथरी, गर्भाशय की गैरजरूरी सर्जरी का कदाचारी ठप्पा भी लगा हुआ है। एलोपैथिक सर्जनों पर दबाव कम करने की मंशा से सामान्य सर्जरी का अधिकार आयुर्वेद डॉक्टरों को दिया जाना चाहिए। यह सच है कि आयुर्वेद डॉक्टरों की अनुपस्थिति में भारत में डॉक्टर; पेशेन्ट अनुपात काफी निराशाजनक है, तथा विभिन्न राष्ट्रीय कार्यक्रमों को चलाने वाला कोई नहीं मिलने वाला है। दूसरा सर्जरी एक चिकित्सकीय कौशल है, प्रशिक्षण से प्राप्त किया जा सकता है।अतः यह मानना कि आयुर्वेदिक डॉक्टर सामान्य सर्जरी को नहीं कर पायेंगे, पूर्वाग्रह ये ग्रसित है और उनको एलोपैथिक निश्तेचक की सुविधा न देना केवल हठधर्मिता होगी।
आधुनिक सर्जरी के समावेश से आयुर्वेद यदि आधुनिक बन सकता है, विकसित हो सकता है तो ऐसा करने में कोई बुराई नहीं है। किन्तु आम लोगों की स्वीकार्यता के बिना यह संभव नहीं हो सकेगा। दूसरे आयुर्वेद को अपना अड़ियल अवैज्ञानिक रवैया छोड़ना होगा – क्योंकि सर्जरी के साथ संक्रमण और जान का खतरा भी रहता है। इसीलिए जिम्मेदारी बहुत बड़ी है। यह जिम्मेदारी सर्जरी का अधिकार प्रदान करने वाली सरकारों पर नही लादा जा सकेगा। और न ही एलोपैथिक सर्जनों को अपने द्वारा हुये त्रुटिपूर्ण काम को सॅभालने का आसान आधार माना जा सकेगा।
विकसित देशों में उपलब्ध चिकित्सकतंत्र की दुहाई देकर देश में उपलब्ध जन संसधानो की अनदेखी नहीं की जा सकती। यह वक्त की मांग है कि आयुर्वेद डॉक्टरों की शल्य के कौशल से नवाजा जाय। यह एलोपैथिक सर्जनों के लिए निवारक का काम भी करेगा जिससे वो अपना स्तर ऊंचा रख पाने के लिए प्रोत्साहित होंगे। तथा जटिल आपरेशनो में गुणवत्ता हासिल करने के लिए उनके पास पर्याप्त समय भी होगा। साथ ही साथ चौरी-छुपे अथवा उपनगरीय क्षेत्रों में कानून की नजर से बच कर आपरेशन करने वाले आयुर्वेदिक डाॅक्टरों को वैधिक जवाबदेही के दायरे में लाया जा सकेगा। आयुर्वेद डॉक्टरों को जिस ईमानदारी और पेशेवराना तरीके से काम करना होगा वह उपलब्ध मानकों से काफी ऊपर होना चाहिए। अन्यथा जनस्वीकार्यता कभी हासिल नहीं हो पायेगी।
आमजन के अंधे विश्वास और गैरजानकारी का फायदा किसी भी सूरत में नहीं उठाया जाना चाहिए। गरीब से गरीब व्यक्ति को भी उच्च गुणवत्तापूर्ण चिकित्सा का हक हासिल है। यदि आयुर्वेदिक डॉक्टर शल्यचिकित्सक ऐसा कर पाने में सफल होते है तो, देश के लिए इससे बेहतर कुछ भी नहीं। सिर्फ कतिपय एलोपैथिक चिकित्सकों के गैरपेशेवर और कदाचारयुक्त अवैज्ञानिक रवैये को आधार बनाकर आयुर्वेदिक चिकित्सक सर्जरी (Aayurved surgery) करते वक्त हुई चूक से नहीं बच पायेगे।
चिकित्सा के मत भले ही अलग-अलग हो, डॉक्टर भले ही अच्छे-बुरे दोनों हो, चिकित्सा सिर्फ एक ही हो सकती है- जीवनरक्षक जीवनदायिनी चिकित्सा। वह समझौते के परे है।
डाॅ एन.एस.बिष्ट, एम.डी.(मेडिसिन),लेखक – वरिष्ठ फिजिशियन, थ्योरिस्ट, दार्शनिक लेखक एवं कवि हैं)
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