स्पीकर को लिखे पत्र में महाधिवक्ता बाबुलकर की ‘नो’ कहा, मामला कोर्ट में नहीं दे सकते विधिक राय
पत्र में कोटिया कमेटी के फैसले का भी किया उल्लेख.फैसले में सभी नियुक्तियों को अवैध बताया गया था
देखें, महाधिवक्ता एस एन बाबुलकर का स्पीकर को लिखा विस्तृत पत्र
अविकल उत्तराखण्ड
देहरादून। महाधिवक्ता एस एन बाबुलकर के स्पीकर ऋतु खंडूड़ी को लिखे पत्र के बाद उत्तराखण्ड की विधानसभा में 2016 से पहले हुई बैकडोर भर्ती के मामले में नया मोड़ आ गया है। स्पीकर के विधिक राय मांगने के बाद 9 जनवरी के पत्र में महाधिवक्ता बाबुलकर ने ‘ना’ करते हुए पूरी स्थिति साफ की।
उनके पत्र का कुल लब्बोलुआब यह निकला कि चूंकि बैकडोर भर्ती का यह मसला हाईकोर्ट की सिंगल बेंच में विचाराधीन है लिहाजा वह इस मसले पर कोई कानूनी राय नहीं सकते। महाधिवक्ता ने कोर्ट के फैसले के इंतजार की भी बात कही है। उन्होंने कहा कि 2016 से पहले की गई नियुक्तियों के नियमितिकरण की वैधता पर कोई विधिक राय नहीं दे सकते। क्योंकि इन कर्मचारियों के नियमितीकरण की वैधता से जुड़़ा कोई दस्तावेज उन्हें नहीं मिला है। साथ ही यह भी कहा कि कोटिया कमेटी इन नियुक्तियों को अवैध ठहरा चुकी है।
महाधिवक्ता ने अंग्रेजी में लिखे अपने पत्र में बैकडोर भर्ती पर गठित कोटिया कमेटी की रिपोर्ट के उन अंशों कभी उल्लेख किया, जिसमें 2001 से 2022 तक की नियुक्तियों को अवैध ठहराया है-
की गयी तदर्थ नियुक्ति हेतु सभी पात्र एवं इच्छुक अभ्यर्थियों को समानता का अवसर प्रदान नहीं करके भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 तथा अनुच्छेद 16 का उल्लघन किया गया है। “ (कोटिया कमेटी)
कोटिया कमेटी 2001 से 2022 तक हुई नियुक्तियों को अवैध ठहरा चुकी है। 2016 से पहले के कार्मिक रेगुलर भी हो चुके हैं। 2016 के बाद 250 तदर्थ कर्मी बर्खास्त होने के बाद ठंड में समूचे परिवार के साथ आंदोलन कर रहे हैं।
महाधिवक्ता ने कानूनी राय के मसले पर गेंद स्पीकर ऋतु खण्डूड़ी के कोर्ट में खिसका दी है। अब स्पीकर को कोटिया कमेटी की रिपोर्ट पर 2016 से पहले नियुक्त हुए कर्मियों पर भी फैसला लेना होगा। मामले में हो रही देरी के चलते विपक्षी दलों के हमले भी लगातार बढ़ रहे हैं.. विधानसभा बैकडोर भर्ती घोटाले में स्पीकर एक बार फिर एक्सपर्ट कोटिया कमेटी के फैसले को लागू करेंगी या फिर विधिक राय का और इंतजार करेंगी…
9 जनवरी 2023 को महाधिवक्ता एस एन बाबुलकर का स्पीकर ऋतु खण्डूड़ी को लिखा पत्र
OPINION
Date 09/01/2023
The undersigned has received a file no. 744/Adhi./2022 from the office of Hon’ble Speaker, Vidhan Sabha for seeking opinion in respect of regularized employees in the Vidhan Sabha Secretariat.
I have gone through the record and the judgement dated 24-11-2022 passed by the Hon’ble Division Bench of this Hon’ble Court, whereby the order dated 15-10-2022 passed by the Hon’ble Single Judge in writ petition no. 1929 (S/S)/ 2022 and other connected writ petitions, was set aside to the extent that the learned Single Judge granted stay of the termination of the’ respondents writ petitioners’ services and directed the State to take service from them and continue to pay their salaries”. Further, the Division Bench directed the learned Single Judge to proceed to dispose of the writ petitions on their own merits. The Hon’ble Court had observed in para-36, as hereunder
*36 The learned Single Judge may proceed to dispose of the writ petitions on their own merits. The observations made by us on the merits of the case have been made for the purpose of dealing with the present appeals, and shall not come in the way of the learned Single Judge in deciding the writ petitions”.
The said writ petitions are, thus, still pending for disposal before this Hon’ble Court.
The challenge in the aforesaid writ petition has been made, inter-alia, on the ground of discrimination. It has been alleged that similarly situated employees are continuing and their services have been terminated arbitrarily and illegally.
Brief statement of fact has been made in para-24 of the writ petition no. 1929 (S/S)/ 2022, which is being quoted below:-
“24- That the action of respondent authorities regularizing the services of persons appointed on contract/ adhoc basis from 2001 to 2015, and not considering the petitioners case for regularization, and terminating their service is arbitrary and illegal.”
That apart, the Hon’ble Division Bench has relied on the expert committee report dated 20-09-2022. In the said report also it has not been mentioned that the appointments made from the year 2001 to 2015, which were regularized in the year 2013 and 2016, were valid appointments and were not contrary to the rules. I have not found any document in the record, where the appointments made between 2001 to 2015, subsequently regularized in the year 2013 and 2016, were given clean chit by the expert committee, on the contrary, the expert committee in paragraph-12 of the report has categorically stated that ur eren afarerna 2001) 2022 ins की गयी तदर्थ नियुक्ति हेतु सभी पात्र एवं इच्छुक अभ्यर्थियों को समानता का अवसर प्रदान नहीं करके भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 तथा अनुच्छेद 16 का उल्लघन किया गया है। “
Since, various issues, as regards, total appointments made from 2001 to 2022 are likely to be discussed in the pending writ petitions, since, the aforesaid matter is subjudice, therefore, at this stage, it would not be proper to express any opinion in the subjudice matter.
In view of above, the Vidhan Sabha Secretariat will have to wait at least, the learned Single Judge pronounced his decision.
Opinion accordingly.
(S.N. Babulkar) Advocate General
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