…कटी पतंग की डोर फिर उलझी त्रिवेंद्र की उंगलियों में

डोईवाला सीट पर प्रत्याशी चयन पर हुए खूब खेल

ऊपर से मिले ‘निर्देश’ के बाद 19 जनवरी को चुनाव लड़ने से मना कर चुके थे पूर्व सीएम त्रिवेंद्र

आखिर में दीप्ति का नाम कटा और त्रिवेंद्र समर्थक बृजभूषण गैरोला को मिला डोईवाला से टिकट

अविकल थपलियाल

देहरादून। मुद्दई लाख बुरा चाहे क्या होता है वही होता है जो मंजूरे खुदा होता है। टिकट फाइनल करने और फिर कटने की जारी चुनावी फिल्म डोईवाला विधानसभा में भी खूब चली।

टिकट टिकट फिल्म की कहानी 19 जनवरी से शुरू होती है। मार्च 2021 को अचानक हटा दिए गए पूर्व सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत को डोईवाला सीट पर लड़ने से साफ ‘मना’ कर दिया जाता है। चूंकि, डोईवाला के पैनल में सिर्फ एक ही नाम त्रिवेंद्र सिंह रावत का ही दिल्ली गया था। लिहाजा, किसी भी अव्यवहारिक स्थिति से बचने के लिए पूर्व सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत से चुनाव नहीं लड़ने सम्बन्धी एक पत्र लिखवा लिया जाता है। टिकट की घोषणा होने से ठीक 24 घण्टे पहले त्रिवेंद्र सिंह रावत राष्ट्रीय अध्यक्ष नड्डा को लिखे पत्र में चुनाव नहीं लड़ने के बाबत अपनी ‘इच्छा’ से अवगत कराते हैं। यह अहम राजनीतिक घटना 19 जनवरी की है।

इस पत्र के ठीक अगले दिन भाजपा उत्त्तराखण्ड के लिए 59 सीटों पर प्रत्याशी घोषित कर देती है। लेकिन डोईवाला सीट को होल्ड पर रख दिया जाता है। इसी मोड़ पर त्रिवेंद्र सिंह रावत को चुनावी राजनीति से बाहर कर नये चेहरे की तलाश होती है।

पुष्ट सूत्रों के मुताबिक भाजपा हाईकमान के स्तर से जनरल बिपिन रावत के परिवार के सदस्य को डोईवाला से लड़ाकर राजनीतिक लाभ लेने की कोशिशें शुरू हो जाती है। केंद्रीय मंत्री अजय भट्ट को यह जिम्मेदारी सौंपी जाती है। जनरल के भाई कर्नल विजय रावत से बात होती है। एक बार उनकी हां करने की खबर आती है लेकिन दूसरे ही पल वे चुनाव लड़ने से मना कर देते है। कारण खराब स्वास्थ्य बताया जाता है।

भाजपा के केंद्रीय रणनीतिकारों के लिए यह एक बड़ा झटका था। लेकिन कोशिशें जारी रहती है। और जनरल रावत की बेटी से चुनाव लड़ने के लिए अनुरोध किया जाता है। लेकिन जनरल रावत की पुत्री व भाई भाजपा के ‘राजनीतिक उपयोग’ को लेकर विशेष सतर्क दिखे। और पिता व मां को खोने के बाद भावनात्मक व मानसिक तौर पर टूट चुकी बेटी ने भी भाजपा के सुझाव को स्वीकार नहीं किया। लेकिन शायद किसी शुभचिंतक ने दिल्ली में किरण बेदी की फ्लॉप राजनीति का भी ठोस उदाहरण सामने रख दिया।

भाजपा की मुख्य कोशिश यह थी कि स्वर्गीय जनरल बिपिन रावत के नाम पर उत्त्तराखण्ड में सहानुभूति बटोरी जा सकती है।
राजनीतिक व चुनावी दृष्टि से फलदायी भाजपा की इस योजना के पंख नहीं लगने पर तेजी से दूसरे  विकल्प पर बात होने लगी। यमकेश्वर से टिकट काटने के बाद जनरल खंडूडी की विधायक बेटी ऋतु खंडूडी के नाम पर भी विचार हुआ। लेकिन बात नहीं बनी। इस बीच प्रत्याशियों की दूसरी सूची में भी डोईवाला व टिहरी सीट को होल्ड पर रखा गया।

दीप्ति रावत भारद्वाज के विरोध में हिमाचल के जुब्बल खाई के चुनाव परिणाम की दी गयी दलील। पार्टी प्रत्याशी को 2600 मत मिले जबकि भाजपा के बागी को 23,662 मत मिले

इस बीच , 27 जनवरी को प्रदेश व केंद्रीय नेताओं ने महिला नेत्री दीप्ति रावत भारद्वाज का डोईवाला से नाम फाइनल कर दिया। लेकिन आधिकारिक घोषणा नहीं की। इसमें प्रदेश के एक मंत्री की विशेष भूमिका भी देखी गयी।  दीप्ति रावत को भाजपा महिला मोर्चा व कार्यकर्ताओं ने बधाई देनी भी शुरू कर दी। यह खबर फैलते ही त्रिवेंद्र समर्थकों ने बगावत का झण्डा बुलंद कर दिया। टिकट के युवा दावेदार सौरभ थपलियाल व जितेंद्र नेगी के समर्थक भी धरना प्रदर्शन व बैठकी के जरिए हाईकमान तक अपनी आवाज पहुंचाने लगे। रात तक तो विरोध चरम पर पहुंच चुका था। दीप्ति को पैराशूट प्रत्याशी बता जमानत जब्त होने का दावा भी किया गया।

यही नहीं, हिमाचल के जुब्बल चुनाव में बाहरी महिला प्रत्याशी को मिले मात्र 2600 मतों का उल्लेख कर केंद्रीय नेतृत्व को आगाह किया गया। गुरुवार की देर रात तक त्रिवेंद्र व अन्य नेता मिशन बाहरी प्रत्याशी में जुटे रहे। हाईकमान बगावत के खतरे को भांप चुका था। पूर्व में चौबट्टाखाल विधानसभा से चुनाव हार चुकी दीप्ति रावत भारद्वाज के टिकट की घोषणा रोक दी गयी।

डोईवाला से भाजपा प्रत्याशी बृजभूषण गैरोला

और डोईवाला में दस दिन से जारी हाईप्रोफाइल मंथन व जंग के बाद नजरें पार्टी कार्यकर्ता बृजभूषण गैरोला व सौरभ थपलियाल पर टिक गई। शुक्रवार की सुबह तक देहरादून से लेकर दिल्ली तक नये नामों पर मंथन चलता रहा। अंततः घूम फिर कर गेंद अपने आप ही त्रिवेंद्र के कोर्ट में आ गयी। ‘मजबूरन’ चुनाव लड़ने से मना कर चुके त्रिवेंद्र की पसंद बृजभूषण गैरोला के हाथ में पार्टी का सिंबल आ चुका था। और हाईकमान जिस पतंग की डोर 19 जनवरी को काट चुका था वो उलझी डोर दस दिन बाद हवा में लहराती हुई फिर से त्रिवेंद्र की उंगलियों में फंस गई । बेचैन त्रिवेंद्र समर्थकों के लिए यह खबर किसी ताजे चुनावी झोंके से कम नहीं रहा..

चुनाव नहीं लड़ने सम्बन्धी ex cm त्रिवेंद्र सिंह रावत का पत्र

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