रामनगर में एक नये चक्रव्यूह की आहट

रामनगर में अपनों के चक्रव्यूह को भेद पाएंगे हरीश रावत!

कार्यकारी अध्यक्ष रंजीत रावत ने कहा, उन पर रामनगर से ही चुनाव लड़ने का दबाव

रामनगर में कांग्रेस की महाभारत शुरू

पुराने चेले रंजीत रावत की फौज हथियारों को पैना करने में जुटी

विश्लेषण/ अविकल थपलियाल

देहरादून। कहीं रामनगर में गुरु-चेले की जंग कांग्रेस को भारी न पड़ जाय। टिकट के मसले पर गुरु हरीश रावत गुरु साबित हुए। पार्टी ने बरसों पुराने चेले रंजीत रावत को इस बार रामनगर से मौका नही दिया। 2017 की मोदी लहर में रंजीत रावत रामनगर से चुनाव हारने के बाद नये सिरे से तैयारी में जुटे थे। लेकिन ऐन मौके पर गुरु ने पुराने हाथ दिखाते हुए रामनगर का टिकट कटवा लिया।

2017 के चुनाव के बाद हरीश रावत और रंजीत रावत के बीच मनमुटाव शुरू हुआ और 2022 की शुरुआत में अपने पीक पर पहुंच गया। सोमवार की शाम टिकट कटने की घोषणा के साथ ही कांग्रेस में अंदरूनी हलचल तेज हो गयी। हरीश रावत छत्तीसगढ़ के सीएम भूपेश बघेल के साथ देहरादून में एक कार्यक्रम में शामिल होने के बाद थिरक भी रहे थे। उधर, रामनगर में समर्थक रंजीत रावत के आवास पर जमा होने लगे।

टिकट कटने को लेकर नाराजगी और विद्रोही तेवर।
समर्थकों से बातचीत का लब्बोलुआब यह निकला कि रामनगर से ही गुरु के सामने निर्दलीय ताल ठोकी जाय। स्वंय रंजीत रावत ने भी इसी तरह के संकेत दिए कि ऐन मौके पर हरीश रावत रामनगर से लड़ने आये। उनके मन में ऐसा कुछ था तो पहले बता दिया होता । ऐसे में वे सल्ट विधानसभा से तैयारी करते।

रंजीत रावत का कहना है कि उनके समर्थक रामनगर के अलावा अन्य सीटों पर भी उम्मीदवार खड़ा करने का दबाव बना रहे हैं। समर्थकों व हाईकमान से बातचीत के बाद ही निर्णय लिया जाएगा।

रंजीत रावत के मूड से साफ लग रहा कि वे गुरु से दो दो हाथ करने की पूरी तैयारी में है। अगर पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष रंजीत रावत बागी हुए तो चुनाव की निर्णायक बाजी कांग्रेस के हाथ से फिसल भी सकती है।

यहां यह भी उल्लेखनीय है कि कांग्रेस ने अपने चारों कार्यकारी अध्यक्ष तिलक राज बेहड़, डॉ जीत राम व भुवन कापड़ी को उनके पसंदीदा सीट से टिकट दिया। लेकिन गुरु की इच्छा के आगे नतमस्तक केंद्रीय नेतृत्व ने चेले रंजीत रावत को सल्ट का विकल्प चुनने का मौका दिया।

चूंकि, हरीश रावत 2017 का विधानसभा चुनाव किच्छा व हरिद्वार ग्रामीण से लड़कर हार चुके हैं लिहाजा अपनी राजनीतिक पारी के अहम मोड़ पर खड़े हरदा इस बार पर्वतीय टच वाली विधानसभा की तलाश में थे। जहां से पहाड़ व मैदान तक चुनावी संदेश पहुंचाया जा सके।

इसके अलावा दिसंबर की हल्द्वानी रैली में पीएम मोदी ने हरीश रावत के 2017 में मैदानी सीटों पर चुनाव लड़ने को मुद्दा बनाते हुए वार भी किया था। मोदी ने बिना नाम लिए कहा था कि अगर उन्हें कुमाऊं से प्यार होता तो वे यहां छोड़कर कहीं और क्यों जाते।

भाजपा के इस चुनावी हमले के बाद हरीश रावत नयी सीट की तलाश में थे।फिर निगाहें रामनगर सीट पर अटकी। और अब टिकट भी हरदा की जेब में आ गया।

रामनगर में हरीश व रंजीत समर्थक पहले से ही एक दूसरे के खिलाफ आग उगलते रहे हैं। लंबे समय से तनातनी भी चल रही है।बीते 5 साल में दोनों के रिश्ते में भारी कुनैन घुली हुई है। रंजीत रावत भी समय समय पर 35 साल तक गुरु रहे हरीश रावत पर निशाना साधते रहे हैं।

ऐसे में दिल्ली में बैठे नेताओं ने तत्काल डैमेज कंट्रोल नहीं किया तो स्टार प्रचारक व सीएम के सबसे प्रबल दावेदार हरीश रावत घर की जबरदस्त महाभारत में उलझ कर रह जाएंगे। इस जंग का असर अन्य सीटों पर भी पड़ेगा। रामनगर के किले में टिकट कटने की झल्लाहट का शोर तेज होने लगा है। पुराने चेले रंजीत रावत की फौज ने भी तीर, तलवार भालों की धार बनानी शुरू कर दी है। और एक नए चक्रव्यूह को रचने का काम भी युद्धस्तर पर शुरू हो गया है…

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