खानपुर के निर्दल विधायक उमेश कुमार का क्षेत्रीय दल में शामिल (गठन!) होने का मामला
दल बदल कानून के उल्लंघन व चुनावी शपथ पत्र में गंभीर मुकदमे छुपाने के मुद्दे पर स्पीकर ऋतु खंडूडी व नैनीताल हाईकोर्ट के फैसले पर टिकी नजरें. देखें,
संविधान की दसवीं अनुसूची
अविकल उत्तराखण्ड
देहरादून। खानपुर के निर्दल विधायक की विधायकी पर मंडरा रहे खतरे पर अब जल्द ही फैसला आने की उम्मीद बंध गई है। अपने चुनावी शपथ पत्र में बलात्कार समेत अन्य गंभीर मुकदमे छुपाने व चुनाव जीतने के बाद 9 अप्रैल 2022 को एक नए क्षेत्रीय दल के गठन के निर्माण (या पूर्व में बने इस नाम के दल में शामिल होने! ) से दल बदल कानून उल्लंघन के सख्त घेरे में निर्दल विधायक उमेश कुमार फंस गए हैं। विधायक की सदस्यता पर होने वाले फैसले को लेकर स्पीकर ऋतु खंडूडी व हाईकोर्ट पर सभी की नजरें टिकी है।
कानूनविदों के अनुसार,वसंविधान की दसवीं अनुसूची के प्रावधानों के तहत निर्दलीय उमेश कुमार को दल बदल के कानून के उल्लंघन के आरोप में अयोग्य ठहराया जा सकता है।
हाईकोर्ट में 29 नवंबर से हर दिन होगी सुनवाई
कल, मंगलवार 29 नवंबर से प्रदेश विधानसभा का शीतकालीन सत्र शुरू होने जा रहा है। और 29 अक्टूबर से ही नैनीताल हाईकोर्ट में उमेश कुमार द्वारा मुकदमे छुपाए जाने को लेकर डे टू डे सुनवाई शुरू हो रही है।
कुछ दिन पहले 23 नवंबर को नैनीताल हाईकोर्ट ने उमेश कुमार द्वारा चुनावी शपथ पत्र में तथ्य छुपाने के आरोप सम्बन्धी जनहित याचिका को पोषणीय मानते हुए 29नवंबर से हर दिन सुनवाई के निर्देश दिए थे। याचिका में कहा गया था कि उमेश कुमार ने अपने चुनावी शपथ पत्र में बलात्कार व अन्य मुकदमे छुपाए।
मंगलवार से शुरू हो रही प्रतिदिन सुनवाई के बाद हाईकोर्ट का फैसला जल्द आने की उम्मीद है। सुप्रीम कोर्ट के कई आदेश में प्रत्याशी द्वारा अपने चुनावी शपथ पत्र में जानकारी छुपाने पर सम्बंधित के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की गई है।
दल-बदल कानून के उल्लंघन के मसले पर स्पीकर के बहुप्रतीक्षित फैसले के इंतजार
खानपुर से निर्दलीय चुनाव जीतने के बाद उमेश कुमार ने 9 अप्रैल को देहरादून में उत्तराखण्ड जनता पार्टी के गठन का ऐलान किया था।इस बारे में सोशल मीडिया एकाउंट के जरिये लोगों को बताया भी गया। स्थानीय लार्ड वेंकटेश वेडिंग पॉइंट में आयोजित इस क्षेत्रीय दल में गठन का समाचार प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक व सोशल मीडिया की सुर्खियां भी बना।
निर्दलीय उमेश कुमार का यह कदम संविधान की दसवीं अनुसूची के तहत दल बदल विरोधी कानून का खुला उल्लंघन मानते हुए रविन्द्र पनियाला व अन्य ने 26 मई को स्पीकर के समक्ष याचिका पेश की।
याचिका में क्षेत्रीय दल के गठन से जुड़ी तमाम कतरनें व वीडियो बतौर सबूत भी पेश कर दिए। मीडिया की सुर्खियां बनते ही उमेश कुमार के सोशल मीडिया से कुछ मैटर व वीडियो डिलीट कर दिए गए।
इधर, लम्बी चुप्पी के बाद विधानसभा सचिवालय ने बसपा प्रत्याशी रहे (अब भाजपा में) रविन्द्र पनियाला व अन्य की याचिका का संज्ञान लिया । स्पीकर ऋतु खंडूड़ी ने उन सभी याचिकाओं को स्वीकार कर लिया । विधानसभा सचिव ने 28 अक्टूबर को इस आशय की सूचना सभी विधायकों और शासकीय अधिकारियों को भी भेज दी है. (देखें पत्र)
Speaker took cognizance of defection law violation case related to independent MLA
उत्तराखण्ड विधानसभा सदस्य ( दल परिवर्तन के आधार पर निरहर्ता) नियमावली 2005 के तहत स्पीकर एक निर्दलीय विधायक के क्षेत्रीय दल के गठन से हुए दल बदल कानून के उल्लंघन के इस मामले में छह महीने बाद भी कोई फैसला नहीं लिया गया।
कानून के जानकारों का कहना है कि यह मामला विधानसभा अध्यक्ष के स्तर का है जिसे अब तक निस्तारित कर लिया जाना चाहिए था । हाल ही में विधानसभा भर्ती घपले में कड़ा स्टैंड लेने वाली स्पीकर ऋतु खंडूडी का नियमों के तहत लिए जाने वाला सम्भावित फैसला भी एक नजीर बन सकता है…
2016 में विस स्पीकर गोविन्द सिंह कुंजवाल ने दल बदल कानून के उल्लंघन पर लिया था बड़ा फैसला
2016 में कांग्रेस की हरोश रावत सरकार के नौ विधायकों ने विधानसभा के अंदर भाजपा का दामन थाम लिया था। बाद में स्पीकर गोविन्द सिंह कुंजवाल ने दल बदल कानून के उल्लंघन के आरोप में सभी नौ विधायकों को अयोग्य घोषित कर दिया था। हाईकोर्ट ने भी स्पीकर के फैसले को सही ठहराया था।
क्या है संविधान की दसवीं अनुसूची?
भारतीय संविधान की 10वीं अनुसूची जिसे लोकप्रिय रूप से ‘दल बदल विरोधी कानून’ (Anti-Defection Law) कहा जाता है, वर्ष 1985 में 52वें संविधान संशोधन के द्वारा लाया गया है।
यह ‘दल-बदल क्या है’ और दल-बदल करने वाले सदस्यों को अयोग्य ठहराने संबंधी प्रावधानों को परिभाषित करता है।
इसका उद्देश्य राजनीतिक लाभ और पद के लालच में दल बदल करने वाले जन-प्रतिनिधियों को अयोग्य करार देना है, ताकि संसद की स्थिरता बनी रहे।
दसवीं अनुसूची की ज़रूरत क्यों?
लोकतांत्रिक प्रक्रिया में राजनीतिक दल सबसे अहम् हैं और वे सामूहिक आधार पर फैसले लेते हैं।
लेकिन आज़ादी के कुछ वर्षों के बाद ही दलों को मिलने वाले सामूहिक जनादेश की अनदेखी की जाने लगी।
विधायकों और सांसदों के जोड़-तोड़ से सरकारें बनने और गिरने लगीं। 1960-70 के दशक में ‘आया राम गया राम’ अवधारणा प्रचलित हो चली थी।
जल्द ही दलों को मिले जनादेश का उल्लंघन करने वाले सदस्यों को चुनाव में भाग लेने से रोकने तथा अयोग्य घोषित करने की ज़रूरत महसूस होने लगी।
अतः वर्ष 1985 में संविधान संशोधन के ज़रिये दल-बदल विरोधी कानून लाया गया।
अयोग्य घोषित किये जाने के आधार
दल-बदल विरोधी कानून के तहत किसी जनप्रतिनिधि को अयोग्य घोषित किया जा सकता है:
⇒ यदि एक निर्वाचित सदस्य स्वेच्छा से किसी राजनीतिक दल की सदस्यता को छोड़ देता है।
⇒ यदि कोई निर्दलीय निर्वाचित सदस्य किसी राजनीतिक दल में शामिल हो जाता है।
⇒ यदि किसी सदस्य द्वारा सदन में पार्टी के पक्ष के विपरीत वोट किया जाता है।
⇒ यदि कोई सदस्य स्वयं को वोटिंग से अलग रखता है।
⇒ छह महीने की समाप्ति के बाद यदि कोई मनोनीत सदस्य किसी राजनीतिक दल में शामिल हो जाता है।
दल-बदल अधिनियम के अपवाद
यदि कोई व्यक्ति स्पीकर या अध्यक्ष के रूप में चुना जाता है तो वह अपनी पार्टी से इस्तीफा दे सकता है और जब वह पद छोड़ता है तो फिर से पार्टी में शामिल हो सकता है। इस तरह के मामले में उसे अयोग्य नहीं ठहराया जाएगा।
यदि किसी पार्टी के दो-तिहाई विधायकों ने विलय के पक्ष में मतदान किया है तो उस पार्टी का किसी दूसरी पार्टी में विलय किया जा सकता है।
निर्दल विधायक उमेश कुमार ने सोशल मीडिया में क्षेत्रीय दल के गठन की पूर्व सूचना दी थी
Pls clik- खानपुर सीट से बसपा के टिकट पर चुनाव लड़े रविन्द्र पनियाला ने 26 मई 2022 को स्पीकर को निर्दल विधायक उमेश कुमार द्वारा दल बदल कानून का उल्लंघन करने पर सदस्यता निरस्त करने के बाबत याचिका पेश की थी। इस पर स्पीकर ऋतु खंडूड़ी के फैसले का पूरे प्रदेश को इंतजार है..देखें वो खबर
बसपा की याचिका से निर्दलीय विधायक की सदस्यता पर मंडराया खतरा
Pls clik
अब उमेश कुमार की विधायकी से जुड़ी याचिका पर अब डे टू डे होगी सुनवाई
Total Hits/users- 30,52,000
TOTAL PAGEVIEWS- 79,15,245