हल्द्वानी अवैध अतिक्रमण मामला- सुप्रीम कोर्ट की 7 फरवरी की सुनवाई पर टिकी निगाहें

सात फरवरी को सुप्रीम कोर्ट के सवालों के जवाब देगा रेल विभाग. सुप्रीम कोर्ट की 5 जनवरी को ‘ना’ के बाद हल्द्वानी की बस्ती में नहीं चला था बुलडोजर, सात फरवरी पर टिकी निगाहें

अविकल उत्तराखण्ड

हल्द्वानी/नई दिल्ली/देहरादून। हल्द्वानी की बनफूलपुरा बस्ती के अतिक्रमण को लेकर 7 फरवरी को सुप्रीम कोर्ट में एक बार फिर जिरह होगी। नैनीताल जिला प्रशासन,राजनीतिक दल समेत हजारों प्रभावित परिवार की नजर सात फरवरी को सुप्रीम कोर्ट में होने वाली सुनवाई पर टिकी हुई है। ताजा जानकारी के मुताबिक जिला प्रशासन के आलाधिकारी भी 7 फरवरी के सुप्रीम कोर्ट में होने वाली सुनवाई से पहले कुछ भी कहने से साफ बच रहे हैं।

बहरहाल, 7 फरवरी को सुप्रीम कोर्ट में होने वाली सुनवाई में रेलवे कितने दमदार ढंग से अपने तर्कों को रखता है। यह भी चर्चा के केंद्र में है।

गौरतलब है कि पूर्व में नैनीताल जिला प्रशासन ने 8 जनवरी से हल्द्वानी के हजारों कच्चे पक्के मकानों को तोड़े जाने के पुख्ता प्रबंध कर लिए थे। लेकिन सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद हल्द्वानी के वनफूलपुरा व गफूर बस्ती के 50 हजार मकानों पर बुलडोजर नहीं चला।

सुप्रीम कोर्ट में चली सुनवाई के बाद नैनीताल हाईकोर्ट के अतिक्रमण हटाये जाने के आदेश पर रोक लगा दी थी। इस संवेदनशील मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट में 7 फरवरी को सुनवाई तय की। रेलवे अपने तर्कों के साथ एक बार फिर 7 फरवरी को अवैध अतिक्रमण हटाये जाने को लेकर पैरवी करेगा। (देखें सुप्रीम कोर्ट का फैसला)

फिलहाल, दुआओं के दौर के बीच आये फैसले के बाद हल्द्वानी की इन प्रभावित बस्तियों इन मिठाई बांटी गई थी। कांग्रेस खेमे में विशेष खुशी का माहौल देखा गया। इस बीच, सुप्रीम कोर्ट की व्यवस्था के बाद नैनीताल पुलिस-प्रशासन ने पुलिस फोर्स की तैनाती को टाल दिया था।

सुप्रीम कोर्ट के फैसले की पूर्व संध्या पर सीएम धामी ने भी कहा था कि राज्य सरकार अदालत के फैसले का सम्मान करेगी। साथ ही यह भी कहा कि राज्य सरकार इसमें कोई पार्टी नहीं है। बहरहाल, 5 जनवरी के फैसले के बाद हल्द्वानी की इन बस्तियों में खुशी के गीत गाये । दुआओं का दौर भी जारी रहा।

और अब 7 फरवरी को सुप्रीम कोर्ट रेलवे का पक्ष सुनने के बाद बनफूलपुरा बस्ती के लोगों को और राहत देती है याअतिक्रमण हटाने की दिशा में कदम बढ़ाती है,इस पर उत्तराखण्ड समेत पूरे देश की नजरें टिकी हुई हैं।

नैनीताल हाईकोर्ट का फैसला-

गौरतलब है कि हाईकोर्ट नैनीताल ने 27 दिसंबर को बनभूलपुरा,ढोलक व गफूर बस्ती में रेलवे की 78 एकड़ जमीन पर 4365 अवैध मकानों को हटाने के आदेश किये थे। इनमें अधिसंख्यक मुस्लिम परिवार है। नैनीताल हाईकोर्ट के आदेश के बाद 8 जनवरी से रेलवे की जमीन पर 50 साल से बसे हजारों परिवारों को हटाने की कवायद शुरू होनी थी। इससे पूर्व स्थानीय पुलिस प्रशासन अतिक्रमण हटाने की मुनादी भी करवा चुका था। इसी के साथ इलाके में कैंडल मार्च, जुलूस, सभाएं, प्रदर्शन, कीर्तन व दुआओं का दौर भी शुरू हो गया था। सर्द मौसम में महिलाएं,बुजुर्ग व छोटे बच्चे सड़क पर उतरे हुए हैं।

हजारों मकानों को तोड़े जाने की आशंका के बीच बस्ती के मुस्लिम व हिन्दू परिवारों के चेहरे में बेचैनी व तनाव के अक्स साफ पढ़े जा रहे थे। आरपीएफ व पीएसी की पांच-पांच कंपनियां मौके पर तैनात कर दी गयी हैं। बैरिकेडिंग समेत अन्य सुरक्षा इंतजाम किये जाने लगे। आठ जनवरी से पहले पैरामिलिट्री फोर्स की 14 कंपनियां भी हल्द्वानी पहुंचने वाली थी।डीएम धीराज गर्ब्याल के आदेश पर बनफूलपुरा इलाके के लाइसेंस शस्त्र लाइसेंस भी थाने में जमा करने के आदेश किये गए। प्रशासन को अतिक्रमण हटाने के दौरान हिंसा की भी आशंका सता रही थी।

साल के पहले दिन हाईकोर्ट के निर्देश पर रेलवे अतिक्रमण के बाबत सार्वजनिक नोटिस प्रकाशन और दो जनवरी को मुनादी कराते हुए एक सप्ताह में सभी अतिक्रमणकारियों को कब्जा हटा लेने की चेतावनी देने के बाद तो धरना प्रदर्शन व दुआओं का सिलसिला काफी तेज हो गया।इस दौरान, कांग्रेस, सपा समेत अन्य राजनीतिक संगठनों ने भो हल्द्वानी में प्रभावित परिवारों के पक्ष में आवाज बुलंद की। जाड़ों में बस्तियों को हटाने सम्बन्धी पुलिस कार्यवाही को लेकर पूर्व सीएम हरीश रावत ने  सीएम धामी को भी पत्र लिखा था।उजड़ने की आशंका के बीच हल्द्वानी से कांग्रेस विधायक सुमित हृदयेश व अन्य ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया । और 5 जनवरी को आये सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद हजारों लोगों ने राहत की सांस ली। अवैध अतिक्रमण की जद में हजारों मुस्लिम परिवारों के अलावा लगभग तीन दर्जन हिंदु परिवार भी आ रहे हैं। इसके अलावा, कुछ कार्यालय भी अतिक्रमण की चपेट में हैं। कुल 2.2 किलोमीटर के इलाके में अवैध अतिक्रमण चिन्हित किये गए हैं।

2007 में अतिक्रमण हटाते हुए हो चुका है हल्द्वानी में बवाल-

2007 में भी रेलवे की जमीन पर अतिक्रमण हटाने की कोशिश हुई थी। लेकिन बवाल हो जाने और कार्रवाई रोक दी गुई। इस बीच,नैनीताल हाई कोर्ट के सख्त आदेश के बाद सरकारी मशीनरी फिर हरकत में आई।2013 में हल्द्वानी निवासी रविशंकर जोशी ने गौला नदी में अवैध खनन को लेकर नैनीताल हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की थी। यह कहा गया कि अवैध बस्तियों में रहने वाले खनन करते हैं। इसके बाद अवैध अतिक्रमण चिन्हित किये गए। हाईकोर्ट के निर्देश पर राज्य संपदा अधिकारी पूर्वोत्तर रेलवे इज्जतनगर मंडल में 2018 से सुनवाई शुरू हुई थी। रेलवे के अनुसार अतिक्रमण की जद में आए 4365 वादों की सुनवाई के दौरान कोई भी अतिक्रमणकारी कब्जे को लेकर ठोस सबूत नहीं दिखा पाया। किसी के पास भी जमीन संबंधित कागजात नहीं मिले।बाद में संशोधित PIL पर चली सुनवाई के बाद 27 दिसंबर को हाई कोर्ट की खंडपीठ ने अतिक्रमण हटाने संबंधी सख्त आदेश दिए हैं। पुलिस,प्रशासन व खुफिया विभाग अतिक्रमणकारियों कक हलचल पर विशेष निगाह रखे हुए हैं। कांग्रेस समेत अन्य दल प्रभावित लोगों को बसाने की मांग के साथ जाड़ों में अतिक्रमण तोड़े जाने की तैयारियों का विरोध कर रहे हैं।

राजनीति तेज

रेलवे की जमीन पर कमोबेश हर सरकार में कब्जे होते रहे। पहले उत्तर प्रदेश और फिर उत्तराखण्ड बनने के बाद अवैध रूप से लोगों को बसाने का खेल भी चलता रहा। इसके पीछे वोटों की राजनीति प्रमुख तौर पर सामने आई।

यह भी आश्चर्यजनक है कि हल्द्वानी के वनफूलपुरा में रेलवे की जमीन पर अस्पताल भी बन गए और स्कूल भी। यह सब कैसे हुआ और किसने किया। यह भी जांच का विषय है। हालांकि, सीएम धामी का कहना है कि यह रेलवे की जमीन का मसला है। राज्य सरकार को कोई लेना देना नही। लेकिन रेलवे की इस भूमि पर विभिन्न सरकारों के समय हुए अतिक्रमण व सरकारी भवन खड़े हो जन्स भी कम आश्चर्य नहीं है।

सुप्रीम कोर्ट ने भी पूछा है कि हल्द्वानी में रेलवे कितनी और राज्य सरकार की कितनी जमीन और कब्जा है। कुल 2.2 किमी में अवैध निर्माण बताया जा रहा है।

अब इस मामले में मुख्य तौर पर भाजपा व कांग्रेस के बीच तलवारें खिंची हुई है। सपा भी पूरे मामले में तड़का मार रही है।

50 साल पुराना है रेलवे भूमि पर कब्जा-

नैनीताल जिले के हल्द्वानी के वनभूलपुरा व गफूर बस्ती में रेलवे की भूमि पर 50 साल पहले अतिक्रमण शुरू हुआ था। धीरे धीरे अतिक्रमण 78 एकड़ जमीन तक हो गया । मुस्लिम बहुल बस्ती के लोगों का कहना है कि वे 50 साल से भी अधिक समय से रह रहे हैं। बस्ती के लोगों का कहना है कि वे नगर निगम को टैक्स भी देते हैं। विभिन्न राज्य सरकारों ने उन्हें वोटर , आधार , राशन कार्ड, बिजली, पानी, सड़क, स्कूल आदि सभी सुविधाएं दी। यही नहीं, बस्ती के लोग पीएम आवास योजना का भी लाभ ले रहे हैं।

डीएम नैनीताल का आदेश- आदेश


माननीय उच्च न्यायालय, उत्तराखण्ड, नैनीताल में दायर जनहित याचिका संख्या 30 / 2022 रविशंकर जोशी बनाम उत्तराखण्ड सरकार में पारित आदेश दिनांक 20.12.2022 के अनुपालन में हल्द्वानी स्थित रेलवे भूमि में अतिक्रमण हटाने की कार्यवाही की जानी प्रस्तावित है। अतिक्रमण हटाये जाने के दौरान थाना वनभूलपुरा में निवास कर रहे लाईसेन्स धारकों द्वारा लाईसेन्सी शस्त्रों के दुरूपयोग से इन्कार नही किया जा सकता शान्ति एवं सुरक्षा की दृष्टि से प्रभावित क्षेत्र के लाईसेन्सी शस्त्रों को जमा कराया जाना आवश्यक है।
अतः वनभूलपुरा थाना क्षेत्रार्न्तगत समस्त लाईसेन्स धारकों तथा अन्य जनपदों / राज्यों से स्वीकृत शस्त्र लाईसेन्स धारक जो वनभूलपुरा क्षेत्र में निवासरत हो, के लाईसेन्सी शस्त्रों को अग्रिम आदेशों तक तत्काल प्रभाव से जमा कराया जाना सुनिश्चित करें।
दिनांक 27.12.2022
कार्यालय जिला मजिस्ट्रेट नैनीताल ।
(धीराज सिंह गर्व्याल) जिला मजिस्ट्रेट नैनीताल जिला मजिस्ट्रेट
नैनीताल


वनफूलपुरा ,हल्द्वानी अतिक्रमण पर सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा

सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने हल्द्वानी में रेलवे की जमीन से बेदखल करने के उत्तराखंड हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगा दी थी। हाईकोर्ट के आदेश पर अधिकारियों ने 4000 से अधिक परिवारों को बेदखली नोटिस जारी किया था। वहां रह रहे लोगों का दावा है कि वे वर्षों से इस क्षेत्र में रह रहे हैं। उनके पास सरकारी अधिकारियों द्वारा मान्यता प्राप्त वैध दस्तावेजों भी हैं। सुप्रीम कोर्ट ने सात दिन में लोगों को हटाने के हाईकोर्ट के निर्देश पर आपत्ति जताते हुए कहा,

“7 दिनों में 50,000 लोगों को नहीं हटाया जा सकता है।” जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस अभय एस ओका की पीठ ने 20 दिसंबर, 2022 को उच्च न्यायालय की एक खंडपीठ द्वारा पारित फैसले के खिलाफ दायर विशेष अनुमति याचिकाओं के एक बैच में उत्तराखंड राज्य और रेलवे को नोटिस जारी करते हुए यह आदेश पारित किया। अदालत ने मामले को 7 फरवरी, 2023 तक के लिए स्थगित कर दिया, जिसमें राज्य और रेलवे को “व्यावहारिक समाधान” खोजने के लिए कहा।

बेंच विशेष रूप से इस तथ्य से चिंतित थी कि कई कब्जेदार दशकों से पट्टे और नीलामी खरीद के आधार पर अधिकारों का दावा करते हुए वहां रह रहे हैं। जस्टिस एसके कौल ने पूछा, “मुद्दे के दो पहलू हैं। एक, वे पट्टों का दावा करते हैं। दूसरा, वे कहते हैं कि लोग 1947 के बाद चले गए और जमीनों की नीलामी की गई। लोग इतने सालों तक वहां रहे। उन्हें पुनर्वास दिया जाना चाहिए। साल दिन में इतने लोगों को कैसे हटाया जा सकता हैं?”

जस्टिस ओका ने कहा, “लोग कहते हैं कि वे वहां पचास साल से हैं।” कौल ने कहा, ” आप उन लोगों के परिदृश्य से कैसे निपटेंगे जिन्होंने नीलामी में जमीन खरीदी है। आप जमीन का अधिग्रहण कर सकते हैं और उसका उपयोग कर सकते हैं। लोग वहां 50-60 वर्षों से रह रहे हैं, कुछ पुनर्वास योजना होनी चाहिए, भले ही यह रेलवे की जमीन हो। इसमें एक मानवीय पहलू है।” जस्टिस ओका ने कहा कि उच्च न्यायालय ने प्रभावित पक्षों को सुने बिना आदेश पारित किया है।

उन्होंने कहा, “कोई समाधान निकालें। यह एक मानवीय मुद्दा है।” पीठ ने कहा, “मानवीय मुद्दा कब्जे की लंबी अवधि से उत्पन्न होता है। हो सकता है कि उन सभी को एक ही ब्रश से चित्रित नहीं किया जा सकता। हो सकता है कि विभिन्न श्रेणियां हों। लेकिन व्यक्तिगत मामलों की जांच करनी होगी। किसी को दस्तावेजों को सत्यापित करना होगा।“ जस्टिस ओका ने उच्च न्यायालय के निर्देशों पर आपत्ति जताते हुए कहा, “यह कहना सही नहीं होगा कि वहां दशकों से रह रहे लोगों को हटाने के लिए अर्धसैनिक बलों को तैनात करना होगा।” सुनवाई के दौरान बेंच ने पूछा कि क्या सरकारी जमीन और रेलवे की जमीन के बीच सीमांकन हुआ है। पीठ ने यह भी पूछा कि क्या यह सच है कि सार्वजनिक परिसर अधिनियम के तहत कार्यवाही लंबित है।

अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भट ने प्रस्तुत किया कि राज्य और रेलवे का कहना है कि भूमि रेलवे की है। यह भी प्रस्तुत किया कि सार्वजनिक परिसर अधिनियम के तहत बेदखली के कई आदेश पारित किए गए हैं। याचिकाकर्ताओं की ओर से वकील प्रशांत भूषण ने प्रस्तुत किया कि वे कोविड की अवधि के दौरान पारित एकतरफा आदेश था। एएसजी भाटी ने आगे कहा कि याचिकाकर्ता अपनी खुद की जमीन का दावा कर रहे हैं और उन्होंने पुनर्वास की मांग नहीं की है। कुछ याचिकाकर्ताओं की ओर से सीनियर एडवोकेट डॉ. कॉलिन गोंसाल्विस ने प्रस्तुत किया कि भूमि का कब्जा याचिकाकर्ताओं के पास आजादी से पहले से है और उनके पास सरकारी पट्टे हैं जो उनके पक्ष में निष्पादित किए गए थे। सीनियर एडवोकेट सिद्धार्थ लूथरा ने यह भी कहा कि कई याचिकाकर्ताओं ने उनके पक्ष में सरकारी पट्टों को निष्पादित किया था। सीनियर एडवोकेट सलमान खुर्शीद ने कहा कि कई संपत्तियां “नजूल” भूमि में थीं। इन प्रस्तुतियों पर ध्यान देते हुए जस्टिस कौल ने राज्य से कहा, “उत्तराखंड राज्य को एक व्यावहारिक समाधान खोजना होगा।” एएसजी भाटी ने कहा कि रेलवे सुविधाओं के विकास के लिए जमीन जरूरी है। उन्होंने इस तथ्य पर जोर दिया कि हल्द्वानी उत्तराखंड रेल यातायात के लिए प्रवेश द्वार के रूप में कार्य करता है। सुनवाई के बाद, पीठ ने निम्नलिखित आदेश निर्धारित किया, “हमने पार्टियों के वकील को सुना है। एएसजी ने रेलवे की आवश्यकता पर जोर दिया है। इस पर विचार किया जाना चाहिए कि क्या पूरी जमीन रेलवे की है या क्या राज्य सरकार जमीन के एक हिस्से का दावा कर रही है। इसके अलावा उसमें से, पट्टेदार या नीलामी खरीदार के रूप में भूमि पर अधिकार का दावा करने वाले कब्जाधारियों के मुद्दे हैं। हम आदेश पारित करने के रास्ते पर हैं क्योंकि 7 दिनों में 50,000 लोगों को नहीं हटाया जा सकता है। एक व्यावहारिक व्यवस्था होनी चाहिए, जिसमें पुनर्वास शामिल है।” याचिका में कहा गया है कि याचिकाकर्ता गरीब लोग हैं जो 70 से अधिक वर्षों से हल्द्वानी जिले के मोहल्ला नई बस्ती के वैध निवासी हैं। याचिकाकर्ता के अनुसार, उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने 4000 से अधिक घरों में रहने वाले 20,000 से अधिक लोगों को इस तथ्य के बावजूद बेदखल करने का आदेश दिया कि निवासियों के टाइटल के संबंध में कार्यवाही जिला मजिस्ट्रेट के समक्ष लंबित है। कहा गया है कि स्थानीय निवासियों के नाम नगर निगम के हाउस टैक्स रजिस्टर के रिकॉर्ड में दर्ज हैं और वे वर्षों से नियमित रूप से हाउस टैक्स का भुगतान करते आ रहे हैं। इसके अलावा, क्षेत्र में 5 सरकारी स्कूल, एक अस्पताल और दो ओवरहेड पानी के टैंक हैं। आगे कहा गया है कि याचिकाकर्ताओं और उनके पूर्वजों का लंबे समय से भौतिक रूप से कब्जा है, कुछ भारतीय स्वतंत्रता की तारीख से भी पहले, को राज्य और इसकी एजेंसियों द्वारा मान्यता दी गई है और उन्हें गैस और पानी के कनेक्शन और यहां तक कि आधार कार्ड नंबर भी दिए गए हैं।

याचिका में यह भी कहा गया है कि उत्तराखंड राज्य को याचिकाकर्ताओं को टाइटल से वंचित करने से रोक दिया गया था क्योंकि राज्य ने पहले 2016 में रेलवे भूमि में अतिक्रमण हटाने के लिए उस वर्ष हाईकोर्ट द्वारा पारित एक आदेश के खिलाफ पुनर्विचार याचिका दायर की थी। कुछ याचिकाकर्ताओं की ओर से सीनियर एडवोकेट डॉ. कॉलिन गोंसाल्विस ने प्रस्तुत किया कि भूमि का कब्जा याचिकाकर्ताओं के पास आजादी से पहले से है और उनके पास सरकारी पट्टे हैं जो उनके पक्ष में निष्पादित किए गए थे। सीनियर एडवोकेट सिद्धार्थ लूथरा ने यह भी कहा कि कई याचिकाकर्ताओं ने उनके पक्ष में सरकारी पट्टों को निष्पादित किया था।

सीनियर एडवोकेट सलमान खुर्शीद ने कहा कि कई संपत्तियां “नजूल” भूमि में थीं। इन प्रस्तुतियों पर ध्यान देते हुए जस्टिस कौल ने राज्य से कहा, “उत्तराखंड राज्य को एक व्यावहारिक समाधान खोजना होगा।” एएसजी भाटी ने कहा कि रेलवे सुविधाओं के विकास के लिए जमीन जरूरी है। उन्होंने इस तथ्य पर जोर दिया कि हल्द्वानी उत्तराखंड रेल यातायात के लिए प्रवेश द्वार के रूप में कार्य करता है। सुनवाई के बाद, पीठ ने निम्नलिखित आदेश निर्धारित किया, “हमने पार्टियों के वकील को सुना है। एएसजी ने रेलवे की आवश्यकता पर जोर दिया है।

इस पर विचार किया जाना चाहिए कि क्या पूरी जमीन रेलवे की है या क्या राज्य सरकार जमीन के एक हिस्से का दावा कर रही है। इसके अलावा उसमें से, पट्टेदार या नीलामी खरीदार के रूप में भूमि पर अधिकार का दावा करने वाले कब्जाधारियों के मुद्दे हैं। हम आदेश पारित करने के रास्ते पर हैं क्योंकि 7 दिनों में 50,000 लोगों को नहीं हटाया जा सकता है। एक व्यावहारिक व्यवस्था होनी चाहिए, जिसमें पुनर्वास शामिल है।” याचिका में कहा गया है कि याचिकाकर्ता गरीब लोग हैं जो 70 से अधिक वर्षों से हल्द्वानी जिले के मोहल्ला नई बस्ती के वैध निवासी हैं।

याचिकाकर्ता के अनुसार, उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने 4000 से अधिक घरों में रहने वाले 20,000 से अधिक लोगों को इस तथ्य के बावजूद बेदखल करने का आदेश दिया कि निवासियों के टाइटल के संबंध में कार्यवाही जिला मजिस्ट्रेट के समक्ष लंबित है। कहा गया है कि स्थानीय निवासियों के नाम नगर निगम के हाउस टैक्स रजिस्टर के रिकॉर्ड में दर्ज हैं और वे वर्षों से नियमित रूप से हाउस टैक्स का भुगतान करते आ रहे हैं। इसके अलावा, क्षेत्र में 5 सरकारी स्कूल, एक अस्पताल और दो ओवरहेड पानी के टैंक हैं। आगे कहा गया है कि याचिकाकर्ताओं और उनके पूर्वजों का लंबे समय से भौतिक रूप से कब्जा है, कुछ भारतीय स्वतंत्रता की तारीख से भी पहले, को राज्य और इसकी एजेंसियों द्वारा मान्यता दी गई है और उन्हें गैस और पानी के कनेक्शन और यहां तक कि आधार कार्ड नंबर भी दिए गए हैं।

याचिका में यह भी कहा गया है कि उत्तराखंड राज्य को याचिकाकर्ताओं को टाइटल से वंचित करने से रोक दिया गया था क्योंकि राज्य ने पहले 2016 में रेलवे भूमि में अतिक्रमण हटाने के लिए उस वर्ष हाईकोर्ट द्वारा पारित एक आदेश के खिलाफ पुनर्विचार याचिका दायर की थी। कुछ याचिकाकर्ताओं की ओर से सीनियर एडवोकेट डॉ. कॉलिन गोंसाल्विस ने प्रस्तुत किया कि भूमि का कब्जा याचिकाकर्ताओं के पास आजादी से पहले से है और उनके पास सरकारी पट्टे हैं जो उनके पक्ष में निष्पादित किए गए थे।

सीनियर एडवोकेट सिद्धार्थ लूथरा ने यह भी कहा कि कई याचिकाकर्ताओं ने उनके पक्ष में सरकारी पट्टों को निष्पादित किया था। सीनियर एडवोकेट सलमान खुर्शीद ने कहा कि कई संपत्तियां “नजूल” भूमि में थीं। इन प्रस्तुतियों पर ध्यान देते हुए जस्टिस कौल ने राज्य से कहा, “उत्तराखंड राज्य को एक व्यावहारिक समाधान खोजना होगा।” एएसजी भाटी ने कहा कि रेलवे सुविधाओं के विकास के लिए जमीन जरूरी है। उन्होंने इस तथ्य पर जोर दिया कि हल्द्वानी उत्तराखंड रेल यातायात के लिए प्रवेश द्वार के रूप में कार्य करता है। सुनवाई के बाद, पीठ ने निम्नलिखित आदेश निर्धारित किया, “हमने पार्टियों के वकील को सुना है।

एएसजी ने रेलवे की आवश्यकता पर जोर दिया है। इस पर विचार किया जाना चाहिए कि क्या पूरी जमीन रेलवे की है या क्या राज्य सरकार जमीन के एक हिस्से का दावा कर रही है। इसके अलावा उसमें से, पट्टेदार या नीलामी खरीदार के रूप में भूमि पर अधिकार का दावा करने वाले कब्जाधारियों के मुद्दे हैं। हम आदेश पारित करने के रास्ते पर हैं क्योंकि 7 दिनों में 50,000 लोगों को नहीं हटाया जा सकता है।

एक व्यावहारिक व्यवस्था होनी चाहिए, जिसमें पुनर्वास शामिल है।” याचिका में कहा गया है कि याचिकाकर्ता गरीब लोग हैं जो 70 से अधिक वर्षों से हल्द्वानी जिले के मोहल्ला नई बस्ती के वैध निवासी हैं। याचिकाकर्ता के अनुसार, उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने 4000 से अधिक घरों में रहने वाले 20,000 से अधिक लोगों को इस तथ्य के बावजूद बेदखल करने का आदेश दिया कि निवासियों के टाइटल के संबंध में कार्यवाही जिला मजिस्ट्रेट के समक्ष लंबित है। कहा गया है कि स्थानीय निवासियों के नाम नगर निगम के हाउस टैक्स रजिस्टर के रिकॉर्ड में दर्ज हैं और वे वर्षों से नियमित रूप से हाउस टैक्स का भुगतान करते आ रहे हैं।

इसके अलावा, क्षेत्र में 5 सरकारी स्कूल, एक अस्पताल और दो ओवरहेड पानी के टैंक हैं। आगे कहा गया है कि याचिकाकर्ताओं और उनके पूर्वजों का लंबे समय से भौतिक रूप से कब्जा है, कुछ भारतीय स्वतंत्रता की तारीख से भी पहले, को राज्य और इसकी एजेंसियों द्वारा मान्यता दी गई है और उन्हें गैस और पानी के कनेक्शन और यहां तक कि आधार कार्ड नंबर भी दिए गए हैं। याचिका में यह भी कहा गया है कि उत्तराखंड राज्य को याचिकाकर्ताओं को टाइटल से वंचित करने से रोक दिया गया था क्योंकि राज्य ने पहले 2016 में रेलवे भूमि में अतिक्रमण हटाने के लिए उस वर्ष हाईकोर्ट द्वारा पारित एक आदेश के खिलाफ पुनर्विचार याचिका दायर की थी।

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