Highcourt ने कहा, सरकार हर छह महीने में रेगुलर पुलिसिंग पर रिपोर्ट दे

हाईकोर्ट ने सरकार से हर छह महीने में नियमित पुलिसिंग पर रिपोर्ट सौंपने को कहा.

उच्च न्यायालय ने पूछा, 13 जनवरी, 2018 के आदेश का क्या हुआ.

अंकिता हत्याकांड के बाद राज्य सरकार प्रदेश के पर्यटन से जुड़े राजस्व क्षेत्र में छह थाने व 20 पुलिस चौकी खोलेगी

Nainital HC asks dhami govt to submit report on regular policing every six months

अविकल उत्तराखण्ड


देहरादून। नैनीताल हाईकोर्ट ने पटवारी पुलिस की जगह रेगुलर पुलिसिंग करने के फैसले पर राज्य सरकार को हर छह महीने में प्रगति रिपोर्ट सौंपने का आदेश दिया। अंकिता हत्याकांड के बाद यह राजस्व पुलिस की जगह रेगुलर पुलिस की स्थापना पर हाईकोर्ट ने कड़ा रुख अपनाया है।

बुधवार को देहरादून स्थित गैर सरकारी संगठन समाधान की जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए मुख्य न्यायाधीश वी पी सांघी और न्यायमूर्ति आर सी खुल्बे की पीठ ने याचिका में उठाए गए बिंदुओं पर कड़ा संज्ञान लिया और राज्य सरकार को निर्देश दिया कि वह हर छह महीने में मामले में प्रगति रिपोर्ट अदालत को सौंपे। Revenue police system in uttarakhand

प्रस्तावित व्यवस्था की गंभीरता को देखते हुए हाईकोर्ट ने मामले को गंभीरता से लेते हुए मामले की जांच हाईकोर्ट से ही कराने का आदेश दिया। मामले की अगली सुनवाई 27 मार्च को होगी।

अदालत ने 27 सितंबर, 2022 को मुख्य सचिव से हलफनामे में यह बताने को कहा था कि 2018 में उच्च न्यायालय द्वारा पारित आदेश का क्या हुआ। उच्च न्यायालय ने 13 जनवरी, 2018 को सरकार को छह महीने के भीतर राज्य में 157 साल पुरानी राजस्व पुलिसिंग प्रणाली को खत्म करने और अपराधों की जांच सिविल पुलिस को सौंपने का निर्देश दिया था।

सरकार द्वारा उच्च न्यायालय में दायर हलफनामे में अटॉर्नी जनरल सूर्यनारायण बाबुलकर ने पहले के हलफनामे में उल्लिखित बिंदु को दोहराया कि राज्य में पुलिस स्टेशनों और सुविधाओं की संख्या छह महीने के भीतर प्रदान की जाएगी। सिविल पुलिस की नियुक्ति के बाद राजस्व पुलिस प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज नहीं करेगी और अपराधों की जांच सिविल पुलिस द्वारा की जाएगी।

कोर्ट ने अपने आदेश में यह भी कहा था कि राज्य की आबादी एक करोड़ से ज्यादा है और थानों की संख्या 156 है, जो बहुत कम है। प्रति 64 हजार लोगों पर एक पुलिस स्टेशन। इसलिए थानों की संख्या बढ़ाई जाए ताकि अपराधों पर अंकुश लगाया जा सके।

सुप्रीम कोर्ट ने 2004 के नवीन चंद्रा बनाम राज्य राज्य मामले में इस व्यवस्था को खत्म करने की जरूरत का हवाला देते हुए कहा था कि राजस्व पुलिस को सिविल पुलिस की तरह प्रशिक्षित नहीं किया जाता है, इतना ही नहीं राजस्व पुलिस के पास आधुनिक उपकरण, कंप्यूटर, डीएनए और रक्त परीक्षण, फोरेंसिक जांच, फिंगर प्रिंट जैसी कोई बुनियादी सुविधाएं नहीं हैं। इन सुविधाओं के अभाव में अपराध की समीक्षा करने में दिक्कतें आ रही हैं।

कोर्ट ने यह भी कहा था कि राज्य में एक समान कानून-व्यवस्था होनी चाहिए, जो नागरिकों को उपलब्ध हो। जनहित याचिका में कहा गया है कि अगर सरकार आदेश का पालन करती तो अंकिता हत्याकांड की जांच में इतनी देरी नहीं होती। इसलिए रेवेन्यू पुलिसिंग सिस्टम को खत्म किया जाए।

अंकिता भंडारी प्रकरण के बाद धामी कैबिनेट ने लिया था यह फैसला

पौड़ी जिले के अंतर्गत यमकेश्वर क्षेत्र के वनन्तरा रिसार्ट प्रकरण के बाद धामी कैबिनेट ने हाल ही में पर्यटन बहुल राजस्व क्षेत्रों को नियमित पुलिस को सौंपने का निर्णय लिया है। Ankita Bhandari Murder case

कैबिनेट ने छह महीने के अंदर राजस्व क्षेत्र में छह थाने, 20 चौकियों की स्थापना करने को कहा है। अंकिता भण्डारी हत्याकांड के बाद यह निर्णय लिया गया। इस मामले में स्पीकर ऋतु खंडूड़ी ने भी सीएम धामी को पत्र लिख राजस्व पुलिस की जगह रेगुलर पुलिस की स्थापना पर जोर दिया था।

यह भी बता दें कि 1874 से उत्तराखण्ड के पर्वतीय इलाकों में राजस्व पुलिस की व्यवस्था लागू है। अंग्रेजों के समय में शुरू हुई यह व्यवस्था अभी भी जारी है।

हाई कोर्ट ने 2018 में रेगुलर पुलिस व्यवस्था लागू करने का दिया था फैसला

गौरतलब है कि 2018 में हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति राजीव शर्मा व आलोक सिंह की खंडपीठ ने आदेश दिया था कि  छह महीने के भीतर पूरे प्रदेश से राजस्व पुलिस की व्यवस्था समाप्त की जाए। और सभी इलाकों को प्रदेश पुलिस के क्षेत्राधिकार में शामिल किया जाए लेकिन राज्य सरकार हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट चली गई।

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