यूपी से उत्तराखंड तक खुल कर खेले आईएएस रामविलास यादव

धामी सरकार के एक्शन पर टिकी निगाहें। लखनऊ विकास प्राधिकरण के अलावा उत्तराखंड के समाज कल्याण विभाग में किया खेल। रुड़की के एक निजी कॉलेज को सवा पांच करोड़ भुगतान का सीधा आदेश कर दिया।

छात्रवृत्ति घोटालाः जांच के दौरान ही दिए साढ़े पांच करोड़
किसके सियासी संरक्षण में थे आईएएस रामविलास
नियम दरकिनार कर निजी संस्थान को दी राशि
क्या राम विलास तक आएगी एसआईटी की जांच

विशेष रिपोर्ट/अतुल/ अविकल उत्तराखंड


देहरादून। चंपावत से चुनाव जीतने के बाद सीएम धामी के करप्ट अधिकारियों के खिलाफ होने वाले एक्शन का सभी को बेसब्री से इंतजार है। गैंगेस्टर यशपाल तोमर के साथ यूपी में जमीन की खरीद फरोख्त में उत्तराखंड के तीन आईएएस के रिश्तेदारों पर मुकदमा दर्ज होने के बाद सत्ता के गलियारों में खुसर पुसर बरकरार है। आम जनता सीएम के चंपावत से जीत के इंतजार में थी। अब प्रचंड जीत के बाद अहम पदों पर बैठे चर्चित नौकरशाह के बाबत सीएम के संभावित फैसले को लेकर कयासबाजी जारी है। इधर, आईएएस रामविलास यादव की विजिलेंस जांच से भी सत्ता के गलियारों में विशेष हलचल देखी जा रही है।

आईएएस रामविलास यादव के कारनामों पर अतुल की विस्तृत रिपोर्ट

उत्तर प्रदेश में किये घोटालों की विजिलेंस जांच में फंसे आईएएस राम विलास यादव ने उत्तराखंड में भी बेखौफ अंदाज में काम किया है। कई सालों से समाज कल्याण विभाग में ही जमे इस अफसर ने तबादलों और पोस्टिंग में तो खेल किया ही, मनमाने तरीक से निजी संस्थान सरकारी पैसा भी दिया। एक तरह एसआईटी छात्रवृत्ति घोटाले की परतें उधेड़ रही थी तो दूसरी ओर इन साहब ने एक निजी संस्थान को अवैध रूप से साढ़े पांच करोड़ रुपये दे दिए। ऐसे में सवाल यह उठ रहा है कि यूपी की तरह उत्तराखंड के किस सियासतदां का इन्हें संरक्षण है और क्या एसआईटी अपनी जांच में इस साढ़े पांच करोड़ के भुगतान को भी शामिल करेगी।


आईएएस अफसर यादव का सबसे पसंदीदा विभाग समाज कल्याण ही है। बताया जा रहा है कि पिछले आठ सालों से ये साहब इसी विभाग के अपर सचिव बने हुए हैं। सरकारें बदलीं और मुख्यमंत्री भी बदले। गर नहीं बदला तो इस साहब का विभाग। मामला यहीं तक नहीं है। इस विभाग में इनके कारनामें तमाम बार सुर्खियों में आते रहे। तबादले और पोस्टिंग के साथ ही निलंबित अफसरों की बहाली भी ये अपने अंदाज में करते रहे।


इसी बीच सूबे में अरबों के छात्रवृत्ति घोटाले की एसआईटी ने जांच शुरू की। जिला स्तर के कई अफसर जेल गए और कई करोड़ की निजी संस्थानों से रिकवरी हुई। एक तरफ ये हो रहा था तो दूसरी अपर सचिव यादव ने रुड़की के एक निजी संस्थान की रोकी गई साढ़े पांच करोड़ रुपये छात्रवृत्ति अपने आदेश से ही जारी कर दी। अफसर के हौंसले इतने बुलंद थे कि आदेश में सीएम दफ्तर के मौखिक आदेश का भी जिक्र कर दिया।


कुछ समय बाद यह मामला खुला तो शासन ने इस पैसे की रिकवरी को कहा। लेकिन शायद इसी अफसर की शह पर निजी संस्थान दो साल से यह पैसा वापस नहीं कर रहा है। अहम बात यह भी है कि ये साहब आज भी समाज कल्याण विभाग में ही जमे हुए हैं। इन पर न तो विजिलेंस जांच का कोई असर है और न ही सरकार को साढ़े पांच करोड़ की चूना लगवाने का।


ऐसे में सवाल यह खड़ा हो रहा कि क्या यूपी की तरह ही उत्तराखंड में इनका कोई सियासी संरक्षक (आका) है। जाहिर है कि अगर ऐसा नहीं होता तो इतने कारनामों के बाद भी ये साहब एक ही विभाग में कैसे जमे रहते। सवाल यह भी उठ रहा है कि क्या छात्रवृत्ति घोटाले की जांच कर रही एसआईटी इस साढ़े पांच करोड़ की राशि को जांच के दायरे में लाकर इस आईएएस अफसर से भी पूछताछ करेगी।


तो मुख्तार के खिदमतगार रहे हैं आईएएस यादव !


लखनऊ विकास प्राधिकरण में किए हैं कई ‘कारनामे’
आय से पांच सौ गुना ज्यादा संपत्ति का है ‘आरोप’
यहां भी सालों से समाज कल्याण विभाग पर ‘कब्जा’
इस राज्य में भी तमाम कारनामे रहे हैं ‘सुर्खियों’ में
सियासी आका की दम पर की विभाग में ‘मनमानी’
योगी की पहल पर धामी सरकार ने कसा ‘शिकंजा’


देहरादून। यूपी सरकार की जांच में सामने आया है कि आईएएस अफसर राम विलास यादव की माफिया डॉन मुख्तार अंसारी से खासी नजदीकी थी। इस अफसर ने यूपी में नौकरी के दौरान बेहिसाब संपत्ति कमाई। यूपी सरकार ने जांच पूरी करने के बाद उत्तराखंड से एक्शन लेने को कहा है। वैसे इस अफसर की उत्तराखंड में कार्यशैली की खासी चर्चित रही है। सियासी आकाओं की दम पर सालों से समाज कल्याण विभाग में ही जमे हैं और मनमाने अंदाज में काम कर रहे हैं।


अन्य अफसरों की भांति पीसीएस अफसर रहे राम विलास यादव में उत्तराखंड कैडर आवंटित होने के बाद भी यहां ज्वाइन नहीं किया। किसी न किसी तरह से यूपी में ही जमे रहे। लेकिन जैसे ही आईएएस में प्रमोशन का मौका आया। तत्काल ही उत्तराखंड आ गए और सीधे आईएएस बन गए। यादव के खिलाफ तमाम जांच के बाद यूपी सरकार ने एक्शन के लिए उत्तराखंड सरकार से तमाम खतो-किताबत की। लेकिन पिछले आठ सालों में उनका कुछ भी न बिगड़ा और एक ही विभाग समाज कल्याण में जमे रहे और आज भी उसी विभाग में है।


बताया जा रहा है कि इसके बाद यूपी विजिलेंस ने यादव के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया और जांच के लिए बुलाया। लेकिन वे गए नहीं। इस पर यूपी की ओर से फिर से तमाम दस्तावेज उत्तराखंड को भेजकर पूरे मामले से अवगत कराया। इस बार धामी सरकार ने उनके खिलाफ न जांच की मंजूरी देकर मुकदमा दर्ज करा दिया।


सूत्रों का कहना है कि यूपी ने अपनी जांच में पाया है कि अखिलेश सरकार के दौरान यादव लखनऊ विकास प्राधिकरण सचिव समेत तमाम अहम पदों पर रहे और जमकर खेल किए। बताया जा रहा है कि लखनऊ में माफिया डॉन मुख्तार अंसारी की जायदादों को कानूनी बनाने में भी बड़ा खेल किया। सूत्रों का कहना है कि जांच के अनुसार यादव के पास अपनी आय से पांच सौ गुना ज्यादा संपत्ति है। अब देखने वाली बात य़ह होगी कि क्या इस बार ये अफसर अपने सियासी रसूख ने फिर बच जाते हैं या फिर धामी सरकार इस अफसर को उसके अंजाम तक पहंचाएगी।

रुड़की के स्कूल को दिलाए सवा पांच करोड़

स्थायी और अस्थायी निरस्त आवेदनों को आईएएस ने किया स्वीकृत



ऑफलाइन छात्रवृत्ति भुगतान पर लगी थी रोक
सीएम दफ्तर के निर्देशों का दिया है हवाला
समाज कल्याण के अपर सचिव का कारनामा
विजिलेंस मुकदमे के बाद भी पद पर हैं जमे


देहरादून। उत्तराखंड में हुए अरबों के छात्रवृत्ति घोटाले की जांच में नई परतें खुल रही है। नया मामला और भी चौंकाने वाला है। विजिलेंस मुकदमे का सामना कर रहे आईएएस अफसर और समाज कल्याण विभाग के अपर सचिव ने अपने एक आदेश से रुड़की के एक निजी कॉलेज को सवा पांच करोड़ भुगतान का सीधा आदेश कर दिया। अब सरकार इसकी वसूली की कोशिश कर रही है।


अहम बात यह है कि अपने आदेश में अपर सचिव ने स्थायी और अस्थायी तौर पर अस्वीकृत आवेदन पत्रों को स्वीकृत मानकर ऑफलाइन भुगतान आइडियल बिजनेस स्कूल ऱुड़की को करवा दिया था। अपने आदेश में उन्होंने यह भी लिखा कि मुख्यमंत्री दफ्तर से मिले निर्देशों के क्रम में ऐसा किया जा रहा है।


ऐसे में सवाल यह है कि जब अपर सचिव के इस आदेश को गलत मानते हुए अपर मुख्य सचिव ने इस राशि को स्कूल से वापस लेने का आदेश दिया तो अपर सचिव से क्यों कोई पूछताछ नहीं की गई। इतना ही नहीं, घोटाले की जांच कर रही एसआईटी ने इस भुगतान को गलत मानते हुए स्कूल प्रबंधन को गिरफ्तार कर लिया तो इस राशि को जारी करने वाले आईएएस अफसर के आदेश को जांच के दायरे में क्यों नहीं लिया गया।

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