स्मृति शेष-… बचदा, तुम जहां रहो अपनापन मत खोना

बचदा के बाल सखा व वरिष्ठ पत्रकार महेश पांडे की कलम से अपने सहज, सरल दोस्त को श्रद्धांजलि


बचदा और हमने जीवन की शुरुआत एक साथ की। रानीखेत के एक ही मकान में हम लोग रहते थे। आगे के हिस्से में हमारा परिवार तो पीछे के हिस्से में उनका परिवार। हम लोग उनकी इजा को दीदी कहते थे। हम लोग अलग अलग स्कूलों में पढ़े थे। इंटर करने के बाद बचदा ने लखनऊ विश्वविद्यालय से स्नातक और वकालत की पढ़ाई पूरी करने के बाद रानीखेत को अपनी कर्मभूमि बनाया।हम कुछ दोस्तों ने रानीखेत नवयुवक मंडल दल का गठन किया। स्थानीय समस्याओं की ओर प्रशासन का ध्यान खींचने के लिए प्रदर्शन और धरना भी करते थे।कई मामलों में सफलता मिलती तो कुछेक में निराश भी होना पड़ता था।

सार्वजनिक जीवन में बचदा को बड़ी सफलता रानीखेत कोआपरेटिव फैक्ट्री के श्रमिकों को अदालत से न्याय दिलाने में मिली। इसके अलावा उन्होंने और भी कई मामलों में निशुल्क श्रमिकों की लड़ाई लड़ी और जीती हासिल करते रहे। सार्वजनिक क्षेत्र में किए इन्हीं सब कार्यों ने उनके राजनीतिक जीवन की शुरुआत की। चार बार सांसद और दो बार विधायक रहने के साथ ही वह उत्तर प्रदेश सरकार और केंद्र में अटल जी की सरकारों में मंत्री भी रहे।

बचदा बहुत ही हंसमुख और जिन्दा दिल इंसान रहे। अपने काले कोट की जेब में लगी कलमों से वह मुवक्किलों से मजाकिया लहजे में कहते बताओ कितने रुपए वाली से तुम्हारा मुकदमा लिखा जाए।वह किसी को भी निराश नहीं करते थे।यार दोस्तों से हमेशा घिरे रहने वाला बचदा का अंदाज ही कुछ अलग था। अपने साथ बीड़ी और सिगरेट के  पैकेट साथ रखता, जो बीड़ी से मान जाते तो ठीक वरना सिगरेट का पैकेट सामने कर देता। पैकेट में सभी सिगरेट तीन टुकड़ों में होती थी मरता क्या न करता इन टुकड़ों से ही तलब बुझाता।

बचदा कहता ऐसा नहीं करूं तो मेरी सारी कमाई सिगरेट पिलाने में निकल जाएगी।जब वह पहली बार विधायक बन कर लखनऊ आया तो मैं भी बधाई देने गया। वहां एक सज्जन ने अपना परिचय कुछ पांडे कर दिया तो बच्चदा ने उनके गांव के बारे में पूछा, गांव का नाम बताने पर बच्चदा ने कहा यह गांव तो फलां जाति का है, क्या आप को अपनी जाति बताने पर इतनी शर्म क्यों आती है, अपने गांव और जाति पर गर्व करना सीखो।

जब बचदा और पूरन शर्मा जी दोनों उत्तर प्रदेश सरकार में मंत्री मंत्री थे तो दोनों को बीसलपुर में कार्यक्रम लगा था। बड़े भाई साहब जेसी पांडे अन्य अफसरों के साथ प्रोटोकॉल में ड्यूटी पर थे। भाई साहब पर नजर पड़ते ही बच्चदा ने दाजयू के पैर छुए साथ ही पूरन शर्मा से यह कहकर पांव छूने के लिए कहा कि यह हमारे रानीखेत के हैं और नव भारत टाइम्स  वाले महेश झा के बड़े भाई हैं। शर्मा जी ने भी भाई साहब को पूरा सम्मान दिया, साथ आते सीनियर अफसर यह देखकर हक्का बक्का रह गया। बाद में बच्चदा से मुलाक़ात कम होती गई। रानीखेत की करोड़ों की जायदाद बड़े भाई के हवाले कर वह हल्द्वानी शिफ्ट कर गए।

हल्द्वानी में कभी-कभार औपचारिक मुलाकात हो जाती लेकिन किसी प्रकार का बड़प्पन उसमें बिल्कुल नहीं आया।  हल्द्वानी में स्वास्थ्य ने उसका ज्यादा साथ नहीं दिया। उसकी पत्नी चम्पा भी हमारे ही मोहल्ले की थी।उसे भी दाजयू और भैणी वाला रिश्ता बना हुआ है। बचदा से अंतिम मुलाकात उसकी माता जी के निधन पर उसके हल्द्वानी निवास पर हुई थी। बचदा अब तुम्हारी यादें ही शेष हैं तुम जहां भी रहो अपना अपनापन कभी नहीं खोना। तुम्हारी यादें हमेशा ताजा रहेगी। 

बचदा के बाल सखा महेश पांडे

लेखक महेश पांडे नवभारत टाइम्स,हिंदुस्तान, राष्ट्रीय सहारा समेत कई अखबारों में उच्च पदों पर कार्य कर चुके हैं। रानीखेत निवासी महेश पांडे व बचदा की बचपन की दोस्ती अंत तक कायम रही। बचदा से जुड़े कई प्रसंग उनकी यादों में उमड़ घुमड़ रहे हैं। बचदा के एम्स ऋषिकेश में भर्ती होने के खबर मिलते ही बड़े भाई महेश पांडे ने मुझसे उनकी सेहत का हालचाल लिया। रविवार की दोपहर भी पांडे जी ने कहा कि उनकी स्थिति कैसी है। मैंने कहा कि शाम को बताता हूँ। और रात लगभग 9 बजे बचदा के निधन की मनहूस खबर आ गयी। मौजूदा समय में वरिष्ठ पत्रकार महेश पांडे लखनऊ में रहते हैं।

बचदा का निधन, plss clik

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