Recruitment irregularity- केंद्रीय गढ़वाल विवि की भर्ती गड़बड़ी का हाकम सिंह कौन ?

अब गढ़वाल विश्वविद्यालय में भर्ती घोटालों पर हाई कोर्ट की टेढ़ी नज़र. शिक्षक नियुक्ति गड़बड़ी मामलों में आज नैनीताल हाईकोर्ट में दो मामलों में होनी है सुनवाई

अविकल उत्तराखण्ड


श्रीनगर/नैनीताल/देहरादून। उत्तराखण्ड विधानसभा, uksssc ,दारोगा व अन्य विभागीय भर्ती घपलों के बीच हेमवती नन्दन बहुगुणा केंद्रीय गढ़वाल विश्वविद्यालय में पिछले तीन साल से चल रहे ऑनलाइन शिक्षक भर्ती प्रक्रिया में गड़बड़ियों का मामला भी लगातार सुर्खियों में बना हुआ है। उत्तराखंड हाई कोर्ट में बहुत से भर्ती गड़बड़ी के मामलों को मुकदमों के माध्यम से चुनौती दी गई हैं। ऐसे ही दो मामलों में आज नैनीताल हाईकोर्ट में सुनवाई होनी है। पूर्व के हाईकोर्ट के अंतरिम फैसले में नियुक्ति प्रक्रिया को लेकर विवि प्रशासन पर गहरे सवाल उठाए गए हैं।

हालांकि, विवि के कुलपति के चयन को (केरल केन्द्रीय विश्विद्यालय के कुलपति की भांति) भी राज्य आंदोलनकारी रवींद्र जुगरान ने हाईकोर्ट में चुनौती (wpsb/84/2021) देकर रद्द करने की मांग करते हुए एक याचिका दाखिल की हुई है।

बहरहाल, विवि प्रशासन की शिक्षक भर्ती में हीला हवाली और मनमानी को माननीय मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने अपने विभिन्न अंतरिम आदेशों और अंतरिम निर्णयों में प्रमुखता से चिन्हित किया है।

केस -एक

इंग्लिश विभाग में असिस्टेंट प्रोफेसर की नियुक्ति के एक मामले में प्रतीक्षा सूची में रखे गए एक अभ्यर्थी घनश्याम पाल द्वारा दायर याचिका (WPSB/304/2021) को सुनते हुए कोर्ट ने विश्विद्यालय की पूरी एकेडमिक काउंसिल पर अपना दिमाग न लगा पाने के लिए उद्धृत किया है। समस्त अभ्यर्थी जो उस विषय के थे उनको छोड़कर एक ऐसे विषय वाले के अभ्यर्थी को पहले शॉर्ट लिस्ट किया गया जो की संबद्ध विषय नहीं था। ऊपर से इंटरव्यू में विभागाध्यक्ष और संकायद्यक्ष के दिए गए अंकों को जानबूझ कर आधा कर दिया गया जिससे याचिका कर्ता मात्र आधे अंक से चयनित नहीं किया गया। और उसे प्रतीक्षा सूची में रख दिया गया।

दूसरी ओर, माननीय न्यायालय ने कहा कि अगर दोनो के अंकों को आधा नही किया जाता तो याचिका कर्ता चयनित अभ्यर्थी से ६.५ अंक ज्यादा पाता और चयनित हो जाता। ऊपर से कुलपति एवम अन्य कुछ एक्सपर्ट्स के द्वारा कोई अंक न दिए जाने को भी प्रमुखता से रेखांकित किया है। इन अनियमितताओं सहित इसी पूरी प्रक्रिया को यूजीसी रेगुलेशन २०१८ के अनुरूप होने या न होने के बारे में यूजीसी को भी पूछा गया है।

आज 2 नवंबर को उत्तराखंड उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश की खंडपीठ में सुनवाई होनी है।

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केस – 2

वहीं एक दूसरे केस में एक ओबीसी अभ्यर्थी सुमिता पंवार को उपयुक्त सर्टिफिकेट न होने के कारण जनरल कैटेगरी में भी न मानने को लेकर दायर की गई याचिका (WPSB/541/2022) को सुनते हुए माननीय उच्च न्यायालय ने विश्विद्यालय को उच्चतम न्यायालय के एक मामले में दिए गए निर्णय को उद्धृत करते हुए पूर्ण प्रक्रिया को दोषपूर्ण माना और समस्त आगामी भर्ती प्रक्रिया, इंटरव्यू एवम निर्णयों पर रोक लगा दी। जिसपर विश्विद्यालय को घुटने टेकने पर मजबूर होना पड़ा और न्यायालय के सम्मुख पूर्ण प्रक्रिया को न्यायालय के अनुरूप वापस से करने की इच्छा जताई गई । जिसपर कोर्ट ने विश्विद्यालय को उक्त कथन एफिडेविट के रूप में न्यायालय में प्रस्तुत करने को कहा।

विश्विद्यालय ने इंटरव्यू एवम अब तक करवाए गए साक्षात्कार के निर्णयों के लिफाफे खोलने पर लगी रोक को हटाने हेतु आवेदन करके ऐड़ी चोटी का जोर लगाया गया । किंतु इसे कोर्ट ने अब तक नहीं माना है। इस मामले की भी आज दो नवम्बर को उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के अदालत में सुनवाई होनी है।

केस – 3

इस के अतिरिक्त एक अन्य मामले में भी 2020 के भर्ती प्रक्रिया के निर्णयों को अंतरिम माने जाने की कोर्ट द्वारा मुहर लगी हुई है। इस मामले में आर्क्रोलॉजी विभाग में की गई असिस्टेंट प्रोफेसर भर्ती को भी हाईकोर्ट में डा जसपाल सिंह खत्री द्वारा (WPSB/250/2020; UTTARAKHAND HIGH COURT) चुनौती दी गई है । इसमें विश्विद्यालय स्तर पर आवेदन पत्र में गड़बड़ी करने के मामले में कर्मचारियों को निलंबित किया जा चुका है। जिन्हें बाद में बहाल भी कर दिया गया। किंतु आर्क्रोलॉजी और इंग्लिश विभाग में किए गए असिटेंट प्रोफेसर की नियुक्ति को दो अलग अलग मामलों में मुकदमे के निर्णय तक प्रोविजनल तौर पर ही मानने को कहा गया है।

पूरी भर्ती प्रक्रिया में और बहुत से पेंच हैं जो चर्चा का विषय बने हुए हैं। कोविड के बाद स्थिति सामान्य होने के बावजूद ऑनलाइन इंटरव्यू करवाने का प्रशासन का निर्णय भी संदेह के घेरे में है। विश्विद्यालय द्वारा चहेतों की नियुक्ति के लिए अपनाए गए दांव पेंच अब एक एक कर बाहर आ रहे हैं।

मनचाहा शिक्षण / शोध अनुभव, संबद्ध विषय अनुभव, एसोसिएट एवम प्रोफेसर पद पर शॉर्ट लिस्टेड एवम चयनित अभ्यर्थियों के पूर्व सेवा के विधिक रूप से अमान्य वेतनमान की सेवा को बिना जांचे उपयुक्त मानने आदि के मामलों में खूब खेल हुआ है और इस बारे में विश्विद्यालय को विभिन्न अभ्यर्थियों द्वारा शिकायती पत्र भेजे गए हैं ।

अब देखना होगा कि नैनीताल हाईकोर्ट में आज होने वाली सुनवाई में विश्विद्यालय अपनी जान सांसत में पड़ने से बचा पाता है कि नही। और अगर गड़बड़ी पूरी तरह से सिद्ध होती हैं तो गढ़वाल विश्वविद्यालय का हाकम सिंह कौन बन कर उभरेगा यह देखना होगा।

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