भारतीय महिला: सत्य आधारित दृष्टिकोण पर अन्तरराष्ट्रीय सम्मेलन का समापन

एक अच्छी माँ के दम पर ही हम श्रेष्ठ बन सकते हैं-राज्यपाल कोश्यारी.

महिला को सही स्थान मिलेगा तो होगा राष्ट्र निर्माण : राज्यपाल गुरमीत सिंह

दून विश्वविद्यालय में भारतीय महिला : सत्य आधारित दृष्टिकोण पर दो दिवसीय अन्तरतरष्ट्रीय कांफ्रेंस में वक्ताओं ने रखे विचार

अविकल उत्तराखण्ड

देहरदून। दून विश्वविद्यालय में दो दिवसीय अन्तरतरष्ट्रीय सम्मेलन के समापन सत्र के मुख्य अतिथि महाराष्ट्र के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने भारतीय सभ्यता में महिला की भूमिका पर कई सारगर्भित बातें कहीं । उन्होंने कहा कि एक अच्छी माँ के दम पर ही हम श्रेष्ठ बन सकते हैं और दुनिया को भी श्रेष्ठ बना सकते हैं।

माता भूमि’:, पुत्रो अहं पृथिव्या:।अर्थात भूमि मेरी माता है और मैं उसका पुत्र हूं… अथर्ववेद के इस श्लोक से बात शुरू करते हुए उन्होंने कहा कि हम अन्न देने वाली धरती को माँ और माँ को धारिणी कहते थे। अतीत में हम श्रेष्ठ थे तो इसलिए कि तब माताएं विदुषी होती थी। बीच के कालखंड में हमने बहुत खोया। 14 वीं सदी की भाषा अंग्रेजी और उसे बोलने वाले श्रेष्ठ हो गए। आज फिर स्थितियां बदल रही है विदेशी राजनयिक भी कह रहे हैं कि भारत विश्व नेता बन रहा है।

महाराष्ट्र के राज्यपाल कोश्यारी

विद्यालयों में छात्राओं का श्रेष्ठता प्रतिशत संकेत दे रहा है। आज मैं मलाल करता हूँ कि काश मेरी माँ और दीदी पढ़ी लिखी होती। अगर समाज में महिला ज्ञानवान है तो समाज खुशहाल है। कोई अपराध होता है तो हम कहते कि इसकी माँ ने इसे अच्छे संस्कार दिए होते तो ये न होता। इस तरह एक संस्कारी माँ ही सभ्य और सफल समाज की कुंजी है। वैदिक मंत्रों और गीता के श्लोकों के हवाले से उन्होंने भारतीय महिलाओं के सत्य आधारित दृष्टिकोण को कई तरह से सामने रखा।


इससे पूर्व राष्ट्रसेविका समिति की प्रमुख कार्यवाह सुश्री सीता गायत्री ने बताया कि भरतीय समाज में स्त्री के स्थान और योग्यता पर संदेह करने वालों को यह समझना चाहिये के इस समाज का आधार बहुत मज़बूत है और क्षमताऐं अपार। 75000 महिलाओं पर हुए सर्वे मेँ यह बात भी सामने आयी कि उनका हैप्पीनेस इंडेक्स 63 है। यानी यहां 100 में 63 महिलाएं खुश है। इस मामले में दुनिया बहुत पीछे है।


अंत में संवर्धिनी व्यास की मेधा जी ने धन्यवाद ज्ञापन किया। इस आयोजन में गोंडवाना विद्यापीठ के कुलपति डा. प्रशांत श्री बोकारे, और सोलापुर विद्यापीठ की डा. मृणालिनी फणनवीस, डा. शरद रेनू शर्मा, डा. अलका इनामदार और प्रो संतोष, वेदनंदा सेंटर फॉर इंटरनेशनल एंड कॉपरेटिव लॉ यूनिवर्सिटी ऑफ डेनवर स्टर्म के प्रो वेदनंदा, डा सुचिता परांजपे, रेनू सिंह,प्रो मधु सिंह और सुश्री चित्रा सिंह आदि के वक्तव्य प्रेरक रहे।

महिला को सही स्थान मिलेगा तो होगा राष्ट्र निर्माण : राज्यपाल गुरमीत सिंह

देहरादून। जिस दिन महिला को सही स्थान मिलेगा उस दिन राष्ट्र और समाज का सही निर्माण होगा। एक नारी के प्रति सही दृष्टिकोण क्या हो इसके लिए हमें अपनी जड़ों की तरफ लौटना होगा। दून विश्वविद्यालय में ” भारतीय महिला: सत्य आधारित दृष्टिकोण”  विषयक अन्तरतरष्ट्रीय कॉन्फ्रेंस का उद्घाटन उत्तराखंड के राज्यपाल लेफ्टिनेंट जनरल (सेवानिवृत्त) गुरमीत सिंह अपने इन शब्दों के साथ किया।


सेमिनार बीके उदघाटन सत्र बमें शुक्रवार को एसएनडीटी महिला विश्वविद्यालय मुंबई और संवर्धिनी न्यास के सहयोग से हुए आयोजन में उन्होंने कहा कि हमें कुछ डिलर्न करना यानी बिसराना होगा, जैसे  कि बाहरी सभ्यताओं के प्रभाव से हमारी सोच में आयी विकृतियां। हमें कुछ रीलर्न यानी फिर से सीखना होगा और वो है नारी को नारायणी और पुरुष का पूरक मानने वाली हमारी प्राचीन सभ्यता का ज्ञान। बेहतर समाज के लिए यह सब एक आंदोलन की तर्ज़ पर होना चाहिए। 


 उन्होंने कहा की वह महिला सशक्तिकरण और बालिका शिक्षा को अपनी प्राथमिकताओं में सबसे ऊपर रखते हैं। वैदिक परंपरा और गुरु ग्रंथ साहिब के हवाले के कई उद्धरण देकर उन्होंने नारी के उस रूप के कई आयाम सामने रखे जो स्वयं सिद्धा और धारिणी शब्दों को सार्थक करते हैं।


राज्यपाल ने डॉ. लीना गहाने, डॉ. सुरेखा डंगवाल, डॉ. उज्ज्वला चक्रदेव द्वारा संपादित पुस्तक ‘भारतीय महिला: सच आधारित दृष्टिकोण ‘का भी विमोचन किया

यूकोस्ट के महानिदेशक प्रोफेसर दुर्गेश पंत ने कहा कि मां की शक्ति की वजह से गांव बचे हुए हैं, आर्थिकी संभली हुई है। वह समाज की मसल भी है बैकबोन भी। सारे बड़े काम महिलाएं चुपचाप कर जाती हैं । 


 राष्ट्र सेविका समिति की प्रमुख शांता अक्का जी ने कहा कि  उत्तराखंड के अलग राज्य की स्थापना मातृ शक्ति के प्रयासों से हुई इसलिए पहली विचार गोष्ठी यहाँ होना गर्व की बात है। उन्होंने विवेकानंद जी के एकात्म भाव की बात करते हुए कहा कि भारतीय दर्शन में महिला और पुरुष एक दूसरे के पूरक हैं तथा उनमें कोई स्पर्धा नहीं है।

एक बाज़ की परवाज के लिए उसके दोनों पंखों का एक समान मजबूत होना जरूरी है। स्त्री पुरूष उन दोनों पंखों की तरह हैं। स्त्री कई मायनों में श्रेष्ठ भी है। आदि शंकराचार्य ने मंडन मिश्र के साथ शास्त्रार्थ में उनकी पत्नी को निर्णायक रखा। उन्हें विश्वास था कि चूंकि वह स्त्री है इसलिए न्याय को पति से भी ऊपर रखेगी। हम उस समृद्ध परंपरा से हैं लेकिन फिर भी कालांतर में महिलाओं का शोषण हुआ जिसके लिए सावित्री बाई फुले जैसी महिलाएं आगे आयीं।


 भारत के पहले महिला विद्यापीठ एसएनडीटी यूनिवर्सिटी मुंबई की कुलपति  डॉ. उज्जवला चक्रदेव ने प्री कॉन्फ्रेंस पर रिपोर्ट पेश करते हुए बताया कि इस आयोजन के विचार में देश के 91 कुलपति शामिल हैं। लंबे विमर्श के बाद इसे मूर्त रूप दिया गया।  हम इस विचार को लेकर चलते हैं एक महिला का संस्कृता होना समाज का शिक्षित होना है। 
नैक की उप सलाहकार लीना लहाणे में मुक्ता बाई, रत्नावली, जीजाबाई,पन्ना धाय, आदि ऐतिहासिक पात्रों की कहानियों के जरिये सप्त शक्तिधारिणी, चतुर्गुण संपन्न स्त्री शक्ति का अपने अंदाज में परिचय कराया। 


इससे पहले अपने स्वागत भाषण में कुलपति प्रो. सुरेखा डंगवाल ने कहा कि महिला के बारे में भारतीय  नजरिया पश्चिमी विचारों से काफी अलग है।  उन्होंने कहा कि इस विमर्श के विषयों में सीता के साथ ही मांडवी और सुतश्री, मैत्रेयी, अहिल्याबाई होलकर से लेकर गौरा देवी का भी दृष्टिकोण शामिल है।

इस दो दिन के विचार मंथन से ऐसा कुछ निकलेगा जो सरकारों को भी प्रेरित करेगा।
संवर्द्धिनी न्यास की संयोजक माधुरी मराठे ने धन्यवाद ज्ञापन किया। उन्होंने कहा कि सम्मेलन का उद्देश्य भारतीय महिलाओं की कहानी को सही परिप्रेक्ष्य में रखना है। उन्होंने महिलाओं की ताकत, शक्तियों पर अपने विचार व्यक्त किए, जो हर कार्य और क्षेत्र में महिलाओं से जुड़ी हुई है।


आयोजन में बाहर से आये तीन विश्वविद्यालयों के कुलपति और प्रोफेसर के अलावा देहरादून जिले के कई महाविद्यालयों और विश्विद्यालयों के प्रोफेसर भी आमंत्रित थे।

दून विश्वविद्यालय घोषणापत्र में होगी भविष्य की राह: सुरेखा

दून विश्वविद्यालय की कुलपति प्रो सुरेखा डंगवाल ने कहा कि दो दिन का यह विमर्श आंखे खोलने वाला है। लोगों ने इस आयोजन का विज़न सामने रखने की बात की। दून विश्वविद्यालय घोषणापत्र के रूप में यह सामने आएगा, जो इस आन्दोलन में आगे की राह आसान बनाएगा। इस मंथन के दौरान कई ऐसे तथ्य सामने आए जो पहले से ज्ञात नहीं थे।

प्रो वेदनंदा ने अपने वक्तव्य में अमेरिकी समाज में महिला की जो तस्वीर सामने रखी उसके बरक्श भारतीय समाज को देख कर गर्व महसूस होता है। हमने इस दौरान अपने गौरवमयी अतीत को बेहतर ढंग से जाना। प्रो सुचिता परांजपे तो एक टाइम मशीन की कल्पना करने लगी जिसके जरिये वह वैदिक काल की गौरवशाली महिलाओं से मिल सकें। अंग्रेजी साहित्य की छात्रा का ‘सिगरेट मुक्तिमार्ग का प्रतीक’ विषयक शोधपत्र उन कई प्रस्तुतियों में से एक था जो स्त्री विमर्श पर नया नजरिया विकसित करते हैं।


विमर्श के 11 सत्र, 62 शोधपत्र

दून विश्वविद्यालय के डीन प्रो एच सी पुरोहित ने बताया कि भारतीय नारी से जुड़े विविध विषयों पर इन दो दिनों में दो विशेष सत्र और दो ज्ञान सत्र के अलावा स्मृति,क्षमा,वाक,मेधा, श्री,धृति और कृति के नाम से सात तकनीकी सत्र आयोजित किये गए।

विद्वान कुलपतियों और प्रोफेसरों की अध्यक्षता में हुए इन सत्रों में ऑफ लाइन और ऑन लाइन कुल 62 शोध पत्र पढ़े गए। प्रो पुरोहित ने समापन सत्र का संचालन भी किया। एक शोधार्थी के रूप में भी उन्होंने प्रतिभाग किया।

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