राज्य आंदोलनकारी महिला ने निर्दल विधायक के खिलाफ खोला मोर्चा

भावना पांडे ने दी आत्मदाह की धमकी, पुलिस ने हिरासत में लिया फिर छोड़ा

अविकल उत्तराखण्ड

देहरादून। कई दिन से सोशल मीडिया पर चल रही भावना पांडे व निर्दलीय विधायक उमेश कुमार की जंग सतह पर आ गयी। उमेश कुमार के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में दाखिल SLP वापस लेने की ख़बर (पुष्ट नहीं) से नाराज भावना पांडे ने शुक्रवार को आत्मदाह की धमकी दे सनसनी मचा दी।

प्रदेश सरकार की ओर से सुप्रीम कोर्ट में उमेश कुमार के खिलाफ दायर एसएलपी के वापस लेने की ख़बरों से नाराज भावना पांडेय ने वीडियो जारी कर आत्मदाह की धमकी दे डाली।

लम्बे समय से उमेश कुमार व उसके आकाओं पर बरस रही भावना पांडे की सचिवालय के गेट पर आत्मदाह की धमकी से चिन्तित पुलिस प्रशासन ने भावना पांडे को पहले हो हिरासत में ले लिया।

शुक्रवार की सांय 4 बजे के बाद भावना पांडे को पुलिस ने पहले हो हिरासत में लेकर डालनवाला थाने में ले आयी। इस दौरान भावना पांडे और पुलिस के बीच काफी जोर आजमाइश भी हुई।

थाने में मौजूद मीडिया की मौजूदगी में भावना पांडे और पुलिस के बीच गर्मागर्मी का वीडियो भी सोशल मीडिया पर वॉयरल हुआ।

भावना पांडे का आरोप है कि प्रदेश सरकार निर्दलीय विधायक के दबाव में आकर सुप्रीम कोर्ट में दायर एस एलपी वापस ले रही है। भावना पांडे का कहना है कि उमेश कुमार पर राजद्रोह का मुकदमा दर्ज है। अगर सरकार मुकदमा वापस लेती है तो वो विरोध करेंगी।

देखें वीडियो

Doon police taking Bhavna Pandey away after failing the threat and attempt of self-immolation

सूत्रों के मुताबिक, उत्तराखंड सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से अपनी उस अर्जी को वापस लेने का आग्रह किया है, जिसमें उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के खिलाफ सीबीआई जांच के नैनीताल हाई कोर्ट के आदेश को चुनौती दी गई थी. जिसके चलते भावना पांडेय ने आत्मदाह करने की कोशिश की जिसके बाद उन्हें हिरासत में लेने के बाद छोड़ दिया गया। उस समय की तत्कालीन त्रिवेंद्र सरकार ने हाई कोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी.

उतराखंड सरकार की ओर से दर्ज की गई याचिका में कहा गया कि उनकी तरफ से राज्य सरकार के आधार पर जो सीबीआई जांच के नैनीताल हाई कोर्ट के आदेश को चुनौती दी गई थी, उस अपील को वापस लेने का कोर्ट से आग्रह है.

दरअसल उत्तराखंड हाई कोर्ट ने अक्टूबर 2020 में पूर्व सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत के खिलाफ गंभीर आरोपों को देखते हुए सीबीआई जांच के आदेश दिए थे. हाई कोर्ट ने यह आदेश उमेश कुमार व अन्य के खिलाफ राजद्रोह मामले में सुनवाई के बाद दिया था और चल रहे राजद्रोह के मामले को रद्द कर दिया था. इस फैसले के बाद तत्कालीन त्रिवेंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में SLP दाखिल की थी।

उमेश कुमार ने फेसबुक पोस्ट लिखकर तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत पर आरोप लगाए थे कि झारखंड में प्रभारी रहने के दौरान उन्‍होंने पैसे लिए हैं. इस पर अमृतेश चौहान ने पत्रकार उमेश शर्मा व अन्य के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया था. जबकि एफआईआर को निरस्त करने पत्रकारों ने हाई कोर्ट की शरण ली थी और कोर्ट ने एफआईआर को निरस्त कर सीबीआई जांच के आदेश दिए थे.

पूरा मामला एक नजर में

दरअसल, सेवानिवृत्त प्रोफेसर हरेंद्र सिंह रावत ने 31 जुलाई, 2020 को देहरादून थाने में उमेश कुमार के खिलाफ ब्लैकमेलिंग करने सहित विभिन्न धाराओं में मुकदमा दर्ज कराया था. मुकदमे के अनुसार, उमेश कुमार ने सोशल मीडिया में खबर चलाई थी की प्रो. हरेंद्र सिंह रावत व उनकी पत्नी डॉ. सविता रावत के खाते में नोटबंदी के दौरान झारखंड से अमृतेश चौहान ने पैसे जमा किये और यह पैसे मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत को देने को कहा था. इसमें डॉ. सविता रावत को मुख्यमंत्री की पत्नी की सगी बहन बताया गया है.जबकि यह सच नहीं था.

उमेश कुमार ने आरोप लगाया था कि 2016 में झारखंड के ‘गौ सेवा आयोग’ के अध्यक्ष पद पर एक व्यक्ति की नियुक्ति को लेकर त्रिवेंद्र सिंह रावत ने यह घूस ली थी.

वहीं, प्रो. हरेंद्र सिंह रावत ने अपनी शिकायत में आरोप लगाया था कि ये सभी तथ्य असत्य हैं और उमेश कुमार ने बैंक के कागजात कूटरचित तरीके से बनाये हैं. उसने उनके बैंक खातों की सूचना गैर कानूनी तरीके से प्राप्त की है. इस बीच सरकार ने आरोपी के खिलाफ गैंगस्टर भी लगा दी थी.

अपने खिलाफ एफआईआर दर्ज होने के बाद उमेश कुमार ने अपनी गिरफ्तारी पर रोक के लिए हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी. उनकी ओर से सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल व अन्य ने पैरवी की थी. उनकी दलील थी कि नोटबंदी के दौरान हुए लेनदेन के मामले में उमेश कुमार के खिलाफ झारखंड में मुकदमा दर्ज हुआ था, जिसमें वे पहले से ही जमानत पर हैं। इसलिए एक ही मुकदमे के लिये दो बार गिरफ्तारी नहीं हो सकती. उमेश कुमार व अन्य के खिलाफ अमृतेश चौहान द्वारा दूसरा मामला दर्ज किया गया था. उत्तराखंड हाई कोर्ट के तत्कालीन जस्टिस रवींद्र मैठाणी ने रवींद्र मैठाणी की एकलपीठ ने प्राथमिकी को निरस्त कर दिया था.

अब इस मामले में त्रिवेंद्र सरकार ने एस एल पी दाखिल की थी।यह एसएलपी वापस लेने आई ख़बर के बाद भावना पांडे ने भी आत्मदाह की धमकी दी।

उधर, सूत्रों का कहना है कि निर्दलीय विधायक से जुड़ी एसएलपी वापस लेने की खबर मात्र से निशंक व त्रिवेंद्र समर्थक भी नाराज बताए जा रहे हैं।

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