…तो चंपावत के भंवर को पार कर जाएंगे पुष्कर
कामन सिविल कोड के क्रियान्वयन के लिए सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज रंजना प्रकाश की अध्यक्षता में पांच सदस्यीय विशेषज्ञ समिति का गठन
अविकल उत्तराखंड
चंपावत। कुछ दिन पहले ‘भंवर एक प्रेम कहानी’ पुस्तक के विमोचन में सीएम पुष्कर सिंह धामी ने दार्शनिक अंदाज में इशारों ही इशारों में बहुत कुछ कह दिया। बे बोले,
भँवर सभी के जीवन में आता है0 मैं भी कुछ दिन पहले एक भंवर में था और अभी भी हूँ… सभागार में ताली और हंसी दोनों की आवाज एकसाथ कानों पर पड़ी। सीएम धामी ने इन शब्दों में खटीमा की हार की पीड़ा के साथ चंपावत में जारी राजनीतिक भँवर का भी उल्लेख कर पूरे माहौल का खाका खींच कर अपनी मनोदशा के भंवर का भी खुलासा कर दिया।
फिलहाल, चंपावत उपचुनाव की सरगर्मी अपने शबाब पर पहुंच चुकी है। कांग्रेस के तमाम बड़े नेता नये सिरे से पार्टी को उठाने की कवायद में जुटे हैं। भाजपा के सभी नेता व कार्यकर्ता चंपावत में डेरा डाले हुए हैं।
चंपावत की कहानी उत्तराखंड के किसी भी सीएम के उपचुनाव से कुछ अलग कहानी पेश कर रही है। दरअसल, उत्तराखंड के अभी तक जितने भी सीएम बने या तो वे सांसद थे या फिर विधायक। पहले सीएम नित्यानन्द स्वामी, भगत सिंह कोश्यारी, रमेश पोखरियाल निशंक, त्रिवेंद्र सिंह रावत व पुष्कर सिंह धामी विधायक से सीएम बने। जबकि जनरल बीसी खंडूड़ी, विजय बहुगुणा , हरीश रावत व तीरथ सिंह रावत सांसदी से इस्तीफा दे उपचुनाव लड़े। इनमें तीरथ सिंह रावत मात्र चार महीने में ही हटा दिए गए। लिहाजा, उन्हें चुनाव नहीं लड़ना पड़ा।
लेकिन प्रदेश का यह पहला उपचुनाव थोड़ा अलग इसलिए भी माना जा रहा है कि सीएम पहले एक विधानसभा (खटीमा) चुनाव हार गए। और यह भी पहली बार हुआ कि सीएम की हार के बाद भी भाजपा पूरा बहुमत ले आयी। और यह भी पहली बार हुआ कि व्यक्तिगत चुनावी हार के बाद भी पार्टी हाईकमान ने दोबारा पुष्कर सिंह धामी पर ही विश्वास जता कई अन्य के ख्वाब चकनाचूर कर दिए।
सीएम धामी इसी चंपावत के राजनीतिक भंवर से निकलने की जी तोड़ कोशिश में जुटे है। खटीमा से मिले सबक के बाद भाजपा हाईकमान चंपावत में कोई ढिलाई छोड़ने के मूड में नहीं दिख रहा। पार्टी के विघ्न संतोषियों पर कड़ी नजर रखते हुए चुनाव प्रचार की कमान स्थानीय नेताओं के ही कंधों पर डाली हुई है।
कांग्रेस पार्टी महंगाई, चारधाम यात्रा समेत भाजपा के बार बार सीएम बदलने की नीति को मुख्य मुद्दा बनाये हुए है। कांग्रेस के नेता अपने भाषणों में यह कहने से नहीं चूक रहे कि भाजपा पांच साल में तीन-तीन सीएम बदल देती है। और सीएम धामी को भी बदल देगी।
उधर, भाजपा आम मतदाताओं को यह समझाने की जुगत में लगी है कि इलाके के विकास के लिए सीएम चुनिए न कि विपक्ष का विधायक। साथ ही कांग्रेस की काट के लिए यह बात भी कही जा रही है कि पुष्कर सिंह धामी पीएम मोदी की पसन्द है, इसीलिए हार के बाद भी उन्हें ही पांच साल के लिए सीएम बनाया गया है। इलाके की कायलपल्ट हो जाएगी।
भाजपा चुनाव प्रचार के दौरान समान नागरिकता कानून, सत्यापन अभियान, घुसपैठिये की समस्या व कई जिलों में जनसंख्या में आ रहे बदलाव को भी प्रमुखता से उठा रही है।
इधर, अन्य पर्वतीय जिलों की तरह चंपावत भी काफी पिछड़े इलाके में शुमार किया जाता है। ज़िला अस्पताल से सीएचसी 75 किलोमीटर दूर है। रोजगार समेत अन्य मूलभूत सुविधाओं का भी बुरा हाल है। इस सच को बूझते हुए मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी अपनी सभाओ में साफ तौर पर कह चुके हैं कि उनके द्वारा जो भी अश्वासन क्षेत्र की जनता को दिए गये है उन पर गहन अध्ययन किया गया है। पूर्व में भी जो घोषणाए हुई उन पर अमल किया गया है और नतीजे दिख रहे हैं। शुक्रवार को वे साफ कह गए कि उन्हें 95 प्रतिशत जनता का समर्थन मिलेगा।
खटीमा से चंपावत तक के सफर में सीएम धामी को कई कडुवे-मीठे अनुभव हो चुके हैं। खटीमा में “अपनों” के तीर से घायल धामी चंपावत के भंवर को चीरने की पुरजोर कोशिश में जुटे हुए हैं।
कुछ दिन पहले ‘भंवर एक प्रेम कहानी’ पुस्तक पर बोलते हुए सीएम धामी ने पौराणिक ऐतिहासिक नायकों का जिक्र करते हुए कहा था कि यह पुस्तक अभिमन्यु से अर्जुन बनने की प्रेरणा देती है। तो क्या खटीमा में अपनों के ही वार से’अभिमन्यु’ बने पुष्कर सिंह धामी ने चंपावत के अर्जुन बनने की दिशा में तेजी से कदम बढ़ा दिये हैं….
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