… इक आग का दरिया है और डूब कर जाना है

सीएम धामी  को 2024 तक कई अग्नि परीक्षाओं से गुजरना होगा

चंपावत, पंचायत, निकाय व लोकसभा चुनाव में स्वंय को करना होगा साबित

विघ्न संतोषियों के जारी खेल में धामी टीम के राजनीतिक-प्रशासनिक कौशल की भी परीक्षा

अविकल थपलियाल

देहरादून। हालिया विधानसभा चुनाव में हार के बाद मुख्यमंत्री बने पुष्कर सिंह धामी को चंपावत की पहली बाधा पार करने के बाद अगले लोकसभा चुनाव तक  कई अग्नि परीक्षाओं से होकर गुजरना होगा।

फिलहाल, सबसे बड़ी चंपावत की चुनौती सामने है। चूंकि, सीएम धामी को खटीमा की हार का कडुवा अनुभव हो चुका है। लिहाजा, दूसरी पिच पर अगले 15 दिन   तक चलने वाला पॉलिटिकल ‘ खेल ‘ चुनावी रणनीति के लिहाज से खासा महत्वपूर्ण माना जा रहा है।

यूं तो पूरी भाजपा सरकार व संगठन का चंपावत में जुटान रहेगा। लेकिन असल काम सीएम धामी की कोर टीम के कंधों पर ही रहेगा। सीएम धामी की खटीमा हार के पीछे कुछ अंदरूनी ताकतों की मिलीभगत की चर्चा भी राजनीतिक गलियारों की अभी तक सुर्खियां बनी हुई है। धामी का युवा होने के साथ लंबा राजनीतिक कॅरियर होना ही उनके विरोधियों के लिए सबसे बड़ा खतरा माना जा रहा है।

वैसे तो खटीमा के चुनावी रिजल्ट के बाद  कुछ समय के लिए विरोधी गुट चैन की नींद सोया। लेकिन फिर से सीएम बनने के बाद बौराये विरोधी चंपावत में “तोड़” तलाशने में जुट गए हैं। इस “तोड़” की काट के लिए भाजपा नेतृत्व भी अपने स्तर से गोटियां बिछाने में जुटा है। लेकिन इस बार धामी की किचन कैबिनेट पर बहुत कुछ निर्भर करेगा। लिहाजा, धामी टीम की जरा सी भी ढील चंपावत में  कांग्रेस के लिए संजीवनी का काम कर जाएगी।

कांग्रेस खेमे के रणनीतिकार चंपावत में स्थानीय बनाम बाहरी के मुद्दे के अलावा महिला व ब्राह्मण कार्ड को पकड़ मतदाता के बीच जा रहे हैं। हालांकि, कांग्रेस प्रत्याशी निर्मला गहतोड़ी को पुराने पार्टी उम्मीदवार रहे हेमेश खर्कवाल की तुलना में थोड़ा कमजोर आंका जा रहा है। लेकिन यह भी गौरतलब है कि खटीमा में सीएम धामी को हरा चुके भुवन कापड़ी ही चंपावत में चुनाव संचालन की जिम्मेदारी उठाये हुए हैं। कापड़ी को धामी टीम की खूबी व कमजोरी दोनों का ठीक ठाक अंदाजा है।

हालांकि, भाजपा के रणनीतिकार कांग्रेस के अंदरूनी “बिखराव” के चुनावी लाभ से विशेष उम्मीद रखे हुए हैं। और पार्टी को धामी के रिकॉर्ड मतों से जीत का पूरा भरोसा भी है।

इधर, दूसरी बार सीएम बने धामी की असली परीक्षा चंपावत की बाधा पार करने के बाद ही शुरू होगी। आने वाले दो वर्षों में सीएम पुष्कर सिंह धामी को पंचायत, निकाय व लोकसभा चुनाव में स्वंय को साबित करना होगा। लिहाजा, सरकार के जनहितकारी फैसले व उनका प्रचार प्रसार के अलावा पार्टी संगठन की मजबूती ही आने वाले पंचायत/  निकाय चुनाव में  भाजपा की लोकप्रियता का पैमाना साबित होगी।

यही नहीं, 2024 के लोकसभा चुनाव में राज्य सरकार की परफॉर्मेंस का भी अहम रोल रहेगा। इन दो वर्षों में धामी किचन कैबिनेट की डिलीवरी भी सरकार के नंबर बढ़ाने व घटाने में प्रमुख कारक सिद्ध होगी।  नहीं तो 2009 के लोकसभा चुनाव का परिणाम सभी के जेहन में ताजा है जब 2007 में भाजपा सरकार में लोकप्रिय सीएम बने जनरल बीसी खंडूड़ी की केंद्रीय नेतृत्व ने असमय विदाई कर दी। 2009 के लोकसभा चुनाव में भाजपा पांचों सीट हार गई थी। और इसका सीधा खामियाजा तत्कालीन सीएम खंडूड़ी को इस्तीफा देकर चुकाना पड़ा था। लिहाजा, सीएम धामी को विघ्न संतोषी खेमे के ताजे संकट से उबरते हुए आने वाले सभी एग्जाम अच्छे नम्बरों से पास करना होगा…

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