सीमैट में कार्यरत कई शिक्षकों पर नहीं गिरी तबादले की तलवार
अविकल उत्तराखंड
देहरादून। उत्तराखंड विद्यालयी शिक्षा अपने फैसलों को लेकर अक्सर चर्चाओं में रहा है। हरियाणा की तर्ज पर बनने वाली विभाग की तबादला नीति बनने से पहले ही सवालों के घेरे में आ गयी है ।
प्रदेश के शिक्षा विभाग में कार्यरत जिन लोगों ने वर्तमान ट्रांसफर एक्ट में सेंधमारी कर अपनी कुर्सी हिलने से बचा ली उसी विभाग के नेतृत्व में नयी स्थानांतरण नीति का मसौदा तैयार किया जाएगा। 21 जुलाई को अकादमिक एवं प्रशिक्षण संस्थान की निदेशक सीमा जौनसारी ने हरियाणा की तर्ज पर तबादला नीति बनाने के लिए एक आठ सदस्यीय विभागीय कमेटी बनाई है।
सीमैट के प्रभारी अपर निदेशक डीसी गौड़ की अध्यक्षता में डायट, समग्र शिक्षा,महानिदेशालय, माध्यमिक व बेसिक शिक्षा, SCERT आदि विभागों से जुड़े अधिकारी व प्रवक्ता सदस्य बनाये गए हैं। इस कमेटी में सीमैट के सभी प्रोफेशनल व जूनियर प्रोफेशनल अधिकारियों व कर्मियों को रखा गया है जो अनिवार्य तबादले से बचने में सफल रहे। इस कमेटी को लेकर भी विभाग में विशेष सुगबुगाहट देखी जा रही है।
हालिया शिक्षा विभाग के तबादलों में सीमैट (राज्य शैक्षिक प्रबन्धन एवं प्रशिक्षण संस्थान) में कार्यरत शिक्षकों को पोर्टल पर प्रोफेशनल नाम से दिखा कर उनको अनिवार्य स्थानांतरण में फिल्टर होने से बचा लिया गया । इनमें कई शिक्षक वर्षों से एक ही जगह जमे हैं।
लेकिन यहाँ कार्यरत शिक्षकों न तो प्रोफेशनल नाम से फिल्टर किया गया और ना ही शिक्षकों की श्रेणी में ही। पहले तो इन्हें शिक्षकों की सूची में ही स्थानांतरित किया जाना चाहिए था किंतु यदि इन्हें शिक्षक के रूप में स्थानांतरित नहीं करना था तो प्रोफेशनल श्रेणी के अंतर्गत ही सुगम से दुर्गम स्थानांतरण करना चाहिए था ।
यदि ये सरकारी कार्मिक हैं तो अनिवार्य स्थानांतरण में किन प्रावधानों के अंतर्गत छूट प्रदान की गयी । यदि इनकी सुगम की सेवा देखी जाए तो पात्रता सूची में सुगम से दुर्गम के लिए शीर्ष तीन में इनका स्थान होता । लेकिन “ऊपरी कृपा” से ये अधिकारी/कर्मी अनिवार्य स्थानांतरण के पंजे से स्वंय को बचा ले गए।
इसके अतिरिक्त निदेशक अकादमिक शोध तीनों ही निदेशालयों में सबसे छोटा निदेशालय है किंतु यह निदेशालय आज तक न तो शिक्षक शिक्षा संवर्ग का ही गठन कर पाया और न ही शुद्ध मासिक परीक्षा के प्रश्नपत्र तैयार करवा पाया जबकि यह गुणवत्तायुक्त शिक्षा के लिए जवाबदेह निदेशालय है।
हरियाणा की तर्ज पर उत्तराखंड के विद्यालयी शिक्षा विभाग की तबादला नीति तैयार करने की रणनीति भी गले नहीं उतर रही है। विभाग के अंदर इस बात की भी चर्चा गर्म है कि मैदानी प्रदेश हरियाणा व उत्तराखंड की भौगोलिक परिस्थितियां भी मेल नहीं खाती। हरियाणा में दुर्गम जैसी स्थितियां भी नहीं है। ऐसे में सुगम-दुर्गम के सिरदर्द बिंदु पर कैसे अंतिम राय बनेगी। विभागीय सूत्रों का यह भी मानना है कि हरियाणा के बजाय हिमाचल समेत अन्य हिमालयी राज्यों के तबादला एक्ट का अध्ययन कर ही ट्रांसफर नीति बनानी होगी।
तबादला नीति बनाने वाली कमेटी के गठन के समय कहा गया कि हरियाणा राज्य, पूर्व व मौजूदा शिक्षक तबादला नीति व एक्ट का अध्ययन कर एक हफ्ते के अंदर ड्राफ्ट उपलब्ध कराने के भी निर्देश दिए गए थे।
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