अविकल उत्तराखंड
नैनीताल उच्च न्यायालय ने उत्तराखंड विधानसभा सचिवालय के सौ से अधिक कर्मचारियों की बर्खास्तगी के आदेश पर रोक लगा दी है।
साथ ही विधानसभा को नियमित भर्ती प्रक्रिया शुरू करने के लिए विज्ञापन प्रकाशित करने की छूट भी दी है। मामले की अगली सुनवाई 19 दिसम्बर तय की गई है।
न्यायाधीश न्यायमूर्ति मनोज कुमार तिवारी की एकलपीठ ने विधानसभा में बैकडोर नियुक्तियों के मामले में सरकार के 27 से 29 सितंबर के आदेश पर रोक लगा दी है साथ ही कोर्ट ने सरकार समेत अन्य पक्षकारों से जवाब मांगा है।
गौरतलब है कि बर्खास्तगी के आदेश को भूपेंद्र सिंह बिष्ट समेत अन्य ने हाई कोर्ट में चुनौती दी है। याचिका में कहा गया है कि साल 2002 से लगातार विधानसभा के पदों पर तदर्थ नियुक्तियां हुई हैं और 2014 तक की नियुक्तियों को नियमित भी कर दिया गया जबकि उनकी सेवाओं को समाप्त कर दिया।
याचिका में कहा गया है कि हम भी नियमित पदों के सापेक्ष काम कर रहे हैं। याचिका में कहा गया है कि विधानसभा नियमावली में है कि 6 महीने सेवा के बाद नियमितीकरण का प्रावधान है लेकिन हमारे लिए इसकी भी अनदेखी की गई है, बिना कोई कारण बताए बिना सुनवाई के 228 लोगों की सेवा समाप्त कर दी।
इस मुद्दे पर जारी सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट की एकलपीठ ने विधानसभा में बैकडोर नियुक्तियों के मामले में सरकार को झटका दिया है। बैकडोर भर्ती घपले के जोर पकड़ते ही स्पीकर ऋतु खण्डूड़ी ने 3 सितम्बर को पूर्व आईएएस डीके कोटिया की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय एक्सपर्ट का गठन किया था। कमेटी ने 2016 के बाद 228 नियुक्तियों को नियम विरुद्ध मानते हुए हटाने की सिफारिश की थी।
इसके बाद स्पीकर ऋतु खण्डूड़ी ने 228 कर्मियों को पद से हटाने के आदेश कर दिये थे। जबकि पूर्व स्पीकर प्रेमचन्द अग्रवाल का कहना है कि नियम के तहत नियुक्तियां हुई हैं। तीन सितम्बर को जांच कमेटी का गठन किया गया था।
हाईकोर्ट गए विस कर्मियों के वकीलों ने दलील दी थी कि 2016 से पहले भी बैकडोर नियुक्तियां हुई थी जो नियमित भी कर दिए गए जबकि 2016 के बाद नियुक्त कर्मी तदर्थ ही चले आ रहे हैं।
सरकार के वकील ने कोर्ट को बताया कि काम चलाऊ व्यवस्था के तहत तदर्थ नियुक्ति की गई थी।


