होटल इंद्रलोक में सुबह 10 बजे से रात 8 बजे तक खुली रहेगी प्रदर्शनी
अविकल उत्तराखण्ड
देहरादून। दून पुस्तकालय एवं शोध केन्द्र की ओर से उत्तराखंड राज्य स्थापना दिवस के अवसर पर भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन और उत्तराखंड आंदोलन की घटनाओं पर केंद्रित एक प्रदर्शनी का आयोजन किया जा रहा है। आजादी के अमृत महोत्सव की थीम पर आधारित यह प्रदर्शनी होटल इंद्रलोक की आर्ट गैलरी में लगाई जा रही है। देहरादून स्थित डॉ. द्विजेन सेन मेमोरियल कला केन्द्र का सहयोग भी इस प्रदर्शनी को मिल रहा है।
इस विशेष प्रदर्शनी का शुभारम्भ 9 नवम्बर को सायं 4ः00 बजे, होटल इंद्रलोक, राजपुर रोड(सेंट्स जोसेफ एकेडमी के सामने) हो रहा है। प्रदर्शनी का शुभारम्भ पद्मश्री व साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित लीलाधर जगूड़ी करेंगे। यह प्रदर्शनी आम दर्शकों के लिए 30 नवम्बर, 2022 तक होटल इन्द्रलोक में प्रतिदिन प्रातः 10ः00 से सायं 8ः00 बजे तक निःशुल्क रुप से खुली रहेगी।
इस आयोजन का प्रमुख उद्देश्य आम जन को गढ़वाल और कुमाऊं के समाचार पत्रों के माध्यम से भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन और उत्तराखंड राज्य आंदोलन की घटनाओं की जानकारी उपलब्ध कराना है। प्रदर्शनी के माध्यम से तत्कालीन समय के समाचार पत्रों की खबरों और उनके सम्पादकीय आलेखों के दुर्लभ और निर्भीक पूर्ण विचारों को प्रस्तुत करने का प्रयास किया गया है।प्रदर्शनी में लगायी गयी प्रकाशित सामग्री मुख्य रुप से अल्मोड़ा अखबार(1870),गढ़वाली(1905),पुरुषार्थ(1917), कर्मभूमि, विशालकीर्ति(1913),शक्ति(1918),क्षत्रीय वीर(1920),तरुण कुमाऊं (1923) तथा अन्य समाचार पत्रों पर आधारित है।
जन इतिहासकार डॉ.योगेश धस्माना के अनुसार उत्तराखण्ड में उन्नीसवीं सदी के अन्तिम दशकों से लेकर बीसवीं सदी प्रारम्भिक पांच दशकों तक जनजागरण,सामाजिक संस्थाओं के विकास से सामाजिक चेतना और 1930 से 1949 तक टिहरी रियासत के भारतीय गणराज्य में विलय तक राजनीतिक चेतना और घटनाओं पर प्रलेखित सामग्री का परिदृश्य इस प्रदर्शनी में उपलब्ध है।
स्थानीय नायकों ने जिस तरह कुली बेगार के उन्मूलन और वन अधिकारों की प्राप्ति के लिए असहयोग आन्दोलन किया उसकी सफलता ने उस दौर में उत्तराखण्ड को राष्ट्र की मुख्य धारा में जोड़ने का कार्य किया।
यह प्रदर्शनी उन अनेक भूली-बिसरी महिलाओं और महापुरुषों को भी जानने का अवसर देती है, जिन्होंने देश प्रेम के खातिर औपनिवेशिक प्रशासन के खिलाफ आवाज उठाकर अपनी जान की बाजी तक लगानी पड़ी।
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