हर बार नेगीदा के गीतों से और रंगीन हुआ रंगों का पर्व होली

पहाड़ की असल आवाज, नेगीदा होली कु खिल्लया,

वरिष्ठ पत्रकार विपिन बनियाल


-ज्यू बुनू च प्रेम का रंगों न/तेरी कोरी जिकुड़ी रंगे दूं/ऐंसू की होरी मा। (मन करता है कि इस बार की होली में प्रेम के रंगों से मैं तेरी खाली दिल को रंग दूं।) प्रेम और रंगों के इस गहरे संबंध को नरेंद्र सिंह नेगी से बेहतर कौन अभिव्यक्त कर सकता है। होली के जितने रंग हैं, नेगीदा के गीतों के भी उतने ही रंग हैं। पहाड़ के लोक की पृष्ठभूमि में इन गीतों में उमंग है, तरंग है। प्रेम-माया का मजबूत बंधन है।


वैसे, अपने 50 साल के गीतों के सफर में नेगीदा ने होली पर जितने शानदार गीत लिखे और गाए हैं, वैसा करता कोई दूसरा नजर नहीं आया है। ऐसे में दिल ये ही कहता है-जुगराज रैंया नेगीदा। जिंदाबाद नेगीदा। त्योहारों में होली का माहौल शायद नेगीदा को सबसे ज्यादा भाता है। इसलिए चाहे, वो उत्तराखंडी फिल्म हो या फिर कैसेट-एलबम, होली के गीतों को नेगीदा ने खास ट्रीटमेंट दिया है।
सबसे पहले, उत्तराखंडी फिल्मों की बात। होली का सबसे पहला गाना यदि उत्तराखंडी फिल्मों में दिखा है, तो उसका श्रेय नेगीदा को ही है। फिल्म बंटवारू में रेखा धस्माना उनियाल के साथ उनका गाया गाना हो हो होरी ऐगे, पर्वतों मा आज भी उसी शान से बजता है, जैसा नब्बे के दशक में बजता था।

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नेगीदा के होली गीतों में उनकी कमाल की रचनाधर्मिता नजर आती है। उनके गीतों में मौल्यार दिखता है, उलार नजर आता है। बुरांस, फ्यूंली की बात होती है। होली है, तो उमंग और उत्साह स्वाभाविक ही गीत का हिस्सा बनते हैं। मगर कमाल त्योहारी माहौल के बीच पसरी हल्की सी मायूसी को कैच करने का भी है। अब होरी ऐगे पर्वतों मा वाले गीत को ही ले लें, तो इस गीत की एक लाइन है-मेरू रंग तो हाथ मा ही रै गे। (मेरा रंग तो हाथ में ही रह गया।) इसी तरह, एक और उत्तराखंडी फिल्मी गीत चली बसंती बयार गीत की बात करें। गीत में प्रेम का उफान है, लेकिन बिछड़ने की चिंता भी है-गैल्यां अपणा हथुन अबीर गुलाल लगेजा/झणी फिर कब हूंद भेंट/समलोण्या चदरी रंगे जा/ऐंसू की होरी मा (साथी, अपने हाथों से अबीर गुलाल लगा दे, पता नहीं फिर कब मुलाकात होती है, यादगार आंचल रंग जा।)।


नेगीदा ने जब मौका मिला है, तब होली के हल्के-फुल्के मालौल के बीच व्यवस्था पर चोट करती गंभीर बातें भी कही हैं। समाज के एक सजग रचनाकार होने के नाते हंसी-ठिठोली के बीच संवेदनशील बातों को उठाने का नेगीदा का यह अंदाज ही उन्हें एक अलग स्थान देता है। मसलन, नेगीदा के एक गीत की लाइन पर गौर फरमाए-हमारा कुकर्मों न रूसेनी केदारनाथ, सद्बुद्धि दे बद्री विशाल, मेेरो पिया होरी कु खिल्लया (हमारे बुरे कर्मों से भगवान केदारनाथ नाराज हुए, भगवान बद्री विशाल सद्बु़िद्ध प्रदान करें, मेरा पिया होली खेलने वाला )। एक लाइन और अहम है-लूट, भ्रष्टाचार, घोटाला ही घोटाला, मोटी हवेगी नेतों की खाल, मेरू पिया होली कु खिल्लया (लूट, भ्रष्टाचार, घोटाले ही घोटाले हैं, नेताओं की हठधर्मिता और ज्यादा बढ़ गई है, मेरा पिया होली खेलने वाला)।
होली के त्योहार की खुशियों के बीच हम इस बात पर सुकून महसूस कर सकते हैं कि हमारे साथ नेगीदा हैं। उनके सदाबहार गीत हैं। नेगीदा दीर्घायु हों और होली के गीतों के साथ हमारे जीवन को रंगीन करते रहें। ये ही कामना है। नेगीदा से मेरी बातचीत और उनके गीतो पर आधारित वीडियो धुन पहाड़ की यूट्यूब चैनल पर उपलब्ध है, आप दिए गए लिंक पर क्लिक कर उसे देख सकते हैं।

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