वरिष्ठ पत्रकार जय सिंह रावत को मिला पहला पंडित भैरव दत्त धूलिया सम्मान

देहरादून में प्रख्यात पर्यावरणविद चंडीप्रसाद भट्ट , प्रो.शेखर पाठक व उमाकांत लखेड़ा ने किया सम्मानित

वक्ताओं ने आजादी के आंदोलन में साप्ताहिक कर्मभूमि के योगदान को व मौजूदा चुनौतियों को किया रेखांकित

अविकल उत्तराखण्ड

देहरादून। आजादी के आंदोलन में मुख्य भूमिका निभाने वाले उत्तराखण्ड के प्रसिद्ध साप्ताहिक अखबार कर्मभूमि के संस्थापक सम्पादक भैरव दत्त धूलिया सम्मान वरिष्ठ पत्रकार जय सिंह रावत को प्रदान किया गया।

गुरुवार की शाम दून सर्वे चौक स्थित ऑडिटोरियम में प्रख्यात पर्यावरणविद व पद्म पुरस्कार से सम्मानित चंडीप्रसाद भट्ट, इतिहासकार प्रो. शेखर पाठक व प्रेस क्लब आफ इंडिया के अध्यक्ष उमाकांत लखेड़ा ने सम्मानित किया। जय सिंह रावत को सम्मान स्वरूप प्रशस्ति पत्र, शाल व 1 लाख की धनराशि प्रदान की गई।

इस मौके पर वक्ताओं ने साप्ताहिक कर्मभूमि के आजादी के आंदोलन व बाद में सराहनीय भूमिका को याद किया। सम्पादक पंडित भैरव दत्त धूलिया के लैंसडौन, कोटद्वार, बनारस, पटना ,मेरठ के ऐतिहासिक सफर को लोगों के सामने रखा।

प्रो. पाठक ने आजादी के समय उत्तराखण्ड से प्रकाशित होने वाले समाचार पत्रों स जुड़े तथ्य भी सामने रखे। पाठक ने पंडित भैरव दत्त धूलिया के साथ जुड़े अपने संस्मरणों को भी याद किया। प्रो शेखर पाठक ने स्वतंत्रता आंदोलन में पंडित भैरवदत्त धूलिया की जेल यात्रा से लेकर उत्तर प्रदेश की विधानसभा तक पहुंचने की कहानी का सारगर्भित वर्णन किया।

कई पुरुस्कारों से सम्मानित चंडीप्रसाद भट्ट ने पंडित भैरव दत्त धूलिया के सामाजिक व राजनीतिक मुद्दों के प्रति संवेदनशीलता को रेखांकित किया। उन्होंने कहा कि सामाजिक बुराइयों के खिलाफ हो रहे आंदोलनों को पंडित भैरव दत्त धूलिया अपने पत्र में विशेष जगह देते थे। और हमेशा उत्साहवर्द्धन करते रहते थे। वे एक विद्वान व संवेदनशील इंसान थे।

भट्ट ने पर्यावरण से जुड़े खतरों से भी आगाह कराया। वरिष्ठ पत्रकार उमाकांत लखेड़ा ने साप्ताहिक कर्मभूमि की उत्तराखण्ड के पाठकों के बीच अहमियत को उदाहरण देकर प्रस्तुत किया। और कहा कि आज मीडिया को पंडित भैरव दत्त धूलिया के पत्रकारीय मूल्यों से शिक्षा लेनी चाहिए।पंडित भैरव दत्त धूलिया सम्मान से सम्मानित वरिष्ठ पत्रकार जय सिंह रावत ने कर्मभूमि फाउंडेशन के आभार जताते हुए कहा कि मौजूदा दौर में मीडिया के सामने कई चुनौतियां खड़ी हैं।

साप्ताहिक कर्मभूमि में पंडित भैरव दत्त धूलिया ने सामाजिक व राजनीतिक मूल्यों के उच्च मानदंड स्थापित किये। कार्यक्रम का संचालन जर रहे हिमांशु धूलिया ने फ्रीडम फाइटर भैरव दत्त धूलिया की जीवन यात्रा का वर्णन किया।

कर्मभूमि फाउंडेशन के सचिव तिग्मांशु धूलिया ने पत्रकार जय सिंह रावत के पत्रकारिता क्षेत्र में योगदान का उल्लेख किया। कार्यक्रम के अंत में सुमित्रा धूलिया ने मौजूद मेहमानों का आभार जताया। इस मौके पर देहरादून समेत प्रदेश के विभिन्न स्थानों से आये लोगों की खासी तादात भी उत्साहवर्द्धक रही।

जन्म तिथि 18 मई पर विशेष


निर्भीक पत्रकारिता के जनक और आजादी के आंदोलन के अग्रदूत थे भैरवदत्त धूलिया


लैंसडौन / गढ़वाल की पत्रकारिता के सबसे सशक्त हस्ताक्षरों में भैरवदत्त धूलिया का नाम आज भी सम्मान से लिया जाता है / 18 मई 1901 में द्वारीखाल विकास खंड के मदनपुर गाँव के प्रतिष्ठित परिवार पंडित हरिदत्त धूलिया तथा श्रीमती सावित्री देवी के घर भैरवदत्त धूलिया का जन्म हुआ था /
इनकी प्रारंभिक शिक्षा गांव में ही हुई थी / 13 वर्ष की आयु में इनका विवाह चमेठा गांव के केवलराम कोटनाला की सुपुत्री सावित्री देवी संग हुआ था / विवाह के बाद वे संस्कृत की पढ़ाई के लिये बनारस चले गए थे /
वर्ष 1920 में हाईस्कूल की परीक्षा पास करने के बाद धूलिया जी गढ़वाल के कुली – बेगार आंदोलन में सक्रिय हो गए थे / यहीँ से उनके संघर्ष भरे सामाजिक व राजनीतिक जीवन की शुरुआत हुई थी / कुली – बेगार और सत्याग्रह आंदोलन में बढ़ चढ़ कर भागीदारी निभाने के बाद वर्ष 1925 में वे संस्कृत व अंग्रेजी की पढ़ाई के लिये पुनः बनारस चले गए / किन्तु इनका मन सामाजिक आंदोलनों में रमता रहा / जिसके कारण वे फाइनल परीक्षा नहीं दे सकें /
वर्ष 1935- 1936 में काशी विद्यापीठ के कुमार विद्यालय में कुछ समय अध्यापन करने के बाद पटना से प्रकाशित समाचार पत्र नवशक्ति के संपादकीय विभाग में भी कार्य किया /
सन 1939 का वर्ष गढ़वाल की पत्रकारिता के इतिहास का एक महत्वपूर्ण वर्ष रहा / भक्त दर्शन जी और धूलिया जी ने प्रयागदत्त धस्माना और हरेंद्र सिंह के सहयोग से लैंसडौन में हिमालयन ट्रेडिंग तथा पब्लिशिंग कम्पनी की स्थापना करके कर्मभूमि साप्ताहिक पत्र का प्रकाशन किया / सन 1939 की बसंत पंचमी को कर्मभूमि का पहला अंक लैंसडौन से प्रकाशित किया गया / धूलिया जी कर्मभूमि के संपादन से जुड़े रहे / आजादी के आंदोलन के दिनों में लैंसडौन राजनीतिक गतिविधियों का महत्वपूर्ण केंद्र था / और यहीँ से कर्मभूमि की शुरुआत की गई थी /

कुछ माह बाद कर्मभूमि के प्रबंधकीय विभाग से कुछ वैचारिक मतभेद होने के कारण धूलिया जी दिल्ली चले गए / और तिबिया कॉलेज में प्रोफेसर हो गए / उनके जाते ही कर्मभूमि में संपादकीय छपने बंद हो गए /
सामाजिक कार्यकर्ता व पूर्व प्रधानाचार्य सुरेश वर्मा बताते हैं कि वर्ष 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन में धूलिया ने सक्रिय भूमिका निभाई थी / इसी दौरान उनके द्वारा लिखी पुस्तक ‘अंग्रेजों को हिंदुस्तान से निकाल दो ‘ ने ब्रिटिश सरकार की चुलें हिला दी / यह पुस्तक योगेश्वर प्रसाद धूलिया के प्रयास से मुंबई से प्रकाशित कराके वितरित की गई थी / ब्रिटिश हुकूमत की आंखों में धूल झोंकने व जनमानस को आजादी के आंदोलन से जोड़ने के लिये इस पुस्तक को छदम नाम से प्रकाशित किया गया था / इस पुस्तक ने समूचे गढ़वाल में क्रांति की ज्वाला प्रज्वलित करने का काम किया था /
हनुमान चालीसा लिखने के अपराध में 8 नवंबर 1942 को धूलियाजी एवं उनके साथियों को पुलिस ने रात 3 बजे उनके निवास से बंदी बनाया और कोटद्वार में इन पर अलग अलग धाराओं में मुकदमा चलाया गया / 10 नवंबर 1942 को भैरवदत्त धूलिया को विद्रोह करने के अपराध में 3 वर्ष और बागियों को शरण देने के अपराध में 4 वर्ष कुल 7 वर्ष की सजा सुनाई गई / उन्हें जिला जेल बरेली भेजा गया / बाद में इन्हें बी श्रेणी मिल जाने पर जिला जेल मेरठ भेजा गया / पर्वतीय क्षेत्र के आंदोलनकारियों में धूलिया जी को ही सबसे अधिक जेल की सजा हुई थी / जेल से मुक्त होने के बाद उन्होंने पुनः कर्मभूमि का संपादन किया / निर्भीकता उनके तन मन में कूट कूट कर बसी रही / निर्भीक पत्रकार का यह गुण जीवन भर उनके साथ रहा /डोला – पालकी आंदोलन, छुआछूत, टिहरी राजशाही के अत्यंचारों के विरुद्ध जन मानस को जागृत करने,शराबबंदी आंदोलन, में धूलिया जी ने न केवल अपने लेखन के जरिये बल्कि इन आंदोलनों में सक्रिय भागीदारी कर इनका नेतृत्व भी किया / भ्रष्टाचार के खिलाफ वे जीवन भर संघर्षरत रहे / जन समस्याओं के समाधान की दिशा में वे हर वक्त आगे आकर काम करते रहे / 1967 के विधानसभा चुनाव में उन्होंने तत्कालीन दिग्गज मंत्री जगमोहन सिंह नेगी को पराजित किया / लेकिन सविंद सरकार की कार्य प्रणाली से नाराज होकर उन्होंने सरकार से इस्तीफा दे दिया /जुलाई 1988 में उन्होंने कोटद्वार में अंतिम सांस ली।

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