भारत सरकार के अल्पसंख्यक मंत्रालय की ओर से 29 अक्टूबर से 7 नवंबर तक देहरादून में चल रहा लोकल फार वोकल हुनर हाट
अविकल उत्त्तराखण्ड
देहरादून । दून के हुनर हाट में पेशावर कांड के नायक व फ्रीडम फाइटर वीर चंद्र सिंह गढ़वाली को 35 साल पहले मार कर नये ‘हुनर’ का परिचय दिया गया है। 23 अप्रैल 1930 को पेशावर में निहत्थे पठानों पर गोली नहीं चलाने का आदेश देकर आजादी के आंदोलन में क्रांतिकारी कदम उठाने वाले वीर गढ़वाली ने 1 अक्टूबर 1979 को अंतिम सांस ली थी। लेकिन हुनर हाट में लगी उनकी फोटो के नीचे मृत्यु वर्ष 1944 अंकित की गई है।
दरअसल, भारत सरकार के अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय की ओर से रेसकोर्स में हुनर हाट लगा हुआ है। 29 अक्टूबर से शुरू हुए इस हुनर हाट में विभिन्न प्रकार के स्टाल लगे हैं।
इनमें एक स्टाल उत्त्तराखण्ड की विभूतियों से भी जुड़ा है। इस स्टाल में वीर चंद्र सिंह गढ़वाली के जीवन परिचय भी दिया हुआ है। 24 दिसंबर 1891 को गढ़वाली का मासौं, चौथान, पौड़ी गढ़वाल में जन्म हुआ। और मृत्यु का वर्ष 1944 दर्शाया गया है। जबकि पेशावर कांड के नायक गढ़वाली की मृत्यु 1 अक्टूबर 1979 में दिल्ली में हुई थी। 1994 में भारत सरकार ने वीर चंद्र सिंह गढ़वाली की स्मृति में डाक टिकट जारी किया था। उत्त्तराखण्ड की सभी सरकारें वीर गढ़वाली के नाम को भुनाने की कोशिश में लगी रहती हैं। उनके नाम पर वीर चन्द्र सिंह गढ़वाली पर्यटन स्वरोजगार योजना भी चलाई जा रही है। बीते साल ही
चित्र के साथ दिये गए जीवन परिचय में महात्मा गांधी के वीर गढ़वाली के बारे में कहे गए मूल्यवान शब्दों का भी उल्लेख किया गया है। गांधी ने कहा था कि अगर हमारे पास एक और गढ़वाली होता तो देश काफी पहले आजाद हो जाता।
बहरहाल, 29 अक्टूबर से शुरू हुए हुनर हाट का समापन रविवार, 7 नवंबर को होना है। हुनर हाट के बाहर लगे होर्डिंग में प्रधानमंत्री मोदी व सीएम पुष्कर सिंह धामी के बड़े बड़े होर्डिंग लगे हैं। होर्डिंग में आजादी के अमृत महोत्सव व लोकल फार वोकल स्लोगन भी चस्पा है। लेकिन पेशावर कांड के बाद काले पानी की सजा भुगत चुके उत्त्तराखण्ड के वीर गढ़वाली के गलत मृत्यु वर्ष पर किसी जिम्मेदार अधिकारी का ध्यान नहीं गया…
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