एक नयी इबारत लिख गए बदरीनाथ व मंगलौर के मतदाता
लोस चुनाव की बंपर जीत के बाद दिया जोर का झटका
उपचुनाव जीत कर विपक्षी कांग्रेस ने रचा इतिहास
अब केदारनाथ निकाय चुनाव पर टिकीं नजरें
अविकल थपलियाल
देहरादून । मंगलौर व बदरीनाथ के उपचुनाव में जीत के बार कांग्रेस किले में जश्न का महौल है। विपक्षी कांग्रेस ने उपचुनाव में जीत दर्ज नया इतिहास रच दिया।
राज्य गठन के बाद हुए उपचुनाव में विपक्षी दल कांग्रेस ने पहली बार जीत हासिल की है। इससे पहले द्वाराहाट विधानसभा के यूकेडी विधायक विपिन त्रिपाठी के निधन के बाद पुत्र पुष्पेश त्रिपाठी ने उपचुनाव जीता था। सीएम नारायण दत्त तिवारी के कार्यकाल में यह चुनाव हुआ था।
कुछ ही महीने के अंदर होने वाले केदारनाथ उपचुनाव व निकाय चुनाव में विपक्ष की यह जीत कांग्रेस का मनोबल बढ़ाने के लिए काफी है।
कांग्रेस की यह जीत इसलिए भी विशेष मायने रखती है कि लगभग एक महीने पहले ही भाजपा ने पांचों लोकसभा सीट लगभग डेढ़ व ढाई लाख मतों के अंतर से जीती थी।
पौड़ी से अनिल बलूनी और त्रिवेंद्र सिंह रावत हरिद्वार से पहली बार लोकसभा का चुनाव लड़े और जीते। दोनों नव निर्वाचित सांसदों अनिल बलूनी के लिए बदरीनाथ और त्रिवेंद्र के लिए मंगलौर सीट किसी एसिड टेस्ट से कम नहीं थीं।
हालांकि, राज्य गठन के बाद मंगलौर सीट कभी भाजपा ने जीती ही नहीं थी। ऐसे में बाहरी प्रत्याशी भड़ाना का बसपा को पछाड़ दूसरे नंबर पर आना पार्टी के लिए संतोष का सबब हो सकता है। 2022 में भाजपा प्रत्याशी तीसरे नंबर पर रहे थे।
लेकिन पौड़ी लोकसभा चुनाव में अनिल बलूनी को बदरीनाथ सीट से 8 हजार की लीड मिली थी। लेकिन चुनाव जीतने के 40 दिन के अंदर हुए चुनाव में भाजपा प्रत्याशी राजेन्द्र भंडारी कांग्रेस के नये नवेले प्रत्याशी लखपत बुटोला से 5 हजार से अधिक मतों से हार जाते हैं।
डबल इंजन की सरकार में बदरीनाथ सीट पर भाजपा के उंस प्रत्याशी का हार जाना जो 2022 में कांग्रेस के टिकट पर प्रचंड मोदी लहर के बावजूद जीत गए थे। वही राजेन्द्र भंडारी कांग्रेस छोड़ भाजपा में जाने के बाद उपचुनाव हार जाते हैं।
इस हार के बाद राजनीतिक गलियारों में यह चर्चा भी आम हो गयी है कि अगर उत्तराखण्ड में लोकसभा चुनाव पहले चरण 19 अप्रैल को न होकर तीसरे या चौथे चरण में होता तो चुनावी परिणाम कुछ अलग ही तस्वीर बयां करते।
फिलहाल, प्रदेश की जनता ने इस उपचुनाव में बाहरी भड़ाना, भंडारी और भाजपा को बाहर का रास्ता दिखा दिया है। फिलहाल, भाजपा प्रत्याशी भंडारी अपनी विधायकी गंवा चुके हैं। वे फिलहाल न घर के रहे न घाट के। इधर, भाजपा में भंडारी की आमद पर भी पार्टी के अंदर नये सिरे से चर्चा होने की संभावना है।
दूसरी ओर, भाजपा नेतृत्व ने करतार सिंह भड़ाना को उत्तराखंड का टिकट देकर समूचे प्रदेश को गर्मा दिया था। अंततः मंगलौर की जनता ने करतार सिंह भड़ाना के यहां पैर नहीं जमने दिए।
चुनावी राजनीति के इतिहास में बदरीनाथ व मंगलौर उपचुनाव के ऐतिहासिक फैसले ने बाहरी उम्मीद्वार व रातों रात दल बदलने वाले नेताओं को दूर से ही नमस्ते कर विदा कर दिया। भड़ाना और भंडारी से लड़ी गयी कांग्रेस की यह जंग प्रदेश की राजनीति में एक नई इबारत लिख गयी..
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