विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस पर दून विवि में परिचर्चा का आयोजन
मानसिक स्वास्थ्य के प्रति बढ़ती संवेदनशीलता एक पॉजिटिव लक्षण – प्रोफेसर सुरेखा डंगवाल
अविकल उत्तराखंड
देहरादून। दून विश्वविद्यालय में विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस के उपलक्ष में एक परिचर्चा का आयोजन किया गया। परिचर्चा में शिक्षक, शोधार्थी एवं विद्यार्थियों ने हिस्सा लिया । इस पैनल चर्चा का मुख्य विषय मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाने पर आधारित थी। वक्ताओं ने इस बात पर सहमति व्यक्त की मानसिक स्वास्थ्य के क्षेत्र में युवाओं की भागीदारी से ही जन चेतना बढ़ाई जा सकती है। इस अवसर पर डॉक्टर मनोज कुमार पंत, (समन्वयक, एसीईओ, सीपीपी & जीजी) ने कहा कि दून विश्वविद्यालय के मनोविज्ञान विभाग और सेंटर फॉर पब्लिक पॉलिसी की सहायता से पूरे उत्तराखंड में यूथ इंगेजमेंट प्रोग्राम के तहत विश्वविद्यालय, कॉलेज और स्कूल में मानसिक स्वास्थ्य सर्वे कराया जाएगा ताकि युवाओं की वास्तविक मानसिक स्थिति का पता चल सके। इसके साथ ही मानसिक स्वास्थ्य के लिए यूथ हेल्थ क्लब भी बनाए जाएंगे जिसका दून विश्वविद्यालय का मनोविज्ञान विभाग नेतृत्व करेगा। इस अवसर में होने मेंटल हेल्थ सर्वे का टूल भी लॉन्च किया।
दून विश्वविद्यालय की कुलपति प्रोफेसर सुरेखा डंगवाल ने अपने संदेश में कहा कि मनोवैज्ञानिक समस्याओं पर खुलकर बात करने की आवश्यकता है. यह विज्ञान का युग है और अब हम उस सदी से निकल कर बाहर आ गए हैं जहां पर मनोवैज्ञानिक समस्याओं को भूत प्रेत की बाधा माना जाता था। सही समय पर साइकोलॉजिस्ट से परामर्श और आवश्यकता होने पर साइट्रिक मेडिकेशंस के द्वारा मनोरोगों को आसानी से मैनेज किया जा सकता है। जिस तरीके से कोई शारीरिक रोग, जैसे कि हार्ट अटैक होने पर, हम लोगों से खुलकर बात करते हैं ठीक वैसे ही मनोरोग होने पर भी हमें लोगों से खुलकर बात करनी चाहिए क्योंकि बहुत सारे मनोरोगों का कारण ब्रेन में कई तरह की दिक्कते आने से होती है अर्थात मनोवैज्ञानिक समस्याओं के भी शारीरिक कारण होते हैं।
इसीलिए मनोरोग होने पर कलंकित महसूस होने की आवश्यकता नहीं है। यह बहुत अच्छी बात है कि उत्तराखंड सरकार यूथ इंगेजमेंट जैसे प्रोग्राम चलाकर युवाओं के मानसिक स्वास्थ्य के प्रति अपनी गंभीरता को व्यक्त कर रही है। इस तरह के सर्वेक्षण से यह ज्ञात हो पाएगा कि युवाओं को किस तरह की मानसिक समस्याएं हैं और किस तरह की मानसिक स्वास्थ्य संबंधित सहायता की आवश्यकता है और इस सर्वेक्षण के माध्यम से भविष्य में युवाओं के मध्य मनोवैज्ञानिक आवश्यकता आधारित प्रोग्राम चलाए जा सकते हैं।
मुख्य वक्ता प्रोफेसर एच सी पुरोहित, डीएसडब्ल्यू एवं डीन, स्कूल ऑफ़ मैनेजमेंट ने अपने वक्तव्य में बताया कि संपूर्ण विश्व में हमें श्री भगवत गीता में भगवान श्री कृष्ण के द्वारा युद्ध भूमि में खड़े अर्जुन को अवसाद से बाहर निकलने का वर्णन मिलता है जिसे कौंसिलिंग की शुरुआत कहना उचित होगा । भगवत गीता में बहुत सारी चर्चा मनोवैज्ञानिक समस्याओं के कारण और निवारण के बारे में विस्तृत जानकारी प्रदान करते हैं। गीता, आयुर्वेद और पतंजलि योग सूत्र में बहुत सारे ऐसे उदाहरण है जिसमें उच्चतर मनोवैज्ञानिक अवस्थाओं का वर्णन किया गया है जिसका प्रयोग मानसिक स्वास्थ्य के लिये उपयोगी हो सकता है। आवश्यकता है कि इससे नयी पीढी को शिक्षित किया जाय।
डॉ सविता तिवारी, विभाग अध्यक्ष, मनोविज्ञान विभाग ने कहा कि मनोवैज्ञानिक समस्याओं से निपटने के लिए वैकल्पिक उपचारों की भी आवश्यकता है और यह आम जन के लिए निशुल्क होने चाहिए. युवाओं में एडिक्शन की प्रवृत्ति बढ़ रही है. आज के युवा सामाजिक मानकों के हिसाब से अपने आप को डालने में असमर्थ पाते हैं क्योंकि उनमें लाइफ स्किल्स की कमी है. पेरेंटिंग स्टाइल पर भी ध्यान देने की आवश्यकता है क्योंकि आजकल माता पिता का सुपरविजन पहले की तुलना में बच्चों के ऊपर कम है. युवाओं के जीवन में सपोर्ट सिस्टम में कमी आई है. मेंटल हेल्थ के लिए और अधिक जागरूकता प्रोग्राम चलाने के साथ साथ निशुल्क कानूनी सुविधा देने की आवश्यकता है.
डॉ राजेश भट्ट, असिस्टेंट प्रोफेसर, मनोविज्ञान विभाग ने कहा कि मनोवैज्ञानिक समस्याओं को डील करने के लिए हॉलिस्टिक अप्रोच की आवश्यकता है जिसमें बायोलॉजिकल, साइकोलॉजिकल, सोशल ओर स्पिरिचुअल पहलुओं पर भी ध्यान देने की आवश्यकता होती है। मनोवैज्ञानिक समस्याओं को समझने और उसके बाद निराकरण के लिए ब्रेन इमेजिंग तकनीक “एसपेक्ट” बहुत कारगर सिद्ध हुई है क्योंकि इस तकनीक की सहायता से यह जाना जा सकता है कि ब्रेन के कौन से हिस्से में रक्त एवम ऑक्सीजन का फ्लो सही तरीके से हो रहा है और किन में नहीं हो रहा है।
किसी भी मनोवैज्ञानिक समस्या के निदान के लिए यह आवश्यक है उसके होने के मूल कारणों को समझा जाए। केवल सिंप्टोम्स के आधार पर ट्रीटमेंट देने से मनोवैज्ञानिक समस्या को ठीक करने में दिक्कत आ सकती है। मनोवैज्ञानिक समस्याओं और कॉग्निटिव डिस्टॉर्शन के बीच एक गहरा संबंध होता है। जिस व्यक्ति के जीवन में कॉग्निटिव डिस्टॉर्शन जितने ज्यादा होते हैं उसे व्यक्ति के जीवन में विभिन्न तरह की मनोवैज्ञानिक समस्याएं उतनी ज्यादा होती हैं। इसीलिए काउंसलिंग साइकोलॉजिस्ट को अपने क्लाइंट के कॉग्निटिव डिस्टॉर्शन पहचान आना चाहिए।
प्रोफेसर ए सी जोशी, चेयर प्रोफेसर एनटीपीसी ने अपने अनुभव को साझा करते हुए कहा कि हमारे दौर में मानसिक बीमारी को कलंक के तौर पर देखा जाता था। बरेली और आगरा जैसे शहर मानसिक समस्याओं के निदान और उपचार के लिए मशहूर थे। मानसिक समस्याएं होने पर होने पर लोगों द्वारा व्यक्ति को सीधे ही पागल घोषित कर दिया जाता था और उसे सीधे बरेली और आगरा जाने की सलाह दी जाती थी। पर अब समय बदल रहा है लोग मानसिक समस्याओं के प्रति गंभीर हो रहे हैं और मानसिक समस्याओं के निदान और उपचार के लिए मनोवैज्ञानिक परामर्श ले रहे हैं। उन्होंने कहा कि दून विश्वविद्यालय में स्थापित सेंटर फॉर पब्लिक पॉलिसी जल्द ही मनोवैज्ञानिक समस्याओं से संबंधित जागरूकता को बढ़ाने के लिए राष्ट्रीय स्तर की कॉन्फ्रेंस, सेमिनार और वर्कशॉप का आयोजन करेगा और युवाओं को उसमें होने के लिए प्रोत्साहित करेगा।
चेतना पोखरियाल, डीन, स्कूल ऑफ़ लैंग्वेज ने अपने उद्बोधन में कहा कि साइकोलॉजिकल इंटरवेंशन बहुत प्रभावशाली होते हैं. दून विश्वविद्यालय की काउंसलिंग सेल के द्वारा किए गए प्रयासों को मैंने स्वयं अपने विद्यार्थियों के जीवन में सार्थक परिवर्तन होते हुए देखा है. आज के दौर में माता-पिता को भी गाइडेंस और काउंसलिंग की जरूरत है जबकि माता पिता को लगता है केवल बच्चों को ही काउंसलिंग की जरूरत होती है. माता पिता और बच्चों के बीच में कम्युनिकेशन का गैप बड़ा है जिसके कारण बच्चों में साइकोलॉजिकल प्रॉब्लम्स बढ़ गई है.
इस कार्यक्रम में अजय बिष्ट, डॉ राकेश भट्ट, दीपक कुमार, अंजलि सुयाल, विनायक सिंह, संध्या भंडारी, संजना सेठी, राजदीप आदि ने भी प्रतिभा किया।
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