सरकारी जांच को आंच नहीं कलमकारों को थाने से बुलावा

न्याय की लाठी पिक एंड चूज नही करती मेरे सरकार!

अविकल थपलियाल

उत्तराखंड के आकाश में बदली भी छायी है और उमस भी है। इस उमस में आयी एक खबर ने कसक भी बढ़ा दी। दरअसल, मुख्यमन्त्री ने खुफिया विभाग को सोशल मीडिया पर नजर रखने की विशेष सलाह दी है। पूरे विश्व में सोशल मीडिया जनता की आवाज बन चुका है। ये इसलिये भी तेजी से हो रहा है कि मुख्यधारा का मीडिया तमाम तरह के आरोपों में घिरता जा रहा है।

इस खबर के बाद मुझे लगभग दो महीने पूर्व घटित हुए दो बहुचर्चित व अवाक कर देने वाले शासकीय हादसे याद हो आये। सचिवालय से जुड़े इन प्रकरणों में शासकीय गलती ने सभी रिकॉर्ड तोड़ दिए जो किसी भी कीमत पर अक्षम्य नही कहे जा सकते। इन दोनों मामलों में शासन स्तर पर चल रही जांच किस मोड़ तक पहुंची, यह किसी को नही पता। कौन दोषी, किसे मिले सजा। यह सब भी अंधेरे में है।

दरअसल, मुख्यमन्त्री जी को अपनी खुफिया टीम का बेहतर इस्तेमाल उन अधिकारियों की खुफियागिरी में करना चाहिए जो दिन रात माल बनाने में लगे हैं। जांच ऐसे लोगों की होनी चाहिए जो सत्ता की हनक में जमीनों के कब्जे समेत वन टू का फोर और फोर ,टू का वन कर रहे हैं।

पहला मसला, उत्तराखंड शासन द्वारा उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के स्वर्गीय पिता के श्राद्ध कर्म के लिए निर्दलीय विधायक अमनमणि का पास जारी करना। पास का लिखित आदेश करने वाले अपर मुख्य सचिव ओमप्रकाश व अन्य अधिकारियों पर महामारी एक्ट व आपदा एक्ट के उल्लंघन का गंभीर मामला बनता है। योगी जी के स्वर्गीय पिता के कर्म कांड से जुड़े इस अजब गजब मुद्दे पर उच्च न्यायालय ने भी पूछा है कि किन परिस्थितियों में अमनमणि को कड़े लॉकडौन में उत्तराखंड के बद्रीनाथ और केदारनाथ का पास जारी किया गया। लेकिन अभी तक इस हाई प्रोफाइल मामले में अपर मुख्य सचिव ओमप्रकाश यह नही बता पाए है कि वो पास किसके कहने पर जारी किया गया। नियमो का खुला उल्लंघन कर पास कैसे जारी हो गए। इस प्रकरण को दो महीने से अधिक हो गए लेकिन शासन की जांच का अता पता नहीं। अलबत्ता, अपने उच्चाधिकारी ओमप्रकाश के लिखित आदेश के बाद पास जारी करने वाले पीसीएस अधिकारी का रुद्रप्रयाग तबादला कर दिया गया। यहां यह भी बता दें कि अपर मुख्य सचिव ओमप्रकाश मुख्यमन्त्री त्रिवेंद्र जी के विश्वस्त और मुख्य सचिव की कुर्सी के प्रबलतम दावेदार हैं। इस प्रकरण में किसी भी जिम्मेदार अधिकारी पर मुकदमा नहीं।

दूसरा मसला, उत्तराखंड के करोड़ों की छात्रवृत्ति के मामले में निलंबित अधिकारी गीता राम नौटियाल की शासन स्तर पर चुपचाप बहाली। इसकी जांच मुख्य सचिव स्तर पर हो रही है। बहाली का यह मसला उठने के बाद पता चला कि मुख्यमन्त्री त्रिवेंद्र जी और समाज कल्याण मंत्री यशपाल आर्य को तो पता ही नही था। बहाली का शोर मचने के बाद अगले दिन गीता राम नौटियाल को फिर निलंबित कर दिया गया। करोड़ों रुपये के बहुचर्चित छात्रवृत्ति घोटाले के आरोपी गीता राम नौटियाल की बहाली करने के पीछे कौन-कौन अधिकारी थे। इस रहस्य का खुलासा अभी तक नही हुआ है। जबकि जांच मुख्य सचिव स्तर से हो रही है।

लेकिन, कुछ वास्तविक पत्रकारों की कलम से निकले शब्दों पर तत्काल थाने में मामला दर्ज हो रहा है। सुना है कि वास्तविक पत्रकार गुणानंद जखमोला और शूरवीर भंडारी को देहरादून थाने में तलब किया गया है। इसमें कोई दोराय नही कि ये दोनों पत्रकार दलाल व ब्लैकमेलर कैटेगरी में कतई नही है।

चैतू, न्याय की लाठी तो समान रूप से पड़नी चाहिए। कुछ बहुचर्चित माल खींचू अधिकारियों की खुफियागिरी करवाइए सरकार। ऐसे सफेदपोशों पर मामला दर्ज करवाइए। माल भी निकलेगा और कलंक भी हटेगा। न्याय की लाठी पिक एंड चूज नही करती मेरे सरकार! बोल चैतू, जय उत्तराखंड, जय बद्रीविशाल।

 

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4 thoughts on “सरकारी जांच को आंच नहीं कलमकारों को थाने से बुलावा

  1. Excellent Avikal ji (bhai)
    अक्सर लोग कहते हैं शेर जंगल में रहता है मगर कभी-कभी देखा गया है कि कुछ शेर शहर में भी रहते हैं चंद लाइने आपके लिए

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