आंखों देखी-चारधाम यात्रा मार्ग में बहुत कुछ किया जाना बाकी


भोजन व्यवस्था मुकम्मल नही, बाजारों में सन्नाटा

यात्रा खोलने से पहले होमवर्क पूरा नही

स्थानीय लोगों को तीर्थयात्रियों से कोरोना का विशेष डर, महिला मंगल दल विरोध में

देवस्थानम प्रबन्धन बोर्ड के विरोध में स्थानीय पुजारी

www.badrinath-kedarnath.gov. in से बुक करा सकते हैं e pass

कोरोना के डर से उबरते हुए उत्तराखंड सरकार ने सिर्फ उत्तराखंड के निवासियों को ही 1 जुलाई से चार धाम के दर्शन की इजाजत दी है। प्रशासन की ओर से जारी e pass मिलने के बाद ही दर्शन किये जा सकते हैं।  हाल ही में ऋषिकेश निवासी विनय उनियाल ने श्री बद्रीनाथ जी व श्री गंगोत्री जी की यात्रा की। यात्रा मार्ग में उन्होंने क्या कुछ देखा। आप भी पढ़िये।

उत्तराखंड सरकार द्वारा अनलॉक दो में एक जुलाई से उत्तराखंड वासियों के लिए यात्रा दर्शन की अनुमति दी गयी । किंतु सच्चाई जमीनी हकीकत से मीलों दूर है। महत्त्वपूर्ण बात तो यह कि उत्तराखंड पर्यटन का देश मे तभी अच्छा सन्देश जाएगा,जब कि वहां यात्रियों को पूर्ण सुविधाएं उपलब्ध हो।

गंगोत्री मार्ग में भटवाड़ी से आगे चाय ढाबा नही

मैं श्री गंगोत्री और श्री बद्रीनाथ जी की यात्रा पर गया।जाते हुए भटवाड़ी से आगे भुक्की, गंगनानी, हर्षिल, धराली,भैरोंघाटी एवं गंगोत्री में आमजन के लिए चाय की दुकान या ढाबा तक नही खुला है। मतलब कि आप भगवान भरोसे ही रह सकते है। हर्षिल और गंगोत्री में जरूर GMVN अपनी सुविधाएं दे रहा है लेकिन शायद संसाधन सीमित है। क्योंकि स्थानीय स्तर पर सामान उपलब्ध नही है।

गंगोत्री मन्दिर

इतना जरूर है कि आपकी इच्छा से भले ही कुछ न मिले पर प्राण रक्षा के लिए कुछ न कुछ उपलब्ध हो सकता है बशर्ते कि आप वहां तक पहुंच सकें, क्योंकि हर्षिल का गेस्ट हाउस मुख्य मार्ग से हटकर है और गंगोत्री में यह सूर्यकुंड के समीप वाला ही चालू है जबकि मंदिर के समीप के गेस्ट हाउस का अधिकांश स्टाफ अभी भी उत्तरकाशी के क्वारन्टीन सेंटर में सेवाएं दे रहा है।

गंगोत्री मन्दिर के चैनल पर ताला

मतलब यह है कि केवल सरकारी गेस्ट हाऊस के भरोसे यात्रा चालू कर दी गयी है जबकि होना यह चाहिए था कि आमजन की सहमति के बाद स्थानीय लोगो को कॉन्फिडेंस में रखकर कोई निर्णय लिए होते।एक बात और महत्त्वपूर्ण है कि श्री गंगोत्री धाम में देवस्थानम बोर्ड के विरोध में वहां के पुजारी हड़ताल में है जो कि मन्दिर के बाहर गेट पर दरी बिछाकर विरोध कर रहे हैं। मुख्य द्वार के बाहर चैनल गेट को उन्होंने बन्द किया हुआ है औऱ किसी प्रकार की पूजा वह नही कर रहे हैं।आपको उस चैनल गेट के बाहर से ही दर्शन करने है।

दोपहर 2 बजे बाजार बंद

श्री बद्रीनाथ जी के मार्ग में भी लगभग यही स्थिति थी,अधिकांश बाजार स्वयं ही 4 बजे से पूर्व बन्द हो रहे हैं, क्योंकि समीपवर्ती गांव के लोग सुबह-सुबह खरीदारी कर लेते हैं। दोपहर 2 बजे तक अगस्तमुनि बाजार आधा बन्द हो गया था।हम लोग साथ मे बिस्कुट और मैगी लेकर गए थे इसलिए किसी भी खुले रेस्टोरेंट में और कुछ मिले या न मिले पर मैगी जरूर मिल एवं बन जाती है।

पांडुकेश्वर गेस्ट हाउस में भोजन नहीं

एक रात लामबगड़ में रास्ता बंद होने के कारण  GMVN के पांडुकेश्वर में रुकना पड़ा,साफ सुथरा और नया प्री फेब्रिकेटेड यह गेस्ट हाउस था किंतु भोजन की उपलब्धता नही थी,नजदीक एक मात्र रेस्तरां खुला था जो कि महाबीर नाम के स्थानीय युवा का था,उसी एक मात्र रेस्तरां में लगभग फंसे हुए हर यात्री के लिए भोजन की व्यवस्था थी।

व्यवहार कुशल महाबीर के पास कोई सहयोगी नही था।स्थानीय प्रधान द्वारा उसे रेस्तरां नही खोलने के लिए कहा गया किन्तु शायद आजीविका की मजबूरी ही थी कि वह विरोध के बाबजूद लोगो को भोजन करवा रहा था,वह भी मात्र 100 में भरपेट।एक दाल एक सब्जी रोटी चावल सलाद और चटनी उसमें शामिल थी,क्योंकि बर्तन धोने वाला कोई नही था इसलिए डिस्पोजल प्लेट का ही सहारा लिया हुआ था।

कोरोना से बचने के लिए बद्रीनाथ मन्दिर परिसर की रेलिंग को कपड़े से ढका गया है

लूट खसोट नहीं

एक अच्छी बात यह रही कि कोई भी रेस्तरां स्वामी इस समय एक दम जायज पैसे ही ले रहा है यही हम उत्तराखंड के निवासियों का मूल चरित्र है। श्री बद्रीनाथ जी मे प्रशासन द्वारा टैक्सी स्टैंड में जरूर एक कैंटीन की अनुमति स्थानीय युवकों को दी गयी थी इसके अलावा GMVN में ही भोजन उपलब्ध था।

महिला मंगल दल ने पांडुकेश्वर बन्द कराया

वापसी में जब हम लोग पांडुकेश्वर पहुंचे तो वहां पर महिला मंगल दल की महिलाओं ने विरोध कर बाजार बंद करवा दिया क्योंकि उन्हें शंका है कि कंही यात्रियों से कोरोना न फैल जाए।महाबीर जिसने हमे एक दिन पूर्व ही रात्रि में भोजन परोसा था,वह ही उन लोगो की आंखों में खटक रहा था क्योंकि वह ही रेस्तरां चला रहा था।यह मात्र एक बानगी नही बल्कि सच्चाई है कि गांव के लोग शहरों से ज्यादा कोरोना के प्रति गम्भीर है और वह किसी प्रकार का कोई जोखिम नही लेना चाहते।

केंद्र सरकार के जो निर्देश  रेस्तरां के सम्बंध में जारी किए गए हैं उनका पालन राजधानी के रेस्तरां में ही होना मुश्किल है तो सुदूरवर्ती क्षेत्रो में नियमों के पालन की अपेक्षा मुश्किल है।एक विशेष बात यह कि गांव में अधिकांश लोग मास्क का प्रयोग करते नजर आए।

जमीनी हकीकत देखता प्रशासन

सरकार को यात्रा खोलने से पहले उस जिले के प्रभारी मंत्री को वहां भेजकर व्यवस्था की जमीनी हकीकत को देखने के बाद ही यात्रा का संचालन किया जाता तो शायद परिणाम कुछ और होते। किन्तु कतिपय विधायको की सलाह और वातानुकूलित कमरों से जब निर्णय लिए जाते हैं तो परिणाम कुछ अच्छे नही रहते।

स्व.गोरख पांडेय की यह पंक्तियां अचानक याद आ गयी-
‘राजा बोला रात है,
रानी बोली रात है,
मंत्री बोला रात है,
संतरी बोला रात है।
यह सुबह सुबह की बात है!”

विनय उनियाल, ऋषिकेश निवासी

मेरे विचार से यात्रा का संचालन का उद्देश्य तभी पूरा होगा जब स्थानीय व्यापारियों को भी उसका लाभ मिले,अन्यथा वह बेमानी ही है।

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