कहीं पहाड़ी धुंध में खो गया पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत के सपनों का राज्यगीत

…और कैसे तिवारी जी ने नरसिम्हा राव की मौजूदगी में अलग राज्य के मुद्दे की हवा निकाली

हरदा ने उत्तराखंडियत किताब में अपनी जिंदगी से जुड़े तमाम प्रसंगों को बखूबी किया कैद

अविकल थपलियाल

उत्तराखण्ड के पूर्व सीएम हरीश रावत आजकल अपनी उत्तराखंडियत को लेकर एक बार फिर सुर्खियों में है। हाल ही में उनकी किताब ‘मेरा जीवन लक्ष्य उत्तराखंडियत’ का जगद्गुरु शंकराचार्य राजराजेश्वरम की मौजूदगी में विमोचन हुआ।

हरीश रावत ने किताब में कई छोटी बड़ी घटनाओं के अलावा राज्य गठन के 14 साल बाद तैयार किये गए राज्य गीत के खो जाने के दर्द को खूब उकेरा।

और लिखा..मैंने इन्हीं कुछ बिखरी-बिखरी सी सोचों को आगे बढ़ाने का प्रयास किया। इन प्रयासों को एक सामूहिक गीत के रूप में ढालने के लिए राज्य गीत तैयार करने के लिए कमेटी बनाई। मैंने सउद्देश्य इस कमेटी से राजनीतिक व्यक्तित्वों को दूर रखा। मैं नहीं चाहता था राज्य गीत पर राजनीति की छाया पहे। कमेटी ने सर्व सम्मति से राज्य गीत चयनित किया।

मैं गीत को लेकर मंत्रिमंडल में गया, गीत सबको अच्छा लगा, मगर थोड़ा लंबा हो गया था। पुनः गीत के रचयिता हेमंत विष्ट जी और मेगी जी को, गीत को छोटा करने को कहा गया। गीत को स्वर एवं संगीत देने के लिए मेरा मन पहले से बना हुआ था। सबकी राय से यह कार्य श्री नरेंद्र सिंह नेगी जी को सानुरोध सौंपा गया। श्री नरेंद्र सिंह नेगी जी ने गीत के लंबे संस्करण और लघु संस्करण दोनों को स्वर और संगीत दिया। उन्होंने विभाग से अपने श्रम का कोई मूल्य नहीं लिया।

मैंने रात के एकांत में कई बार दोनों संस्करणों को पढ़ा और सुना। आलोचक, समालोचक के भाव से भी पढ़ा और दुहराया। बहुत कोशिश की कमियां ढूंढने की। कुछ इस क्षेत्र के लोगों से भी परामर्श लिया। सबकी राय थी यह भावनाधीन लिखा और गाया हुआ गीत है, यदि छेड़-छाड़ करोगे, तो गीत की स्वाभाविकता और गति कुप्रभावित हो जाएगी। मैंने कई बार राष्ट्रगीत फिर राज्य गीत का कैसेट बजाकर सुना। मुझे लगा मेरा मन जैसा चाहता था यह वैसा ही गीत है। गीत में कुछ शब्द गढ़वाली-कुमाऊंनी भाषा के भी प्रयुक्त किए गए हैं।

पूर्व सीएम हरदा आगे लिखते हैं…मैंने अंतत: पुन: मंत्रिमंडल के सम्मुख जाने से पहले कुछ विधायकों और मंत्रियों के साथ भी गीत को सुना। पर्याप्त मंथन के बाद मंत्रिमंडल ने राज्य गीत को अपनी स्वीकृति प्रदान कर दी।

सर्वप्रथम यह गीत पंद्रह अगस्त को गाया गया फिर गैरसैंण विधानसभा में समवेत स्वर में गाया गया। अब मुझे मालूम नहीं है कि सरकार इसे सम्मान दे रही है या नहीं। मैंने निश्चय किया है कि यह गीत जन गीत के तौर पर उत्तराखंड की पहचान का हिस्सा बने। सामूहिक प्रेरणा का स्रोत बने..

कुल जमा 654 पन्ने की किताब का मूल्य 200 रुपए है। हरीश रावत ने अपने बचपन, राजनीतिक सामाजिक क्षेत्र से जुड़ी लगभग 90 घटनाओं/मुद्दों पर कलम चलाई। पाखी पब्लिकेशन से प्रकाशित पुस्तकों में पूर्व सीएम हरीश रावत ने नेहरू, जीबी पंत, इंदिरा, राजीव, सोनिया, संजय, राहुल ,प्रियंका गांधी, केसी पंत, हेमवती नन्दन बहुगुणा, नारायण दत्त तिवारी आदि शख्सियतों से जुड़ी राजनीतिक प्रसंगों का जिक्र किया।

यह भी बताया कि अलग राज्य के लिए बुलाई गई तत्कालीन पीएम नरसिम्हा राव की बैठक में तिवारी  जी ने मौजूद लोगों को याद दिलाया कि अलग उत्तराखण्ड राज्य पर गोविन्द बल्लभ ने कहा था कि   अलग राज्य उनकी लाश पर बनेगा। और मैं भी इस सोच का समर्थन करता हूँ..

तिवारी जी के इस कथन के बाद बैठक का जायका ही बिगड़ गया। और तत्कालीन पीएम राव भी तिवारी जी के अलग राज्य के विरोधी विचार को समझते हुए चुप रह गए।

हरीश रावत ने तिवारी के साथ अपने सम्बंधों के बनने और बिगड़ने पर भी रोशनी डाली है।  प्रदेश में लगे राष्ट्रपति शासन की टीस भी बखूबी झलकी। राजनीति, नौकरशाही के स्टाइल व अपनी बेबसी के अलावा ककड़ी का रायता और रायता फैलाने वालों पर अपने संस्मरण भी लिख डाले।

1967 लखनऊ विवि से राजनीति की शुरुआत, ब्लाक प्रमुख से सीएम बनने तक के 55 साल के राजनीतिक सफर ,गांव से जुड़ी यादें, शिक्षा समेत अन्य कई प्रसंग रोचक अंदाज में लिखे गए।

राज्यगीत,काफल,जल,जंगल जमीन, शिल्पकार,गमछा, राजनीतिक खिचड़ी,म्यार गौं, कोदा,मंडुआ, झंगोरा, फूलदेई, गैरसैंण समेत कई बिंदुओं को बखूबी छुआ।

अमर उजाला के सलाहकार संपादक विनोद अग्निहोत्री ने ‘एक हरीश पर कथा अनंता’ के जरिये पुस्तक की सामग्री का बखूबी खाका खींचा। अलबत्ता, कुछ जगह प्रूफ की गलतियां कचोटती है।

राज्य गीत-  छोटा संस्करण-1

उत्तराखंड देवभूमि, मातृभूमि, शत शत वंदन अभिनंदन

दर्शन, संस्कृति, धर्म, साधना, श्रम, रंजित तेरा कण-कण अभिनंदन अभिनंदन …. गंगा यमुना, तेरा आंचल, दिव्य हिमालय, तेरा शीष सब धर्मों की छाया तुझ पर, चार धाम देते आशीष श्री बद्री केदारनाथ हैं, बागनाथ ज्यू, जागनाथ हैं, कलियर हेम कुंड अति पावन,

अभिनंदन- अभिनंदन….

अमर शहीदों की धरती है, धरती वीर जवानों की राज्य मिला जिनके सपनों से, संघर्षो बलिदानों की फुले-फले तेरा यश-वैभव, तुझ पर अर्पित अर्पित है तन-मन मंगल मय हो जन-जीवन,

अभिनंदन- अभिनंदन.. रंगीली घाटी शौकों की या, मडुवा-झुंगरा, भट्ट, अन्न-धन ताल-खाल, बुग्याल ग्लेशियर दून तराई, भावर, षण हांटि, भांटि लगे गुजर है चाहें, फिर लै उछास भरी छ मन अभिनंदन अभिनंदन गौड़ी-भैंस्यून, गुंजदा गोठियार, ऐषण सज्यान हर घर द्वार काम धाण की धुरी बेटी-ब्यारी, कला प्राण छन शिल्पकार वण, पुंगड़ा, सेरा, पदंरों मा, बाटणा, छन दुख-सुख, संग-संग अभिनंदन- अभिनंदन ….. कस्तूरी मृग, ब्रह्म कमल हैं, पयोली, बुरांस, घुघुती, मोनाल ढोल, नगाड़े, दनुवा, हुड़का, रणसिंघा, मुरली सुरताल जागर हारूल, थड़या, झुमैलो, डवाड़, छपेली, पाण्डव नर्तन अभिनंदन-अभिनंदन…. कुंभ, हरेला, बसंत फूलदेई, उतरैणि कौथिग, नंदाजात सुमन, केसरी, जीतू माधो, चंद्र सिंह, वीरों की धात जिबा रानी, तीलू रौतेली, गौरा पर गर्वित जन-जन अभिनंदन- अभिनंदन ….

राज्य गीत, छोटा संस्करण-2

उत्तराखंड देवभूमि, मातृभूमि, शत-शत् वंदन अभिनंदन दर्शन, संस्कृति, धर्म, साधना, श्रम, रंजित तेरा कण-कण अभिनंदन- अभिनंदन..

गंगा यमुना तेरा आंचल, दिव्य हिमालय तेरा शीष सब धर्मों की छाया तुझ पर, चार धाम देते आशीष श्री बद्री केदारनाथ हैं, जागनाथ ज्यू, बागनाथ हैं

कलियर हेम कुंड अति पावन, अभिनंदन- अभिनंदन …

अमर शहीदों की धरती है, धरती वीर जवानों की राज्य मिला जिनके सपनों से, संघर्षों बलिदानों की फुले-फले तेरा यश-वैभव, तुझ पर अर्पित अर्पित है तन-मन मंगल मय हो जन-जीवन, अभिनंदन-अभिनंदन ..

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