नाराज बिशन सिंह चुफाल ने जेपी नड्डा को सुनायी पूरी रामकहानी
त्रिवेंद्र सरकार के कामकाज की रिपोर्ट सौंपी
डेढ़ दर्जन असंतुष्ट विधायकों की दिल्ली में मौजूद होने की खबर
चुफाल समेत अन्य विधायकों के फ्रंट खोलने से भाजपा की सियासत गरमाई
अविकल उत्त्तराखण्ड
देहरादून।
देहरादून में सूप और कॉफी की प्याली से उठती भाप की गर्मी में त्रिवेंद्र सरकार को कोसने वाले भाजपा विधायकों ने बुधवार को दिल्ली में रायता फैला दिया।
बुधवार को करीब डेढ़ दर्जन भाजपा विधायक दिल्ली में थे। और केंद्रीय भाजपा नेतृत्व की टेबल पर त्रिवेंद्र सरकार की 40 महीने के कामकाज की फ़ाइल रख दी गयी। इस बार सेनापति की नयी भूमिका में बिशन सिंह चुफाल नजर आए। अक्सर शांत व सहज ,सरल दिखने वाले चुफाल की एंग्री मैन की ताजी भूमिका राजनीतिक पंडितों को भी हैरत में डाल गयी।
यूँ तो कई भाजपा विधायक केंद्रीय नेतृत्व से सीधे मिलकर अपना दर्द रखना चाहते थे। लेकिन कोरोना के कारण सिर्फ पूर्व अध्यक्ष बिशन सिंह चुफाल को हरी झंडी मिली। चुफाल पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे पी नड्डा से उनके आवासीय कार्यालय में मिले। बाकायदा इस अहम मुलाकात की फ़ोटो भी जारी की गयी।
नड्डा और चुफाल के बीच लगभग 1 घण्टा वन टू वन बात हुई। पुष्ट सूत्रों के अनुसार नाराज विधायकों की मंशा के अनुरूप चुफाल ने नड्डा को साफ कह दिया कि मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत के नेतृत्व में 2022 का चुनाव नही जीत सकते। उन्होंने आम आदमी पार्टी की बढ़ती गतिविधियों के खतरे से भी पार्टी नेतृत्व को सचेत किया।
सूत्रों के मुताबिक चुफाल ने कहा कि अधिकारी मनमर्जी ओर उतरे हुए हैं और विकास कार्य ठप पड़ गए हैं। ऐसे में पार्टी विधायक बेहद निराश हो रखे हैं। पुष्ट सूत्रों के अनुसार पूरी तैयारी से दिल्ली गए चुफाल ने कुछ अहम दस्तावेज भी जे पी नड्डा को सौंपे। कुछ विधायकों पूरन फर्त्याल, चंदन रामदास आदि के मुद्दे भी चर्चा के केंद्र में आये। शारीरिक शोषण में घिरे भाजपा विधायक महेश नेगी व कुंवर प्रणव चैंपियन की वापसी से हुए नफा नुकसान का भी ब्यौरा दिया गया।
नाराज विधायकों के सेनापति बन देहरादून से दिल्ली तक मोर्चा संभाले बिशन सिंह चुफाल पूरी तरह आर पार की लड़ाई के मूड में दिख रहे हैं। गुस्से में दिख रहे विधायक भी नेतृत्व परिवर्तन की खुली बात कहने लगे हैं।
इससे पूर्व देहरादून में लगातार कई दिन तक नाराज विधायक बैठकों में मशगूल रहे थे। सीएम त्रिवेंद्र के साढ़े तीन साल में यह पहला मौका है जब विधायकों ने नेतृत्व परिवर्तन का राग अलापा।
इससे पहले भाजपा के शासन में नित्यानंद स्वामी, बी सी खंडूड़ी, रमेश पोखरियाल को विधायकों के विरोध के कारण असमय कुर्सी छोड़नी पड़ी थी। कांग्रेस में भी विजय बहुगुणा व हरीश रावत भी अंदरूनी जंग में मुख्यमंत्री की कुर्सी छोड़ने पर विवश हुए थे।
उत्त्तराखण्ड के असंतुष्ट विधायको की मांग पर मोदी-शाह किस करवट बैठते हैं, इसी पर मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र का भविष्य टिका है। बहरहाल, भाजपा विधायकों की दिल्ली दौड़ से उत्त्तराखण्ड में राजनीति की उमस कई गुना अवश्य बढ़ गयी। कांग्रेस व आप पार्टी भी करीब से पूरे घटनाक्रम पर नजर रखे हुए हैं। प्रिंट, चैनल्स व सोशल मीडिया में भाजपा की कलह से जुड़ी खबरों व बहस का दौर भी शुरू हो चुका है।
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