हर घण्टे तीन मौत और सीएम तीरथ का असली इम्तहान शुरू होता है अब…

शपथ लेने के 45 दिन बाद भी सीएम तीरथ रावत अपने कार्यालय में राजनीतिक, विषय विशेषज्ञ व बेहतर विश्वस्त,अनुभवी व विजनरी सहयोगियों की नियुक्ति भी नहीं कर पाए। ऐसी टीम ही किसी भी आपदा की घड़ी में संकटमोचक का काम करती है।

शनिवार 24 अप्रैल को देहरादून जिले में सर्वाधिक 48,नैनीताल में 19,यूएस नगर में 6,हरिद्वार 5 व पौड़ी जिले में 3 मौतें हुई।

24 अप्रैल 2021-उत्त्तराखण्ड में कुल 2102 मौतें हो चुकी है। अल्मोड़ा 29,बागेश्वर17, चमोली 21, चंपावत 11, देहरादून 1194, हरिद्वार 214,नैनीताल309, पौड़ी 71, पिथौरागढ़ 48, रुद्रप्रयाग 11,टिहरी20,यूएस नगर 139, उत्तरकाशी 18 मौतें रेकॉर्ड की गई।

सर्वदलीय बैठक बुला राजनीतिक सूझ बूझ का परिचय दिया और विपक्ष का सहयोग मांगा

कोरोना संक्रमित मुख्य सचिव ओमप्रकाश आइसोलेशन में। ठीक संकट की घड़ी में शासन के मुखिया व अन्य अधिकारियों के बीमार होने से भी पड़ा विपरीत असर

समाचार विश्लेषण/ अविकल थपलियाल

देहरादून। उत्त्तराखण्ड में  शनिवार को कुल 81 मौत।  हर एक घण्टे में तीन से अधिक मौत।  सभी अनुमानों को झुठलाते हुए सीएम बने तीरथ सिंह रावत एक नयी गंभीर चुनौती से रूबरू है। अपने 45 दिन के कार्यकाल में पहले कुम्भ और अब कोरोना महामारी से दो दो हाथ करना उनके राजनीतिक जीवन के सबसे बड़े चैलेंज के तौर पर देखा जा रहा है।

शनिवार को उत्त्तराखण्ड में हुई मौतों के आंकड़े ने सत्ता व आमजन को हिला कर रख दिया। 81 मौत। हर एक घण्टे में तीन मौतों ने कोरोना कहर के अलावा स्वास्थ्य सुविधाओं पर भी नये सिरे से सोचने को मजबूर कर दिया । शुरुआत से ही बेहद लचर हेल्थ सिस्टम से जूझ रहे उत्त्तराखण्ड के 13 जिलों में मुकम्म्मल इंतजाम करना बेहद ही कठिन काम है। कोरोना के इसी मोड़ पर,सीएम तीरथ रावत की असली प्रशासनिक व राजनीतिक दक्षता का इम्तहान भी होना है।

यूँ तो राज्य गठन के समय शिक्षा मंत्री बनने के बाद तीरथ सिंह रावत को पहली बार प्रशासनिक दक्षता दिखाने का मौका मिला था। लेकिन नये राज्य का ढांचा बनाने व अंतर्कलह में उलझी स्वामी की अंतरिम सरकार के 13 महीनों में जनता में कोई पॉजिटिव संदेश नहीं जा पाया। नतीजतन, उत्त्तराखण्ड को राज्य का दर्जा देने वाली भाजपा के अधिकांश मंत्री 2002 के पहले चुनाव में हार गए। इनमें शिक्षा मंत्री तीरथ सिंह रावत का नाम भी शुमार था।

यही नहीं, तीरथ रावत 2007 का चुनाव भी हारे। हालांकि,चुनाव हारने की अवधि 2002 से 2012 के बीच में तीरथ रावत को भाजपा संगठन में अहम जिम्मेदारी भी मिली। 2012 का चुनाव जीते। 2017 में टिकट नहीं मिला।  कांग्रेस से आये सतपाल महाराज को तवज्जो मिली। लेकिन इसी बीच भाजपा नेतृत्व ने तीरथ को राष्ट्रीय सचिव बनाने के अलावा हिमाचल के प्रभारी बना संतुष्ट करने की कोशिश की। बाद में 2019 के लोकसभा चुनाव में पार्टी ने पौड़ी लोकसभा से चुनाव लड़वाया। तीरथ सांसद बने और अब मार्च  2021में  मुख्यमंत्री बने भो 45 दिन हो गए।

इस बीच, कोरोना की दूसरी लहर में स्वंय के भी आइसोलेशन में चले जाने (21 मार्च से 5 अप्रैल)  अपने चर्चित बयानों व कुंभ के आयोजन (जारी) के जाल से थोड़ा बाहर निकल कुछ विकास कार्यों को अमलीजामा पहनाते तभी कोरोना से रोज बढ़ती मौतों और हेल्थ सुविधाओं को लेकर उठ रहे सवालों ने सरकार की नींद उड़ा दी।

साथ ही नैनीताल हाईकोर्ट व राज्यपाल बेबी रानी मौर्य की कोरोना व्यवस्था से जुड़ी सतत चिंताएं भी नये सीएम की प्रशासनिक व राजनीतिक कौशल के लिए कड़े इम्तहान की घड़ी बनकर आयी है।

मौजूदा समय में प्रदेश में 13 जिलों हॉस्पिटल के ऑक्सीजन बेड,ICU, लंबित हजारों कोरोना सैंपल, निजी लैब की मनमानी, दवा की कालाबाजारी, ऑक्सीजन सिलिंडर व  कोविड किट के लिए मरीजों का भटकना समेत कई अन्य कमियों से त्राहिमाम मचा हुआ है। चीन सीमा पर टूटे ग्लेशियर ने भी मौतों के ग्राफ को बढ़ा एक नई मुसीबत खड़ी कर दी।

चूंकि, बीते महीनों में अफसरशाही को कोरोना से जंग के लिए जो तैयारी की जानी थी उस ओर ध्यान ही नही दिया गया। अब नये सीएम के आते ही कोरोना सुनामी तहस नहस करने में जुट गई है। पर्वतीय जिलों के हेल्थ सिस्टम की हालत किसी से छुपी नहीं हैं।

इधर,शपथ लेने के 45 दिन बाद भी सीएम तीरथ रावत अपने कार्यालय में राजनीतिक, विषय विशेषज्ञ व बेहतर विश्वस्त,अनुभवी व विजनरी सहयोगियों की नियुक्ति भी नहीं कर पाए। अगर तीरथ रावत शपथ ग्रहण के कुछ दिन के अंदर अपनी एक भरोसेमंद कोर टीम जुटा लेते तो सम्भवतः आज कोरोना आपदा में वो टीम पहाड़ की विषम स्वास्थ्य सुविधाओं  का एक कंक्रीट प्लान तैयार कर चुकी होती। ऐसी टीम ही किसी भी आपदा की घड़ी में संकटमोचक का काम करती है।

फिलवक्त, सीएम मौजूदा चुनींदा नौकरशाहों पर ही विश्वास कर चल रहे है। पिछले साल फील्ड में उतरने से कतरा चुके यही नौकरशाह इस बार भी कमान संभाले हुए हैं। कोरोना स्टेट प्लान पर भी कोई ठोस कार्ययोजना धरातल पर नजर नही आ रही।  सिर तक पानी चढ़ने के बाद धड़ाधड़ आदेश हो रहे हैं। लोगों की सुविधाओं के लिए दिए गए अधिकतर नंबर उठ ही नही रहे है। मरीजों की लाइन लंबी होती जा रही है।

सामान्य दुकानें 2 बजे बन्द करने और शराब की दुकान 7 बजे तक खोलने के निर्णय पर पहले दिन से ही उंगली उठ रही थी। पिछले साल भी इन्हीं अधिकारियों ने  शराब की दुकान को आवश्यक सेवाओं में शामिल करते हुए लॉकडौन के दिन भी खुलवा कर त्रिवेंद्र सरकार की जमकर किरकिरी करवाई थी। इस बार भी ऐसा किया। लेकिन भला हो शनिवार की सर्वदलीय बैठक का जिसमें शराब की दुकान का मुद्दा उठा और 2बजे तक ही खोलने का नया आदेश करना पड़ा। सर्वदलीय बैठक बुलाकर सीएम तीरथ ने इस राष्ट्रीय संकट में राजनीतिक सूझबूझ का परिचय अवश्य दिया।

विशेषज्ञों के दूसरी खतरनाक लहर की चेतावनी के  बावजूद बीते दिनों मिले पर्याप्त समय में मशीनरी भविष्य की कार्ययोजना तैयार नही पायी। अब गले तक पानी चढ़ने के बाद कहीं 1000 बेड तो कहीं 100, 200 आदि बेड के अस्थायी हॉस्पिटल बनाने की घोषणा हो रही है। नरेन्द्रनगर कोविड सेंटर से भागे 20 कोरोना मरीजों के मामले से एक बार फिर स्वास्थ्य सुविधाओं की पोल भी खुली।

बहरहाल, उत्त्तराखण्ड दहशत में है। फ्रंट लाइन वर्कर भी गहरे खतरे में है। सीएम तीरथ बैठकों व निरीक्षण में  उलझे हुए हैं। कोरोना लहर ने विकास योजनाओं की मोनीटरनिंग को भी पीछे धकेल दिया है। अगर नये सीएम इस बड़े संकट में विकास कार्यों के साथ व कोरोना आपदा का मुकाबला करते हुए विभिन्न मोर्चे पर सही मैनेजमेंट कर गए तो समझो हो गए इम्तहान में पास ….क्यूं बल्ल चैतू..

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