पड़ताल- विदेश से कोरोना वैक्सीन आने में लग सकते हैं 100 DAYS!

राज्य सरकार ने शुरू की ग्लोबल टेंडर की प्रक्रिया

ग्लोबल टेंडर की प्रक्रिया में लगता है काफी समय। अंतरराष्ट्रीय नियम का करना होगा पूरा पालन।

अंतरराष्ट्रीय स्तर के बजाय राष्ट्रीय स्तर पर ही ग्लोबल टेंडर होते तो एक ही रेट पर प्रदेशों को मिलती वैक्सीन। ऑक्सीजन supply की तरह transportation के लिए मिलता सुगम कॉरिडोर।

अविकल उत्त्तराखण्ड/पड़ताल

देहरादून। अगर कोरोना वैक्सीन के ग्लोबल टेंडर से जुड़ी प्रक्रिया राइट टाइम रही और सब कुछ ठीक ठाक रहा तो विदेश से वैक्सीन आने में लगभग 70 से 100 दिन तो लग ही जायेंगे। उम्मीद है कि तीरथ सरकार जुलाई माह तक ही विदेश से टीका आयात कर पायेगी।  ग्लोबल टेंडर से जुड़े जटिल अंर्तराष्ट्रीय नियम कानून की बाधाएं पार करने वाली कंपनी ही उत्त्तराखण्ड को वैक्सीन सप्लाई कर पायेगी।

मौजूदा समय में कोरोना की वजह से अंतरराष्ट्रीय परिवहन( international  Transportation) पर लगे प्रतिबंध से भी वैक्सीन आयात (imports) रोड़े लगने की भी आशंका बनी हुई है ।

ग्लोबल टेंडर करना एक अत्यंत ही विशिष्ट प्रकार की प्रोक्योरमेंट प्रक्रिया है क्योंकि इसमें विश्व की सभी संबंधित कंपनियों को भाग लेने का अवसर प्रदान किया जाना एक  महत्वपूर्ण अंग है।
इसके लिए यदि विश्व बैंक की जो प्रोक्योरमेंट प्रक्रिया है उसका अनुसरण किया जाए तो स्पष्ट होगा कि यह प्रक्रिया समय के अनुसार काफी लंबी होती है और इसमे समय लगना स्वाभाविक है। क्योंकि  निविदा दाता को एक निश्चित अवधि का समय दिया जाना आवश्यक होता है। यदि इस प्रक्रिया को विश्व बैंक की निर्धारित गाइडलाइंस के अनुसार किया जाए तो इसमें कम से कम 2 से 3 माह का समय लगना स्वाभाविक है । कोरोना जैसी महामारी के समय इस प्रक्रिया में दवाओं का  प्रोक्योरमेंट काफी समय लेगा ।

राष्ट्रीय स्तर पर ग्लोबल टेंडर होने से राज्यों को होती सुविधा

इस कार्य में यदि राष्ट्रीय स्तर पर ग्लोबल टेंडर किया जाता तो प्रतिस्पर्धा अधिक होती क्योंकि तब मात्रा समेकित रूप से काफी अधिक होती।
उस दशा मे फिर राज्य सरकारों को इस राष्ट्रीय स्तर पर किए गए ग्लोबल टेंडर के आधार पर दवाओं की आपूर्ति लेने के लिए कहा जा सकता है। भुगतान राज्य सरकारें ही करेगी। यदि विभिन्न राज्य सरकारें अलग-अलग टेंडर करेंगे तो मांगी गई  दवाओं की मात्रा के अनुसार दरें भी भिन्न भिन्न होगी और  यह भी संभव है की मात्रा की कमी को देखते हुए कुछ फर्म प्रतिस्पर्धा में भाग ही न ले ।

ग्लोबल टेंडर के लिए अनुभवी अधिकारियों की जरूरत

दूसरा, इस ग्लोबल टेंडर के लिए ऐसे अनुभवी अधिकारियों की आवश्यकता है जिन्होंने ग्लोबल टेंडर करने का पहले प्रशिक्षण प्राप्त किया हो, या कम से कम एक ग्लोबल टेंडर आमंत्रित किया हो। अन्यथा ग्लोबल टेंडर किए जाने का औचित्य ही पूर्ण नहीं होगा।

इसी website पर upload होगा global tender डॉक्यूमेंट

यदि ग्लोबल टेंडर की प्रक्रिया को देखा जाए तो उसमें विभिन्न प्रकार की पद्धतियां/ विधियां निर्धारित है। जैसे-
Single Source Selection (SSS)
QBS(Quality Based Selection)
PQBS(purchase and Quality Based Selection)
PBS(price Based Selection) etc.
इस प्रकिया का सही उपयोग करना तभी संभव है जब ऐसी प्रक्रिया का अनुभव पूर्व प्राप्त हो अन्यथा प्रतिस्पर्धात्मक दरें प्राप्त करना कठिन होगा और समय भी व्यर्थ होगा।

नैनीताल हाईकोर्ट की हड़कायी के बाद सरकार ने विदेश से वैक्सीन मंगाने का लिया था फैसला

गौरतलब है कि पांच दिन पूर्व नैनीताल हाईकोर्ट ने स्वास्थ्य सुविधाओं को लेकर उत्त्तराखण्ड सरकार को खूब हड़काया था। विशेष तौर पर स्वास्थ्य सचिव अमित नेगी के मुद्दे पर जमकर नाराजगी जाहिर की थी। नैनीताल हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश आर एस चौहान ने तीरथ सरकार को कई हिदायत दी थी। अपने आदेश में हाईकोर्ट ने विदेशों से वैक्सीन मंगाने तक को कहा था।

अदालत के इस निर्देश के बाद उत्त्तराखण्ड शासन ने तुरत फुरत ग्लोबल टेंडर के जरिये विदेशों से  वैक्सीन मंगाने के लिए अधिकारियों की एक पांच सदस्यीय समिति गठित कर दी (देखें आदेश)। यही नहीं, स्वास्थ्य सचिव अमित नेगी ने स्वास्थ्य महानिदेशक को ग्लोबल टेंडर के लिए इंग्लिश के दो बड़े अखबारों में निविदा देने के भी निर्देश जारी किए। इसके अलावा सरकारी वेबसाइट (www. uktenders. gov. in) में समिति द्वारा दी गयी बिड को अपलोड करने को भी कहा। शासन स्तर पर जारी इस समूची कार्यवाही से इतना तो तय हो गया है टीके का जबरदस्त टोटा झेल रही तीरथ सरकार विदेश से टीके इम्पोर्ट करने जा रही है। समय कितना लगता है यही बढ़ सवाल है वैक्सीन किल्लत के इस मौसम में…

उत्त्तराखण्ड में अभी तक लगभग 20 लाख लोग वैक्सीन लगा चुके है। बीते दस मई से 18 से 44 आयु वर्ग के टीकाकरण अभियान शुरू होने बाद कहीं हल्का पड़ गया तो कहीं ठप नजर आ रहा है। वजह, वैक्सीन की भारी कमी। कई लोग पहली व कई लोग दूसरी डोज के इंतजार में बैठे हैं।

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