….और फिर पूर्व सीएम हरीश रावत फेसबुक पर मन की कह कर छोड़ गए बड़ा सवाल
कहा,अब मेरे लिए बड़े पैमाने पर घी संक्रान्द मनाना सम्भव नहीं
अविकल उत्तराखण्ड
देहरादून। हमेशा की तरह घी सक्रांद समेत अन्य पहाड़ी पर्व पर उत्तराखण्ड के व्यंजनों की बड़ी बड़ी दावतें देने वाले हरीश रावत इस बार आपदा के जारी जख्मों के बीच थोड़ा सम्भल कर चले।
दून स्थित अपने आवास पर चुनींदा लोगों को ही घी संक्रान्द के मौके ओर बने पहाड़ी व्यंजन अपबे हाथ से परोस कर खिलाये। हर आगंतुक के माथे पर घी का तिलक लगाया। और स्वादिष्ट पहाड़ी भटका फानु, पकौड़ी ,रायता, पूरी,भात व खीर परोसी।
पहाड़ी,पारंपरिक व्यंजनों के बनाने की विधि से लेकर इनके ज्यादा से ज्यादा उपयोग पर जोर भी दिया। कहा कि,पहाड़ी भोज्य पदार्थों की बेहतर मार्केटिंग व मांग से स्थानीय काश्तकारों की आर्थिक स्थिति भी संभलेगी।
हरदा की पार्टी हो और राजनीति का पुट न आये। ऐसा हो ही नहीं सकता। लेकिन इस बार ऐसा ही हुआ। राजनीति की कोई चर्चा नहीं। बस पहाड़ी लौकी की सब्जी, ककड़ी का रायता, फ़ांनू और घी के इर्द गिर्द ही चर्चा होती रही। No Politics…
पहाड़ी व्यंजनों की दावत के बाद पूर्व सीएम हरीश रावत ने फेसबुक पर एक पोस्ट भी लिखी। पोस्ट में घी संक्रान्द से जुड़े अनुभवों को मेहमानों के फोटोज के साथ साझा भी किया। और अंत में यह लिख कर कई सवाल भी छोड़ गए… अब मेरे लिए बड़े पैमाने पर घी संक्रांत मनाना संभव नहीं है, लोगों को उत्तराखंडी की व्यंजनों की दावत देना संभव नहीं है।
उत्तराखंड के लोक पर्व “#घीसंक्रांत” त्यौहार के शुभ अवसर पर आज मैंने अपने देहरादून स्थित आवास पर अपने कुछ मित्रों के साथ #भट्टका_फाड़ू, #भात उसमें घी का तड़का और ककड़ी के रायता का स्वाद लिया।
घी संक्रांत अन्न-धन की संपन्नता आए उसके लिए ईश्वर को धन्यवाद देने का त्यौहार है। इस दिन घर में अच्छे-अच्छे पकवान बनते हैं और बच्चों व घर के सब लोगों के सर पर घी का टीका लगाया जाता है ताकि पशु धन के प्रति भी लोगों का समर्पण बना रहे। उत्तराखंड के पकवान अपने स्वाद और गुणकार्यता के लिए किसी का भी मन मोहने की क्षमता रखते हैं। हमने “घी संक्रांत” को भी सरकार की तरफ से हर वर्ष मनाया, बड़े पैमाने पर उत्तराखंडी पकवानों के प्रचार-प्रसार के लिए लोगों को भोजन पर आमंत्रित भी किया। हमने हर जगह इस तरीके की प्रतियोगिताएं भी रखी ताकि घी संक्रांत के साथ झूमेलो/झोड़ा को जोड़कर के उत्तराखंड की जीवंत तस्वीर को उकेरा व उभारा जा सके। अब मेरे लिए बड़े पैमाने पर घी संक्रांत मनाना संभव नहीं है, लोगों को उत्तराखंडी की व्यंजनों की दावत देना संभव नहीं है।
uttarakhand
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