हाईकोर्ट सख्त- टैक्सी बिल घोटाले में  मंत्री व अधिकारियों के खिलाफ क्या कार्रवाई की

प्रदेश सरकार से एक सप्ताह के अंदर मांगा जवाब

गृह सचिव समेत अन्य के खिलाफ दर्ज की जाय एफआईआर

तत्कालीन सीएम आफिस से जुड़े लोग रडार पर, एक पूर्व सीएमके निजी सचिव की हैंडराइटिंग फर्जी बिलों से मिली थी

2009 से 2013 में फर्जी बिल लगा सरकारी खजाने को लगाया चून

सीएम आफिस से सत्यापित किये गए थे बिल

2017 में दस स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों को मिली थी चार्जशीट

अविकल उत्तराखण्ड


नैनीताल। लगभग 14 साल पुराने उत्तराखण्ड के करोड़ों रुपए के टैक्सी बिल घोटाले में हाईकोर्ट ने सख्त रुख अपनाया है । और दोषियों के खिलाफ मुकदमा दर्ज करने के आदेश दिए।

फर्जी टैक्सी बिलों के जरिये सरकारी खजाने से रुपए भी निकालने के मामले में आरोपी टूर ऑपरेटर्स की चार्जशीट को चुनौती देने वाली याचिका पर हाईकोर्ट ने सुनवाई करते हुए यह आदेश जारी किये।

उधर, आरोपी दोनों टूर ऑपरेटर्स का कहना है कि सीएम आफिस से सत्यापित बिलों पर ही भुगतान किया गया है। उन्होंने कोई फर्जी बिल नहीं लगाए।

इधर, न्यायमूर्ति शरद कुमार  की एकल पीठ ने सरकार से साफ साफ पूछा है कि टैक्सी बिल घोटाले में मंत्री, अधिकारी व संलिप्त अन्य लोगों के खिलाफ क्या कार्रवाई की गई है। कोर्ट ने एक सप्ताह के भीतर इस बारे में शपथ पत्र देकर जवाब  देने के निर्देश दिए हैं।

कोर्ट ने कहा है कि अगर सरकार इस पर शपथपत्र दाखिल नहीं करती है तो गृह सचिव समेत सभी आरोपियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करें। कोर्ट ने कहा कि  टैक्सी बिलों को मुख्यमंत्री दफ्तर से सत्यापित किया गया था।

और जब बिल सत्यापित किये गए तो तत्कालीन अधिकारियों ने कोई आपत्ति दर्ज नहीं की। 

पृष्ठभूमि घोटाले की

इस मामले में दायर याचिका में ज्योति काला ने कहा कि 2009 व 2013 में सीएम फ्लीट में बाहर से टैक्सी मंगाकर फर्जी बिल लगाए गए।

और लगभग डेढ़ करोड़ के बिल बनाकर उनका पैसा निकाल लिया गया। घोटाले का पता चलने के बाद 2015 में  तत्कालीन सीएमओ ने  देहरादून व ऋषिकेश में एफआईआर दर्ज की।  मामले में काला टूर ऑपरेटर व उनियाल टूर ऑपरेटर को मुख्य आरोपी बनाया गया।

उस समय काला टूर एंड़ ट्रेवलर्स को 22 लाख व  उनियाल टूर ने 5 लाख का भुगतान किया। 
पुलिस ने इनके खिलाफ चार्जशीट दाखिल कर दी।

  हाईकोर्ट में इन दोनों टूर ऑपरेटरों ने कहा कि जो भी बिल भुगतान उन्होंने लिया, वो सीएम कार्यालय से सत्यापित थे। इसलिए उन्होंने कोई फर्जी बिल पेश नहीं किए थे।

इस मामले में सीएम कार्यालय से जुड़े अधिकारी, स्टाफ व स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों की भूमिका पर लगातार सवाल ऊठते रहे हैं। फर्जी टैक्सी बिल मामले में तत्कालीन सीएम के स्टाफ से जुड़े लोगों की भूमिका भी संदिग्ध मानी जा रही है।

दस अधिकारियों को मिली थी चार्जशीट

निजी सचिव की हैंडराइटिंग फर्जी बिलों से मिली थी

चर्चित टैक्सी बिल घोटाले में स्वास्थ्य विभाग के दस अधिकारियों को चार्जशीट दी गई है। स्वास्थ्य विभाग में 2009 से लेकर 2013 तक मुख्यमंत्रियों के टूर के नाम पर टैक्सी बिलों का भुगतान किया गया। यह भुगतान तकरीबन पौने दो करोड़ रुपये का था।

जांच में सामने आया कि अधिकारियों ने ट्रैवल एजेंसियों के साथ मिलकर गलत तरीके से भुगतान करा लिया। इस मामले में कोषागार, शासन और स्वास्थ्य महानिदेशालय व सीएमओ कार्यालयों की भूमिका भी संदिग्ध पाई गई थी।

टैक्सी बिल घोटाले को लेकर कई मुकदमे राज्य के अलग-अलग थानों में दर्ज हैं। स्वास्थ्य विभाग के अफसर इस फर्जीवाड़े का ठीकरा तत्कालीन मुख्यमंत्रियों के निजी सचिवों पर थोपते रहे और निजी सचिव बिलों को फर्जी बताते रहे।

पुलिस की जांच में पूर्व सीएम रमेश पोखरियाल निशंक के एक निजी सचिव की हैंडराइटिंग फर्जी बिलों से मिल गई थी। मगर ऊंचे कनेक्शन के चलते उस पर कोई कार्रवाई नहीं हुई। इधर, बीते दिनों मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने इस मामले में जल्द से जल्द कार्रवाई संपन्न करने के निर्देश दिए, जिस पर स्वास्थ्य विभाग ने दस अधिकारियों को चार्जशीट जारी की है, जिनमें राज्य के विभिन्न जिलों के चिकित्साधिकारियों के नाम शामिल हैं।

जिन अफसरों को चार्जशीट दी गई है, उनके नाम डॉ. आरएस असवाल, डॉ. एमपी अग्रवाल, डॉ. दीपा शर्मा, डॉ. मीनू, डॉ. वीके गैरोला, डॉ. एसडी सकलानी, डॉ. राकेश सिन्हा, डॉ. जीसी नौटियाल, डॉ. आरके पंत और डॉ. वाईएस राणा शामिल हैं। इस क्रम में अभी सचिवालय प्रशासन की ओर से की जाने वाली कार्रवाई का इंतजार है।

टैक्सी बिल घोटाले की स्वास्थ्य विभाग ने जांच कराई थी, जिसमें विभाग के 12 अधिकारी दोषी पाए गए थे। महानिदेशक स्वास्थ्य ने इस मामले की समग्र जांच का आग्रह किया। इस पर शासन ने अपर सचिव आशीष जोशी से इसकी जांच कराई। उन्होंने आधी अधूरी रिपोर्ट सौंप दी थी। बाद में संयुक्त सचिव आरआर सिंह की जांच में स्वास्थ्य विभाग के 12 अफसर और दो पूर्व मुख्यमंत्रियों के पांच निजी सचिव दोषी पाए गए। उन्होंने मामले की सीबीसीआईडी जांच की जरूरत बताई।

लेकिन गृह विभाग ने इससे इंकार कर दिया था। इसी रिपोर्ट के आधार पर दस लोगों को चार्जशीट जारी की गई है। दो अन्य आरोपी डॉ. गुरपाल सिंह और डॉ. हटवाल की मौत हो चुकी है। पूर्व मुख्यमंत्री के निजी सचिव ने टैक्सी के जिस फर्जी बिल पर हस्ताक्षर किए हैं, वह नंबर एक स्कूटर का निकला था। 2017 में आरटीओ ऑफिस से कराए गए सत्यापन में यह बात सही पाई गई थी। (इनपुट्स, अमर उजाला )

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