ग्रीष्म कला उत्सव का अन्तिम दिन स्वर लहरी के नाम रहा

नगीन तनवीर के सुरों से महक उठी शास्त्रीय संगीत की महफिल

‘चरणदास चोर’ की कहानी से दर्शकों को रूबरू कराया

देहरादून। ‘दून पुस्तकालय एवं शोध केंद्र’ की ओर से आयोजित पांच दिवसीय ‘ग्रीष्म कला उत्सव’ का पांचवा दिन लोक गीत व शास्त्रीय संगीत के नाम रहा।

साहित्य, कला गीत-संगीत और सिनेमाई कला के विविध पक्षों पर केन्द्रित इस आयोजन की श्रंृखला के तहत कहानी वाचन और अभिनय का प्रस्तुतिकरण किया गया।

इस सत्र में युवा रंगकर्मी सिद्धांत अरोड़ा व उनके साथियों ने हबीब तनवीर के नाटक चरणदास चोर का परिचय दिया । और उस कहानी से उद्धरित प्रमुख अंशो का वाचन किया।

कहानी के इन अंशों में नाटकीय प्रभाव का समावेश बहुत शानदार ढंग से किया गया।

चरणदास चोर यह नाटक सत्य के लिए मनुष्य को अडिग रहने का संदेश देता है। सुपरिचित पटकथा लेखक नाट्य निर्देशक हबीब तनवीर ने इस नाटक का लेखन किया है। चरणदास चोर एक ऐसे चोर की कहानी है जो आदतन चोर है। सोने की प्लेट चोरी करने से नाटक की कहानी शुरू होती है। चरनदास किसी गांव से सोने की थाली चोरी करके फरार हुआ है । पुलिस से बचने के लिए या यूं चरणदास एक गुरुजी के आश्रम में प्रवेश कर उनका शिष्य बनने की इच्छा प्रकट करता है।

गुरुजी मान जाते हैं, और शर्त लेते हैं कि चरणदास हमेशा सच बोलने का प्रण लेगा। एक बात गुरु जी की भी माननी पड़ेगी कि तुम्हें झूठ बोलना छोड़ना होगा।

पहले तो चरनदास इस प्रण के लिए ना-नुकुर करने लगता है, पर पुलिस से बचने के चक्कर मे यह प्रण कर लेता है कि मैं कभी झूठ नही बोलूंगा। चरणदास के इन्हीं वचनों पर नाटक के कथानक का ताना-बाना बुना गया मरते दम तक चरणदास अपने वचनों के पालन में खरा उतर जाता है।

वहीं दूसरी ओर सांध्यकालीन सत्र संगीत कार्यक्रम पर केन्द्रित रहा। इसमें छत्तीसगढ़ी लोक गीत एवं सुगम शास्त्रीय संगीत की बेहतरीन प्रस्तुतियां सुपरिचित कलाकार नगीन तनवीर ने दी। उन्होनें छत्तीसगढ़ी लोक संगीत की एक से बढ़कर एक प्रस्तुति देकर उपस्थित संगीत प्रेमियों की वाहवाही बटोर ली। उन्होंने छत्तीसगढ़ी लोक संगीत की प्रस्तुति के बाद उन्होनें सुगम शास्त्रीय संगीत की सुर प्रस्तुतियों से संगीत की महफिल को यादगार बनाकर उसे महका दिया।

उल्लेखनीय है कि नगीन तनवीर सुपरिचित पटकथा लेखक नाट्य निर्देशक व कवि हबीब तनवीर की बेटी हैं। नगीन तनवीर का दिल और आत्मा हमेशा महत्वपूर्ण, संगीत के साथ जुड़े रहे हैं। उन्होंने शास्त्रीय और हल्के शास्त्रीय संगीत का प्रशिक्षण लिया है और यह दुर्लभ और मूल्यवान है। छत्तीसगढ़ी लोक संगीत का भंडार जिसे वह संगीत समारोहों में प्रस्तुत करती है। जब उनके पिता ने एक बार उनसे पूछा था कि क्या वह एक नाटक का निर्देशन करना चाहेंगी, तो उन्होंने मना कर दिया था। हालाँकि, उनकी मृत्यु के बाद उन्होंने नया थिएटर की कमान संभाली है।

कार्यक्रम के आरम्भ में दून पुस्तकालय के अध्यक्ष प्रो. बी. के. जोशी ने मंचासीन अतिथियों और सभागार में उपस्थित लोगों का स्वागत किया। कार्यक्रम में दीपक नागलिया, विजय भट्ट, हिमांशु आहूजा, कल्याण बुटोला,इरा चौहान अरुण कुमार, देहरादून के अनेक संगीत प्रेमी, साहित्यकार, बुद्धजीवी, पत्रकार, साहित्य प्रेमी और पुस्तकालय के पाठकगण उपस्थित रहे।

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